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“Cinema is the most beautiful fraud in the world.” (Jean-Luc Godard)
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April 29, 2010 at 11:34 PM
Very Good Post Sir… Keep Posting…
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April 30, 2010 at 12:00 AM
Anshul,
Thanks 🙂
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April 30, 2010 at 2:10 AM
बहुत अच्छी रचनाओं का चयन और सुन्दर विश्लेषण
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April 30, 2010 at 2:25 AM
राजीव जी,
बहुत बहुत धन्यवाद आपकी उदार टिप्पणी के लिये 🙂
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April 30, 2010 at 7:36 AM
हु तू तू मेरी पसंदीदा फिल्म है.. व्यवस्था पर मारक कटाक्ष..!
और मेरे अपने तो अपने आप में कालजयी रचना है.. हालचाल ठीक ठाक है गाने में ही गुलज़ार साहब अपनी बात कह जाते है.. कभी मौका मिला तो मेरे अपने फिल्म को दोबारा बनाने का सपना है..
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April 30, 2010 at 8:36 AM
कुश जी
मेरे अपने, तपन सिन्हा की बंगाली फिल्म का हिन्दी रीमेक थी सो तब से अब के वक्त में थोड़ा या कहें काफी अन्तर आ गया है।
मेरे अपने को दोबारा बनाने के लिये तो अब उसे आज के हालात के मुताबिक ढ़ालना पड़ेगा पर निस्सन्देह युवाओं की समस्याओं पर आधारित विषय की अभी भी सार्थकता है। हाँ मीना कुमारी, रमेश देव वाले ट्रैक की जरुर पूरी मरम्मत आपको करनी पड़ेगी हो सकता है उसे पूरा बदलना ही पड़े।
आशा है आपकी फिल्म बनाने की दिशा में प्रगति शीघ्र होगी। न सही मेरे अपने कोई और सही।
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April 30, 2010 at 9:50 AM
एक अर्थपूर्ण और उम्दा पोस्ट के लिया आप का बहुत बहुत आभार !
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April 30, 2010 at 3:49 PM
शिवम जी,
प्रोत्साहन देती आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।
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February 15, 2011 at 2:27 AM
nice write !
well versed !!
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