shri420राज कपूर की इस सर्वश्रेष्ठ फिल्म के इस गीत के बोल लिखे थे हसरत जयपुरी ने। फिल्म में ऐसी परिस्थितियाँ बनती हैं कि नादिरा और नीमो द्वारा दी गयी पार्टी में राज कपूर, नरगिस को अपने साथ लेकर जाते हैं। वहाँ नादिरा और उनके अमीर साथी गरीब नरगिस का अपमान कर देते हैं और अपमानित नरगिस पार्टी छोड़कर घर वापिस आ जाती हैं। उनके पीछे जाना चाहते हैं राज कपूर परंतु नादिरा उन्हे रोक लेती है और जल्दी ही धन और ऐश्वर्य के नशे में राज कपूर बहक कर खो जाते हैं।

पार्टी में एक अन्य मोहक गीत – मुड़ मुड़ के न देख, गाया जाता है। राज कपूर पार्टी से नशे में चूर होकर लौटते हैं और सीधे नरगिस के घर पहुँच जाते हैं। वहाँ नरगिस उनसे उनके बहकते कदमों की दुहाई देकर सीधे रास्ते पर आने की गुजारिश करती है परंतु जुए जैसे रास्ते से कमायी गयी धन-दौलत और धनी जीवन के ऐश्वर्य के आगे राज कपूर को लगता है कि नरगिस उनकी तरक्की नहीं चाहती। नरगिस को जुआरी राज नहीं चाहिये। उन्हे गरीबी में रहना मंजूर है परंतु अपराध से कमायी गयी धन-दौलत के बलबूते सुख-सुविधा जुटाना गवारा नहीं है। राज उनसे संबंध तोड़कर चल देते हैं। वे तो नशे में चूर हैं।

नरगिस उन्हे जाते हुये देखती हैं। उनका अंतर्मन नशे में लड़खड़ाते राज को रोकने की दुहाई देता है पर उनका दिल और दिमाग जीवन के वास्तविक धरातल पर खड़ा है और वह राज को गिरते पड़ते जाते हुये देखती है।

यह बात लिखे जाने में तो आसान है पर इस बात को सिनेमा के परदे पर कैसे दिखाया जाये?

निर्देशक राज कपूर ने नरगिस के अंदर चल रहे अंतर्द्वन्द को परदे पर दिखाने की ठानी। उन्होने दिखाया कि नशे के कारण गिरते-पड़ते जा रहे राज को देखकर नरगिस की चेतना दो हिस्सों में बंट गयी है। उनका आदर्शवाद और प्रैक्टीकल दृष्टिकोण उन्हे राज को जाने से रोकने से रोकता है पर उन्होने राज से दिल की गहराइयों से प्रेम किया है अतः उनकी अंदुरनी चेतना राज को रोकना चाहती है, सम्भालना चाहती है।

राज कपूर ने दिखाया कि काले या गहरे रंग के वस्त्र पहने हुये खड़ी नरगिस के अंदर से श्वेत या हल्के रंगों के वस्त्र पहने हुये उनकी आंतरिक चेतना बाहर निकल आती है और जाते हुये राज कपूर को रोकना चाहती है। अंतर्मन, नरगिस से गुहार लगाता है कि जाते हुये राज को रोको परंतु शारीरिक नरगिस बुत की तरह चुपचाप खड़ी हुयी इस द्वंद को देख रही हैं। अंतर्मन ही राज कपूर को रोकने के लिये अपने भावों को स्पष्टतया प्रदर्शित करता है।

राज कपूर ने इस आकर्षक विधि का इस्तेमाल किया नरगिस के भीतर और बाहर के रुपों में हुये विभाजन को दिखाने के लिये। इस तकनीक का इस्तेमाल बहुत साल बाद गुलज़ार ने मौसम के बहुचर्चित गीत – दिल ढ़ूँढ़ता है…- में किया पर उन्होने इसे भूतकाल और वर्तमान के अंतर को दर्शाने के लिये किया।

नरगिस का अंतर्मन चित्कारता है और इस अंतर्वेदना को हसरत जयपुरी बड़े ही सीधे सरल शब्दों में बयां कर देते हैं।


तुम्हे कसम है मेरी
दिल को यूँ न तड़पाओ
ये इल्तज़ा है कि मुड़ मुड़ के देखते जाओ
हो जाने वाले मुड़ के ज़रा देखते जाना
दिल को तोड़ के तो चल दिये
मुझको न भुलाना
ज़रा देखते जाना

फरियाद कर रही है खामोश निगाहें
आँसू की तरह आँख से मुझको न गिराना
ज़रा देखते जाना

अंतर्मन के पास शरीर नहीं है जिससे कि वह राज को रोक सके और शारीरिक नरगिस बुत बने हुये खड़ी है, उन्हे भी अहसास है कि उनकी प्रेमभरी दुनिया लुट रही है और इसी शोक में वे पत्थर सरीखी हो गयी हैं।

विवश श्वेत वस्त्रधारी अशरीरी अंतर्मन वापिस नरगिस के शरीर में प्रवेश कर जाता है।

लता मंगेशकर ने अपनी गायिकी से इस गीत में उपस्थित दुख भरे भावों को गहरायी प्रदान की है।

चाहे वह आवारा का ड्रीम सीक्वेंस हो या श्री 420 के इस गीत का तकनीकी पहलू हो, राज कपूर अपने फिल्मी जीवन में हिन्दी सिनेमा को बहुत सारे क्षेत्रों में दिशा प्रदान करते रहे।

…[राकेश]

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