पंचम संगीत के विशाल सागर में उठी वह तरंग रही है जो आज भी संगीत सागर में न केवल विद्यमान है बल्कि पुरजोर तरीके से संगीत सागर में हिलोरे मार रही है| सागर में उठी तरंगों के कारण अन्दर से किनारे की ओर बड़ी बड़ी लहरें चलायमान होती हैं और किनारे से लौटती यही लहरें समुद्र के अन्दर से किनारे की ओर भागती आती लहरों से बीच में ही टकरा कर उनकी गति, दिशा और रूप सभी कुछ परिवर्तित कर देती हैं| एक बड़ी लहर छोटे लहरों को अपने में समाहित कर अपने साथ ही अपने दिशा में बहा ले जाती है| पंचम संगीत तरंग ने हिंदी फ़िल्मी संगीत में समुद्री तरंगों जैसा ही कार्य करते हुए अन्य संगीतकारों की तरंगों को इतना घर्षण दिया है कि पंचम के बाद आये, और उनके साथ सक्रिय सभी संगीतकारों ने, जैसे तत्व पंचम अपने संगीत के साथ लाये वैसे पंचमीय तत्व अन्य संगीतकार भी अपने अपने संगीत में डालने लगे|
पंचम हिन्दी फ़िल्म संगीत की धारा में ऐसे मुकाम पर संगीत की भूमि से सतह पर उभरे जहां अगर समय के स्केल की रेखा खींची जाए तो पंचम पुराने से पुराने संगीतकार और नए से नए संगीतकार के बराबर में जा आसानी से खड़े हो सकते हैं| पंचम ने अपने संगीत को काल के गुरुत्व से बाहर कर दिखाया| उनके बहुत से गीत ऐसे रहे जिन्हें लोगों ने माना कि वे पंचम के पिता, महान संगीतकार एस डी बर्मन द्वारा संगीतबद्ध किये गए थे या केवल उन्हीं के द्वारा संगीतबद्ध किये जा सकते थे| ऐसे गीत पंचम द्वारा बर्मन घराने की परंपरा के अनुकूल संगीतबद्ध किये गए| ऐसा ही वे पुराने किसी भी संगीतकार के साथ कर सकते थे| आजकल के अधिकतर संगीतकार पंचम से प्रेरित संगीतकारों की ही श्रंखला की ही कड़ियाँ हैं|
बहुत संगीतकारों के रचे संगीत गीत अनुकूल भाव श्रोता में जगा देते हैं| कोई गीत की प्रकृति अनुरूप श्रोता को उदासी से भर देता है, कोई प्रसन्नता से प्रफुल्लित कर देता है, कोई भक्ति रस में ऐसा डुबो देता है कि श्रद्धा से नयनों से अश्रु धारा बहने लगे, कोई वीररस से इतना ओतप्रोत कर देता है कि सीने में वीरता से विस्तार आ जाता है| सारे रसों के भाव पंचम के गीतों से भी उभरते ही हैं लेकिन उनके बहुत से गीत एक अलग ही वातावरण रचते हैं जिनकी तुलना खुमारी या मस्तिष्क के किसी हलके नशे के प्रभाव में होने से ही की जा सकती है जिसमें आँखें मुंद जाती हैं, आसपास घटित का सम्पूर्ण भान भी रहता है और मनुष्य किसी अंदुरनी यात्रा पर गति भी करता रहता है| साईकेडेलिक प्रभाव से इतर जहां हेलूसीनेशन घटता है, पंचम संगीत गायन और वाद्य यंत्रों के विशेष संयोजन से एक ऐसी खुमारी निर्मित करता है जहां जागरण और सजगता भरी मानसिक गतिहीनता की अवस्था का आभास साथ-साथ घटते हैं|
संगीत की ऐसी यात्राएं विकसित करने में पंचम का सबसे ज्यादा साथ लता मंगेशकर ने दिया और उनके बाद किशोर कुमार ने| अन्य गायकों संग भी पंचम ने ऐसे गीत रचे पर मुख्यतः इस विधा के सहयात्री लता और किशोर ही रहे|

फ़िल्म “आराधना” से ध्रुव तारे की भांति चमकने से पहले भी राजेश खन्ना ने अच्छी गुणवत्ता वाली चंद फ़िल्में की थीं, जिन्होंने बड़ी सफलताएं नहीं पायीं| इन सभी फिल्मों – आखिरी ख़त (संगीत – खय्याम), राज़ (संगीत – कल्याण जी आनंद जी), और बहारों के सपने (संगीत – आर डी बर्मन) का संगीत आज तक भी जीवंत है| एक अन्य फ़िल्म – औरत, जो तमिल फ़िल्म का रीमेक थी, का संगीत रवि ने रचा था| पद्मिनी अभिनीत स्त्री चरित्र प्रधान इस फ़िल्म में राजेश खन्ना ने पद्मिनी के भाई की भूमिका निभाई और इस फ़िल्म को राजेश खन्ना की फ़िल्म के रूप में कभी पहचान न मिली, न ही इसके गाने प्रसिद्द न हो पाए |
नासिर हुसैन की “बहारों के सपने” बेरोजगारी और गरीबी से लड़ते शिक्षित लेकिन निम्न वर्ग के प्रतिनिधि नायक (राजेश खन्ना ) की फ़िल्म है| एक युवक जिसके कन्धों पर पूरे घर की जिम्मेदारी हो और उसे जीवनयापन हेतु एक अदद नौकरी न मिल पा रही हो, उसके संघर्षपूर्ण जीवन में थोडा बहुत संबल उसी के परिवेश में रहने वाली उससे प्रेम करने वाली उसकी सखी, प्रेमिका (आशा पारेख) ही दे सकती है| नायक-नायिका और उनकी परिस्थितियों की इस भूमि पर गीतकार मजरुह सुल्तानपुरी ने नायिका द्वारा नायक को शक्ति प्रदान करने, उसकी जिजीविषा बढाने हेतु, अवसाद से भरे उसके संघर्षपूर्ण जीवन में आशा की किरण भरने हेतु तीन प्रेम गीत नायिका के लिए लिखे| पंचम ने इन तीनों गीतों को लता मंगेशकर से गवाया और तीनों ही गीत ( आजा पिया तोहे प्यार दूं गोरी बैयाँ तो पे वार दूं, क्या जानू सजन होती है क्या ग़म की शाम, और ओ मेरे सजना ओ मेरे बलमा ) शानदार कीमती नगमें हैं| जिनमें यह निर्णय लेना कठिन हो जाता है कि कौन सा गीत श्रेष्ठ है|
नायक द्वारा निराशा में गाये गीत – “ज़माने ने मारे जवां कैसे कैसे (रफ़ी)” में पंचम ने बडी प्रभावशाली रचना की है| आशा भोसले और उषा मंगेशकर द्वारा गया हुआ दोगाना – दो पल जो तेरी आँखों से, भी कर्णप्रिय है|
एक अन्य गीत “चुनरी संभाल गोरी” कई दृष्टियों से विशेष है| यह गली, मोहल्ले, नुक्कड़ या किसी सभा में जन समूह के मनोरंजन हेतु जन्माया गया गीत है| जहां अनवर हुसैन एवं अन्य समूह गान और नृत्य के कलाकार इसे जन समूह के गीत का रूप देते हैं वहीं नायिका द्वारा गाये गए अंतरे सीधे-सीधे नायक को संबोधित हैं, जैसे भीड़ के बीच दो जोड़ी आँखों की जुगलबंदी चल रही है और नायिका, नायक की सारी परिस्थितियों को जानते समझते उसे जीवन में आशा का दामन पकड़ने का दर्शन दे रही है|
चुनरी संभाल गोरी, उड़ी चली जाए रे
मार न दे डंक कहीं, नज़र कोई हाय
देख देख पग न फिसल जाए रे
जहां अनवर हुसैन के बोलों के लिए पंचम, मन्ना डे से गीत में उत्सवधर्मिता का पुट डलवाते हैं और मन्ना डे और गीत के कोरस भागों को हाई वोल्टेज गीत का आकार देते हैं वहीं नायिका के लिए लता मंगेशकर से गवाते ही गीत एक नितांत भिन्न संसार में प्रवेश कर जाता है| बल्कि नायिका के गायन से पूर्व ही मन्ना डे के मस्ती भरे गायन का साथ देने के लिए लता जी का प्रवेश “हा आ” करने से ही गीत की प्रवृत्ति एकदम से बदल जाती है|
शंकर जयकिशन ने राधू करमाकर निर्देशित जिस देश में गंगा बहती है, में पद्मिनी पर फिल्माए गए गीत – ओ मैंने प्यार किया, में लता जी से कई जगह उच्छवास के माध्यम से आवाजें निकलवा कर विशेष प्रभाव उत्पन्न किया था|
पंचम यहाँ इस गीत – चुनरी संभाल गोरी, में लता जी से “हा आ” की ध्वनि निकलवा कर गीत को एक अलग ही असर से भर देते हैं|
इस गीत में पंचम, मन्ना डे से योडलिंग भी करवाते हैं| मन्ना डे द्वारा मुखड़ा समाप्त करते हुए हाय शब्द को दीर्घ रूप में खींचे जाने से और इसके समाप्त होने से पहले ही स्त्री कोरस गायिकाओं के भाग “लई लई ला ” आना भी बेहद कर्णप्रिय हैं|
फिसलें नहीं चल के, कभी दुख की डगर पे
ठोकर लगे हँस दें, हम बसने वाले, दिल के नगर के
अरे, हर कदम बहक के संभल जाए रे!किरणें नहीं अपनी, तो है बाहों की माला
दीपक नहीं जिन में, उन गलियों में है हमसे उजाला
अरे, धूल ही पे चाँदनी खिल जाए रे!
लता जी द्वारा कोरस गायिकाओं के साथ “रता रता लई लई लई लई ला” गाने से भी गीत विशिष्ट रूप से नशीला बन जाता है|
पल छिन पिया पल छिन, अँखियों का अंधेरा
रैना नहीं अपनी, पर अपना होगा कल का सवेरा
अरे, रैन कौन सी जो न ढल जाए रे!
अंतिम अंतरे में भावों की गहनता को पंचम ने एक अलग ही अंदाज़ में लता जी से गवाकर गीत को एक उंचाई प्रदान की है जिसके दम पर निर्देशक ने अभिनेत्री आशा पारेख से उतना ही भावप्रवण अभिनय प्रदान करवा कर गीत में गहराई उत्पन्न की है|
मजरुह सुल्तानपुरी का लयबद्ध काव्य उच्च कोटि का है|
ऐसे उच्च स्तरीय गीतों की पूरी विरासत रच देने से ही यह तथ्य स्थापित हुआ है कि किसी अच्छे निर्देशक के लिए ईश्वर प्रदत्त कितना बड़ा वरदान पंचम थे| जितना निर्देशक सोच पाते होंगे उससे कई गुना ऊपर के स्तर का संगीत पंचम रच देते थे और फिर उस संगीत पर गीतों के फिल्मांकन से फिल्मों का स्तर अपने आप ऊपर उठ जाता था|
पंचम नासिर हुसैन के लिए “तीसरी मंजिल (1966)” में कालजयी संगीत प्रदान कर चुके थे और यहाँ “बहारों के सपने” में भी उन्होंने एक विलक्षण संगीत की रचना की|
…[राकेश]
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