राज खोसला निर्देशित भावनाओं के धरातल पर रचाई फ़िल्म में दो तत्व ही विशेष महत्त्व के हैं|

  1. राहुल देव बर्मन द्वारा संगीतबद्ध दो गीत| एक गीत, और क्या अहदे वफ़ा होते हैं, को आशा भोसले और सुरेश वाडकर ने अलग अलग गया है, और दूसरा गीत – जाने क्या बात है, जिसे लता मंगेशकर ने गाया है|
  2. वरिष्ठ अभिनेत्रियों वहीदा रहमान और शर्मीला टैगोर की अभिनय प्रतिभाओं की परदे पर टक्कर| जिन दृश्यों में वे आमने सामने रहती हैं, वे सभी दृश्य फ़िल्म को उच्च स्तर प्रदान करते हैं|

बाकी की फ़िल्म देखकर कम ही ऐसा अनुभव प्राप्त होता है कि यह बीते दौर के प्रसिद्द निर्देशक राज खोसला की फ़िल्म है| यूं तो मैं तुलसी तेरे आंगन की और दासी को देख कर भी स्पष्ट दिखाई देने लगता है कि राज खोसला, अपनी प्रतिभा की चमक खोते जा रहे थे और उनकी फिल्मों में बहुत कुछ ऐसा था जो पुराना और बासी लगने लगा था, वे कुछ ख़ास कोणों का ही अपनी सामजिक फिल्मों में करते रहते थे| जैसे देखें तो राज खोसला निर्देशित फिल्मों में सीआइडी के ज़माने से एक ऐसा गीत अवश्य रखा जाता रहा जिसमें सड़कों पर गीत गाकर नाचने वाला वाला समूह नायक या नायिका के पास आकर एक गीत अवश्य ही गाता है, उसमें भी हारमोनियम गले में लटकाए हुए एक पुरुष गायक होगा और उसकी साथी नर्तकी गीत पर नृत्य करेगी| उनकी फिल्मों के ऐसे कुछ गीत प्रसिद्द भी हुए हैं| फ़िल्म-सनी में भी एक ऐसा ही कोरस गीत रखा गया है लेकिन वह अत्यंत साधारण गीत है| एक पुरुष का दो स्त्रियों के बीच बंटा जीवन भी उन्होंने कई बार विश्लेषित किया| ये सब बातें यह स्पष्ट कर देने के लिए बहुत हैं कि वे अब ताजगी न ढूंढ कर पहले कई बार के अजमाए सूत्रों में रचनात्मकता ढूंढ रहे थे|

कथानक में संयोग शुरुआत से ही रखे गए हैं और दर्शकों के ऊपर छोड़ दिया जाता है कि बिना अपना दिमाग लगाए वे मान कर चलें कि जो निर्देशक ने तय किया है बस वही कोण संभव है|

धर्मेन्द्र और उनकी पत्नी – वहीदा रहमान के वैवाहिक जीवन से संतान सुख अनुपस्थित है, क्या इस कारण धर्मेन्द्र का शर्मीला टैगोर से प्रेम संबंध बना, या इसलिए कि शर्मीला टैगोर गाती बहुत अच्छा हैं? इसे फ़िल्म दर्शकों को बताना आवश्यक नहीं समझती|

यह तो स्पष्ट ही है कि सनी देओल को नायक के रूप में राज खोसला इस फ़िल्म में ले रहे थे इस नाते धर्मेन्द्र ने एक छोटी सी भूमिका मेहमान कलाकार के तौर पर करना स्वीकार की| उनके करने के लिए फ़िल्म में कुछ था नहीं| उस संक्षिप्त भूमिका में भी उनके हिस्से अस्पष्टता ही आयी, हालांकि उनके जैसे बेहतरीन अभिनेता की परदे पर उपस्थिति ही बहुत कुछ दर्शकों तक पहुंचाती रहती है, लेकिन उनका चरित्र कायदे से न गढ़ा न स्थापित किया गया फ़िल्म में| अपनी प्रेमिका के यहाँ रात्री के सारे प्रहार बिता कर सुबह पत्नी के पास लौटकर राज खोसला उनसे कॉमेडी करवाने लगते हैं|

राज खोसला ने किस लापरवाही से फ़िल्म का शुरुआती हिस्सा फिल्माया है इसकी एक बानगी देखनी हो तो धर्मेन्द्र के टेप रिकॉर्डर की भूमिका को देखा जा सकता है| धर्मेन्द्र एक ब्रीफकेस में अपना टेप रिकॉर्डर लेकर शर्मीला टैगोर के घर पहुँचते हैं| शर्मीला उदास बैठी हैं, उन्हें आज सुबह के अखबार में छपी एक खबर से ही पता चला है कि धर्मेन्द्र असल में पहले से विवाहित हैं, जबकि धर्मेन्द्र ने उनसे कभी इस बात का जिक्र नहीं किया| धर्मेन्द्र को पता लगता है कि शर्मीला टैगोर सुबह से एक ही गीत में व्यस्त हैं,धर्मेन्द्र उनसे अनुरोध करते हैं कि वह भी उस गीत को सुनना चाहते हैं, वे आगे प्रस्ताव रखते हैं कि गीत को रिकॉर्ड कर लिया जाए| वे टेप रिकॉर्डर ऑन कर देते हैं और शर्मीला गीत गाती हैं – और क्या अहदे वफ़ा होते हैं|

उदासी से भरे गीत को सुनकर धर्मेन्द्र शर्मीला से उनकी उदासी का सबब पूछते हैं और शर्मीला उन्हें सच कह देती है कि उन्हें नहीं पता था कि धर्मेन्द्र विवाहित हैं और अब उन्हें अपनी घर गृहस्थी में लौट जाना चाहिए| वे इस प्रेम संबंध को अपनी ओर से तोड़ देती हैं और धर्मेन्द्र को वापिस भेज देती हैं| यहाँ गौर तलब है कि धर्मेन्द्र का टेप रेकॉर्डर ऑन है लेकिन उनकी यह बातचीत इसमें रिकॉर्ड नहीं होती| धर्मेन्द्र बिना टेप रिकॉर्डर लिए ही शर्मीला के घर से लौटते दिखाए जाते हैं|

अगले दिन या उससे अगले दिन धर्मेन्द्र फिर से शर्मीला के घर पहुँचते हैं तो दरवाजे पर खड़ी शर्मीला गीत गा रही हैं – जाने क्या बात है, नींद नहीं आती, बड़ी लम्बी रात है| गीत का एक ही अन्तरा यहाँ गाया गया है| गीत के बोलों से और शर्मीला की उदासी से धर्मेन्द्र को आभास होता है कि शर्मीला तो उनकी जुदाई में बेहद उदास है| यहाँ भी गौरतलब है कि फ़िल्म दिखाती है कि धर्मेन्द्र का टेप रिकॉर्डर ऑन है और शर्मीला के गीत और उन दोनों की बातचीत को रिकॉर्ड कर रहा है| चूंकि यह बातचीत फ़िल्म के क्लाइमेक्स को जस्टीफाई करेगी, इसलिए बातचीत को रिकॉर्ड किया गया है|

शर्मीला आत्महत्या की धमकी देकर धर्मेन्द्र को वहां से जाने को कहती है और धर्मेन्द्र घर के बाहर से ही गुस्से में शर्मीला को धमकी देकर चले जाते हैं कि वे अब कभी यहाँ नहीं आयेंगे, शर्मीला बुलायेंगी तो भी नहीं आयेंगे, कभी नहीं आयेंगे|

वे घर के बाहर से ही चले जाते हैं, अर्थात शर्मीला के घर पर रखा टेप रिकॉर्डर अन्दर ही है और चल रहा है|

अगले ही दृश्य में धर्मेन्द्र हवाई जहाज उड़ा रहे हैं और शराब पीते हुए टेप रिकॉर्डर पर रिकॉर्ड किया हुआ शर्मीला का गाया गीत सुन रहे हैं – और क्या अहदे वफ़ा होते हैं| आगे दर्शक देखते हैं कि धर्मेन्द्र का प्लेन पहाड़ से टकराकर दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है और उसमें विस्फोट हो जाता है| उनके मरने की सूचना वहीदा रहमान के पास आती है|

बीस- इक्कीस -बाईस साल बाद, धर्मेन्द्र और शर्मीला टैगोर का बेटा (सनी देओल), जिसे वहीदा रहमान ने बड़ा किया है, पहली बार अपने पिता के ऑफिस जाता है और पिता के कक्ष में पिता की कुर्सी पर बैठता है और बोरियत में उसकी निगाह एक ब्रीफकेस पर पड़ती है जिसमें टेप रिकॉर्डर रहा है| इतने साल बाद भी टेप रिकॉर्डर बिजली की सप्लाई देते ही तुरंत चलने लगता है और सनी भी गीत – और क्या अहदे वफ़ा होते हैं, सुनते हैं|

राज खोसला दर्शकों के विवेक पर छोड़ देते हैं कि वह सोचता रहे कि शर्मीला के घर कौन सा टेप रिकॉर्डर था? धर्मेन्द्र के साथ प्लेन में कौन सा टेप रिकॉर्डर था? धर्मेन्द्र के ऑफिस में टेप रिकॉर्डर कहाँ से आ गया, जिससे सनी वही गीत सुनते हैं? इस टेप रिकॉर्डर में गीत- और क्या अहदे वफ़ा होते हैं, पूरा रिकार्डेड है, और गीत – जाने क्या बात है, का पहला ही अन्तरा है, और फ़िल्म के अंत में पता चलता है कि इस एक अंतरे के बाद धर्मेन्द्र और शर्मीला टैगोर के बीच की अंतिम बातचीत भी इसमें रिकार्डेड है (उससे पहले दिन की बातचीत क्यों नहीं है, इसे फ़िल्म लिखने वाले के तकनीकी ज्ञान ने सोचने का कष्ट नहीं उठाया है)| सब कुछ राज खोसला की निजी संतुष्टि के आधार पर रखा गया है|

सनी का अस्तित्व फ़िल्म के दो कालों को जोड़ता है| एक शाम स्क्वैश खेलने के बाद लौटते हुए वे खेल परिसर की बिल्डिंग के रिसेप्शन पर चलते टीवी पर एक युवती (अमृता सिंह) को एक गीत गाते सुनते हैं – जाने क्या बात है, नींद नहीं आती ,बड़ी लम्बी रात है| इस गीत को वे अपने ऑफिस और घर पर अधूरे रूप में सुन चुके हैं, अतः उनका चौंकना वाजिब है कि उनके पिता के टेप रिकॉर्डर में रखे गीत के अंश वाले गीत को इस नए दौर में कैसे एक नवयुवती गा रही है? वे तुरंत टीवी स्टूडियो की ओर चल पड़ते हैं और गीत समाप्त होते होते वहां पहुँच भी जाते हैं| तो इस गीत के साथ सनी की खोज शुरू होती है कि इस गीत को गया किसने है| जो अंततः उसकी जैविक माँ और पालने वाली माँ के बीच संघर्ष में परिणति पाती है| अंत में एक माँ को जाना है|

ऐसे संयोगों से भरी फ़िल्म में राज खोसला को आर डी बर्मन ने आनंद बक्शी, लता मंगेशकर, आशा भोसले और सुरेश वाडकर, के सहयोग से दो शानदार गीत प्रदान किये|

गीत – जाने क्या बात है, भी फ़िल्म में दो हिस्सों में बंटा हुआ है|

आनंद बक्शी द्वारा लिखे इस गीत के बोल ऐसे प्रतीत होते हैं मानों उन्होंने गुलज़ार की बगिया में बागवानी की हो, विशेषकर इसका पहला अन्तरा, जिसे शर्मीला टैगोर फ़िल्म में प्रस्तुत करती हैं, गुलज़ार रचित गीतों जैसा प्रतीत होता है| फ़िल्म में जब यह पहली बार अस्तित्व में आया था तब एक दिन पहले धर्मेन्द्र को अपने घर से जीवन से बाहर कर देने के बाद शर्मिला टैगोर बेहद उदासी में घिरी अपने घर के दरवाजे की चौखट से लगी इस गीत को गाती हैं|

जाने क्या बात है, जाने क्या बात है
नींद नहीं आती, बड़ी लम्बी रात है

सारी सारी रात मुझे इसने जगाया
जैसे कोई सपना जैसे कोई साया
कोई नहीं, लगता है कोई मेरे साथ है
नींद नहीं आती बड़ी लम्बी रात है

आर डी बर्मन ने राग यमन कल्याण में इसे संगीतबद्ध किया| अमृता सिंह द्वारा गया गीत स्पष्ट रूप से प्रेम में नई नई पड़ी युवती के मन उदगार प्रकट करता है| स्पष्ट है कि अमृता सिंह ने यह गीत शर्मीला टैगोर से ही सीखा है, लेकिन फ़िल्म जो दिखाती है कि उदास शर्मीला टैगोर इस गीत के जिस अंतरे को गाती हैं, वह गीत तो श्रृंगार, प्रेम, शुरुआती हया, विवाह के सपने आदि की कल्पनाओं की ओर नहीं ही जाता या जा सकता था, तो इस लिहाज से इस गीत का प्रारूप भी भ्रमित करने वाला ठहरता है| फ़िल्म से बाहर इसके ऑडियो संस्करण से ये बारीकियां सामने नहीं आतीं और तब तो यह लता मंगेशकर द्वारा गाये एक बेहतरीन गीत के रूप में सामने आता है|

धर्मेन्द्र के गमले से टकराने से शर्मीला टैगोर का ध्यान भंग होता है और गीत यहीं रुक जाता है|

बीस-बाईस साल बाद इस गीत को सनी टीवी पर अमृता सिंह को गाते हुए देखते हैं लेकिन तब उसमें उपरोक्त अंतरा नहीं है बल्कि बाकी के दो अंतरे सामने आते हैं| सनी द्वारा टेप में सुने गए गीत और अमृता सिंह द्वारा गाये गीत में केवल मुखड़े [जाने क्या बात है, जाने क्या बात है, नींद नहीं आती, बड़ी लम्बी रात है] की ही समानता है|

धक-धक कभी से जिया डोल रहा है
घूँघट अभी से मेरा खोल रहा है
दूर अभी तो पिया ये मुलाक़ात है

जाने क्या बात है जाने क्या बात है
नींद नहीं आती बड़ी लम्बी रात है

जब जब देखूँ मैं ये चाँद सितारे
ऐसा लगता है मुझे लाज के मारे
जैसे कोई डोली जैसे बारात है
जाने क्या बात है जाने क्या बात है

नींद नहीं आती बड़ी लम्बी रात है

वहीदा रहमान और शर्मीला टैगोर ने शानदार अभिनय करके राज खोसला को ऐसा आधार प्रदान किया था जैसा शायद दो श्रेष्ठ पुरुष अभिनेता भी न कर पाते| आर डी बर्मन ने दो गीत बहुत ही अच्छे रचे| लेकिन सारी फ़िल्म पर गौर करें तो यह एक सशक्त फ़िल्म नहीं बन पाती और इसमें सबसे बड़ी कमी, इसकी कथा पटकथा में संयोगों की भरमार है और राज खोसला अपने दर्शकों की समझदारी से खेलते हैं और ऐसा प्रतीत होता है उन्हें लगता होगा कि दर्शक तो भावनाओं के सामने हर कोण को स्वीकार करेंगे|

काश कि वे ढीले तारों को सटीक कसावट देते तो सनी भावनाओं से भरपूर एक बेहतरीन रागात्मक फ़िल्म बनती|

…[राकेश]


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