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यह गीत हृषिकेष मुखर्जी की फिल्म फिर कब मिलोगी (1974) का है। इसे लिखा था मजरूह सुल्तानपुरी ने और संगीतबद्ध किया था आर.डी.बर्मन/पंचम ने। फिल्म में यह यह गीत दो बार आता है। पहली बार यह एकल गीत के रुप में फिल्म के नायक (बिश्वजीत) पर फिल्माया गया है और बाद में यह दोगाने (डुएट) के रुप में बिश्वजीत और माला सिन्हा पर फिल्माया गया है।

बिश्वजीत के लिये हेमंत कुमार और मो. रफी की आवाजें ली जाती रही थीं पर पंचम, मुकेश से बिश्वजीत की तरफ से मोर्चा सम्भालवाते हैं और माला सिन्हा की स्क्रीन पर उपस्थिति को सुरीला बनाने के लिये वे लता मंगेशकर की सहायता लेते हैं।

कहीं करती होगी वो मेरा इंतजार
जिसकी तमन्ना में फिरता हूँ बेकरार

कहीं बैठी होगी राहों में
भूल अपनी ही बाहों में
लिये खोयी सी निगाहों में
खोया खोया सा प्यार
छाया रुकी होगी आँचल की
चुप होगी धुन पायल की
होगी पलकों में काजल की
खोयी खोयी बहार
दूर जुल्फों की छांव से
कहता हूँ ये हवाओं से
उसी बुत की अदाओं के
अफसाने हजार
वो जो बाहों में मचल जाती
हसरत ही निकल जाती
मेरी दुनिया बदल जाती
मिल जाता करार

कहीं करती होगी वो मेरा इंतजार
जिसकी तमन्ना में फिरता हूँ बेकरार

दूर जुल्फों की छांव से
कहता हूँ ये हवाओं से
उसी बुत की अदाओं के
अफसाने हजार
वो जो बाहों में मचल जाती
हसरत ही निकल जाती
मेरी दुनिया बदल जाती
मिल जाता करार

© …[राकेश]


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