हिंदी सिनेमा में तीन ऐसे खुशनुमा चेहरों वाली अभिनेत्रियाँ रही हैं जिनके चेहरों पर उदासी कभी भी फ़बी नहीं और उनके उदास चेहरे देख दर्शक भी बैचेनी महसूस करने लगते हैं कि ये स्त्रियाँ हंस क्यों नहीं रहीं? क्योंकि उनकी हंसी ऐसी रही जिसके लिए गुलज़ार साब ने फिल्म घर के गीत में लिखा था – लब हिले तो मोगरे के फूल खिलते हैं कहीं|
इन तीनों – सुरैया, मधुबाला और सुलक्षणा पंडित के हँसते चेहरों ने सिनेमा के परदे के माध्यम से करोड़ो सिने- दर्शकों को पीढ़ी दर पीढ़ी सम्मोहित किया है|
एक सिंगिंग स्टार का जैसा रुतबा सुरैया ने अपने दौर में कमाया वह अर्जित करने की पात्रता सुलक्षणा पंडित के पास भी थी| उनके पास एक शानदार स्क्रीन प्रेजेंस थी, गायन के लिए एक सधी और पूर्ण विकसित मधुर आवाज़ थी और अपनी पहली फिल्म – उलझन (1975) से उन्होंने यह भी दर्शाया कि वे अभिनय में भी बेहतर कर सकती हैं|
12-13 साल की अवस्था में उन्होंने अपना पहला फ़िल्मी गीत गाया लता मंगेशकर जैसी सर्वोत्तम गायिका के संग – सात समुन्दर पार से गुड़ियों के बाज़ार से (तकदीर 1967)|
अभिनेत्री की पारी शुरू करने से पूर्व ही फिल्म – दूर का राही (1971) में किशोर कुमार संग गाये डुएट गीत – बेक़रार दिल तू गाये जा, और फिल्म – चलते चलते (1975) में – सपनों का राजा कोई (शैलेन्द्र सिंह के साथ डुएट), और, जाना कहाँ है (बप्पी लाहिरी के साथ डुएट) जैसे गीतों के गायन के साथ उनकी आवाज की खनक हिंदी फ़िल्मी संगीत के अखाड़े में गूंजने लगी थी|
फिल्म – संकल्प (1975) के एकल गीत – तू ही सागर है तू ही किनारा है, के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गायिका का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला|
सुलक्षणा पंडित के पास अच्छे गाइडेंस की कमी दिखाई देते है अन्यथा उलझन की बड़ी सफलता के बाद ही उनकी स्थिति ऐसी रही होगी कि वे कहतीं कि जिस फिल्म में वे अभिनय करेंगीं उसमें अपने गीत वे स्वयं ही गायेंगी| शंकर शंभू (1976) में उन्होंने किशोर कुमार और महेंद्र कपूर के साथ तो गीत गया – आ पहुँची है इस मेले में साड्डी आज सवारी, लेकिन परदे पर उन पर फिल्माया गया डुएट – भीगे हुए जलवों पर, मोहम्मद रफ़ी के साथ आशा भोसले से गवाया गया| जबकि सुलक्षणा पंडित भी इसी गुणवत्ता से इस गीत को गा सकती थीं| फिल्म में उनकी सह अभिनेत्री बिन्दु पर फिल्माए गए गीतों को आशा भोसले और सुमन कल्याणपुर ने गया और इस योजना के अंतर्गत भी सुलक्षणा अपने पर फिल्माए गए इस बेहतरीन डुएट को स्वंय ही गाने का निवेदन कर सकती थीं| उन्होंने इस अवसर को गँवा दिया|
अपनापन (1977) के गीत – सोमवार को हम मिले मंगलवार को नैन, में किशोर कुमार द्वारा भारी बेस वाली गायिकी में गाये गए गीत में पहले अंतरे के बाद उनके द्वारा लिए गए लम्बे आलाप- होओ ओ ओ ओ की प्रतियोगिता में इसी आलाप को सुलक्षणा पंडित की गायिकी में उनकी पतली आवाज़ में सुनना इस गीत के सामान्य से बढ़कर प्रतीत होते आकर्षणों में शामिल है|
फिल्म – एक बाप छः बेटे, में उन्होंने रफ़ी के साथ एक डुएट – घड़ी मिलन की आई, को अपनी गायिकी प्रदान की और रफ़ी के हर सुर से पूरी दक्षता के साथ सुर मिलाये|
फिल्म फांसी (1978) के प्रसिद्द डुएट – जब आती होगी याद मेरी , में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के गीतों की प्रसिद्द ढोलक की थाप के साथ सुलक्षणा पंडित की गायिकी गीत को मधुरता प्रदान करती है| शशि कपूर की खूबसूरत सिनेमाई उपस्थिति से सुलक्षणा पंडित भरपूर सामंजस्य स्थापित करती हैं| परदे पर लाल पोल्का डॉट्स की साड़ी पहने उनकी प्रसन्नता की उर्जा से लबरेज उपस्थिति गीत के फिल्मांकन में सौंदर्य और जीवन्तता लेकर आती है और गीत को अविस्मरणीय रूप से दर्शनीय बनाती है|
इसी फिल्म के एक अन्य एकल गीत – मिल जाते हैं मिलने वाले, में न केवल उनकी भाव-प्रवण गायिकी सुनाइ देती है बल्कि इसके फिल्मांकन में उनके सटीक अभिनय के भी दर्शन होते हैं| उनकी खूबसूरत सिनेमाई उपस्थिति से उस दौर में उनके अच्छे स्वास्थ्य का भी पता चलता है|
उत्तम कुमार अभिनीत बंदी (1978) के हिंदी संस्करण में न केवल सुलक्षणा पंडित ने नायिका की भूमिका निभाई बल्कि श्यामल मित्रा के संगीत से सजा एक अत्यंत मधुर डुएट – जिसे यार का सच्चा प्यार मिले, किशोर कुमार के साथ गाया| इस फिल्म के अन्य गीत – फिर होली कैसी होली, में पुनः उनके हाथ से एक अवसर निकल गया और इस गीत को किशोर कुमार के साथ आशा भोसले ने गाया और आशा ने परदे पर सुलक्षणा पंडित और प्रेमा नारायण दोनों के लिए गाया| यह बिलकुल संभव था कि गीत का जो हिस्सा सुलक्षणा पंडित पर फिल्माया गया उतनी पंक्तियाँ वे स्वयं गातीं|
अगर वे ऐसी छूट भी निर्माता-निर्देशक-संगीतकार आदि को देतीं कि अगर किसी फिल्म में वे नायिका की भूमिका निभा रही हैं तो अपने सारे गीत वे स्वयं गाएंगीं और गायन के लिए अलग से फीस नहीं लेंगीं तब भी उनकी स्थिति ज्यादा मजबूत बनती|
फिल्म गृहप्रवेश में कनु रॉय के संगीत निर्देशन में सुलक्षणा पंडित को गीत – बोलिए सुरीली बोलियाँ में भूपिंदर सिंह के साथ एक सेमिक्लासिकल डुएट गीत गाने का अवसर मिला और उन्होंने शानदार तरीके से इस दायित्व को निभाया| अभिनेत्री प्रियदर्शिनी पर फिल्माए इस गीत ने सुलक्षणा पंडित की गायिकी की प्रतिभा की चमक को बखूबी दर्शाया| इसी फिल्म के एक ग़ज़ल नुमा एकल गीत – आप अगर आप न होते तो भला क्या होते लोग कहते हैं पत्थर के मसीहा होते| गुलज़ार द्वारा लिखे श्रृंगार रस में डूबे इस गीत के भावों को सुलक्षणा पंडित ने खूबसूरती से उभरा है और यह उनकी संगीत यात्रा में एक शानदार उपलब्धि लाने वाला गीत है|
फिल्म – सावन को आने दो (1979) में सुलक्षणा पंडित ने 70 के दशक में अर्द्ध-शास्त्रीय धुनों पर आधारित फ़िल्मी गीतों के प्रसिद्द गायक येसुदास संग सुर मिलाये और लोक गीत के कलेवर में ढले गीत – कजरे की बाती, को गाकर एक अच्छी पार्श्व गायिका के रूप में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया|
फिल्म- गरम खून (1979) में शंकर (शंकर जयकिशन) के संगीत निर्देशन में सुलक्षणा पंडित ने रफ़ी के साथ एक बेहद खूबसूरत डुएट गाया – परदेसिया तेरे देस में| यह गीत सुलक्षणा पंडित के दोनों प्रतिभाशाली रूपों- गायिका और अभिनेत्री का भरपूर प्रदर्शन करता है| विनोद खन्ना के साथ जिस सहजता से सुलक्षणा ने इसे अभिनीत किया है वह देखने लायक बात है| दोनों खूबसूरत चहेरों वाले अभिनेता थे और इस गीत में उनकी आपसी सामंजस्यता देखने लायक है| उनकी ऑंखें और मुस्कानें इस रोमांटिक दुएट के प्रभाव को कई गुना बढ़ा देती हैं| कैमरा गीत को सप्रयास प्रस्तुत कर रहे शशि पुरी और उनकी साथी नृत्यांगना (शायद मीना टी) पर जाता है तो दर्शक को कोफ़्त हो सकती है कि जो गीत विनोद खन्ना और सुलक्षणा पंडित की जुगलबंदी के सहज प्रवाह में बह रहा था उसमें अन्य चरित्रों की आवश्यकता ही क्या थी| यह गीत सुलक्षणा पंडित को उनके सबसे उन्मुक्त अभिनय प्रदर्शन के साथ प्रस्तुत करता है जहाँ उनका व्यक्तित्व अपनी सम्पूर्ण खूबसूरती और जीवन्तता में खिल उठता है|
फिल्म – खानदान (1979) में सुलक्षणा पंडित संगीतकार खय्याम और गीतकार नक्श लायलपुरी के गज़ल नुमा गीतों के संसार में प्रवेश करती हैं| माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं, लता मंगेशकर या आशा भोसले के गायन के ओर जाता लेकिन यह सौभाग्य से सुलक्षणा पंडित को मिला और उन्होंने इसे प्रभावशाली तरीके से गाकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया| इस गीत के बारे में उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इसे रिकॉर्ड तो खानदान फिल्म के लिए किया गया था और इसके ऑडियो संस्करण में इसे शामिल भी किया गया था लेकिन इस गीत को फिल्म में शामिल नहीं किया गया| दो साल बाद बनी आहिस्ता आहिस्ता फिल्म में इसे पद्मिनी कोल्हापुरे के ऊपर फिलमाया गया|
इसी फिल्म में एक शोखी और चुलबुलेपन से भरा गीत – मैं न बताऊंगी, सुलक्षणा पंडित को गाने और अभिनीत करने के लिए मिला और इस सुअवसर का भरपूर लाभ उठाया|
खय्याम ने फिल्म – थोड़ी सी बेवफाई (1980) में किशोरी पद्मिनी कोल्हापुरी के लिए सुलक्षणा पंडित से पार्श्व गायन कराया और एक अमर रोमांटिक डुएट – मौसम मौसम लवली मौसम, गायक अनवर के साथ गवाया|
सन 1980 में सई परांजपे ने अपनी दूसरी फिल्म – स्पर्श, निर्देशित की तो फिल्म के संगीतकार कनु रॉय ने इंदु जैन द्वारा लिखे गए साहित्यिक कविताओं जैसे तीन गीतों को सुलक्षणा पंडित से गवाया|
“गीतों की दुनिया में सरगम” बाल गायकों संग गाया गया एक कोरस गीत है और ऐसे गीतों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है| “खाली प्याला धुंधला दर्पण” एक सेमी क्लासीकल गीत है जिसमें उदासी का पुट है जबकि “प्याला छलका उजला दर्पण” जीवन, आस और खुशी से लबरेज गीत है और दोनों गीतों के एकदम उलट भावों को प्रभावशाली तरीके से गाकर सुलक्षणा पंडित अपने गायन की बड़ी रेंज का प्रदर्शन करती हैं|
फिल्म – साजन की सहेली (1981) में संगीतकार उषा खन्ना ने सुलक्षणा पंडित से रेखा के लिए एक गीत में पार्श्व गायन करवाया| रफ़ी के साथ गया यह डुएट – जिसके लिए सबको छोड़ा उसी ने मेरे दिल को तोडा, बेहद प्रसिद्द रहा है|
चेहरे पे चेहरा (1981) में दो गीत – तुमसे कहना है कि दुश्वार, और आज सोचा है ख्यालों में बुलाकर तुमको, फिल्म राज़ (1981) में छोटी बहन विजयेता पंडित और राशि के साथ गया कोरस गीत – तुम जो हमें इतनी प्यारी लगती, गाकर उनके गायन और अभिनय की पारी सुस्त पड़ गयी|
1982 में बनी फिल्म दिल ही दिल में, सुलक्षणा पंडित ने विनोद मेहरा संग अभिनय किया और इस फिल्म का संगीत उनके भाइयों मनधीर और जतिन पंडित ने दिया था और उन्होंने रफ़ी के एक साथ एक डुएट भीगी भीगी वादी में गाया|
1985 में प्रदर्शित फिल्म- काला सूरज, में उन्होंने येसुदास संग एक डुएट गाया- अपनी बाहों का हार दे, और अगले 1-2 सालों में उनके 2-3 गीत और संगीत प्रेमियों के समक्ष आये होंगे लेकिन उसी समय से वे इसी के साथ वे समय की भूल भुलैया में खो गयीं|
अभिनेत्री के रूप में 1981 में आई फिल्म – वक्त की दीवार में उन पर और संजीव कुमार पर फिल्माया गया डुएट – मनचाही लडकी गर कोई मिल जाए, अच्छा प्रसिद्द रहा है| कई कई सालों से बन रही उनकी चंद फ़िल्में 1987-88 तक प्रदर्शित होती रहीं लेकिन अब एक अच्छे फ़िल्मी जीवन की ज्योति जलने के आसार मंद पड़ चुके थे|
अभिनेत्री के रूप में अपनी पहली फिल्म – उलझन (1975) उन्होंने संजीव कुमार जैसे अत्याधिक प्रतिभाशाली अभिनेता के साथ की थी| उन्होंने दिल भी लगाया तो संजीव कुमार के साथ ही| संजीव कुमार उनके संग विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सके| सुलक्षणा पंडित भी किसी और से विवाह नहीं कर सकीं| अल्पायु में ही संजीव कुमार की मृत्यु ने 198६ के बाद उनके जीवन और उनके फ़िल्मी जीवन पर निस्संदेह असर डाला होगा|
उनके अनुज जतिन–ललित 1991 से फिल्म संगीत के पटल पर उभर आये थे लेकिन वे भी एक गायिका के रूप में उनकी वापसी नहीं करा पाए| संजय लीला भंसाली की खामोशी-द म्यूजिकल (1996) में, उन्होंने सुलक्षणा पंडित से भी एक गीत गवाया जो उनका अंतिम फ़िल्मी गीत सिद्ध हुआ| फ़िल्मी संगीत में अच्छी सफलता पाने के बावजूद जतिन–ललित उनसे गीत नहीं गवा पाए|
कहा जाता है कि उनके जीवन के अंतिम 30-35 साल बेहद कष्ट और अभाव में बीते|
क्या यह काल की ही योजना होगी कि सुलक्षणा पंडित ने धरा से विदाई का दिन भी वही चुना जिस दिन संजीव कुमार इस जगत को छोड़ गए थे? जीवन में साथ नहीं निभ पाया लेकिन दोनों की पुण्य तिथियाँ सदा एक ही दिन मनाई जायेंगी और एक के कारण दूसरे का स्मरण उन्हें यादों में साथ दिलवाता रहेगा|
सुलक्षणा पंडित एक ऐसी संभावना थी जिनकी प्रतिभा गायन और अभिनय में पूरी तरह खिल नहीं पायी| उनकी दो क्षेत्रों की प्रतिभा के वृक्ष पर सफलता की कलियाँ खिलकर पूर्ण विकसित पुष्प नहीं बन पायीं|
…[राकेश]
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