बंदिनी में सचिन देव बर्मन के साथ एक बेहद खूबसूरत गीत (मोरा गोरा अंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे) से फ़िल्मी गीत लिखने की शुरुआत करने वाले गुलज़ार पिछले 62 वर्षों से निरंतर संगीत निर्देशकों और फ़िल्म निर्देशकों की विभिन्न पीढ़ियों के साथ रचनाकर्म में रत रहे हैं| सलिल चौधरी, हेमंत कुमार, राहुल देव बर्मन (पहले उनके पिता सचिन देव बर्मन के साथ भी) के साथ नियमित गीत लिखने वाले गुलज़ार ने कनु रॉय के साथ अनुभव में करिश्माई गीत लिखे| ज्यादातर संगीत निर्देशक अपने नियमित गीतकार के साथ ही काम करते थे और जो भी संगीत निर्देशक इस नियंत्रित स्वानुशासन से बाहर आकर गुलज़ार की लेखनी और अपने सुरों को संगत में बाँधने बैठा उसी के साथ गुलज़ार ने अविस्मरणीय गीत लिखे|
70 के दशक में कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और मदन मोहन के अपने-अपने निश्चित गीतकार होते थे लेकिन इन तीनों के लिए भी गुलज़ार ने यादगार गीत लिखे| बाद में राजेश रोशन और खय्याम के साथ भी उन्होंने बेहतरीन गीत लिखे| जयदेव, इलैयाराजा, वनराज भाटिया, एम एम क्रीम, हृदयनाथ मंगेशकर, उत्तम सिंह, शांतनु मोइत्रा, जतिन – ललित, आदि में प्रत्येक के साथ गुलज़ार ने एक दो फ़िल्में ही की होंगी लेकिन सभी के साथ ऐसे गीत रचे जो संगीत रसिकों के लिए अमर हैं|
पिछली सदी के आख़िरी दशक और उसके बाद से अब तक तो उन्होंने बहुत से नए संगीतकारों के साथ गीत लिखे हैं, जिनमें प्रीतम, सन्देश शांडिल्य, शंकर एहसान लॉय, के साथ तो कई-कई फ़िल्में कीं| अगर याददाशत के भरोसे से ही लिखने बैठा जाए, और उनकी फिल्मोग्राफी न देखी जाए तो जाने कितने नाम अभी शेष रहते हैं| विशाल भारद्वाज के साथ तो उन्होंने फ़िल्मी और गैर फ़िल्मी दोनों रूपों में गीत लिखे| ए.आर.रहमान के साथ भी पिछले 26-27 सालों में उन्होंने कई गीत लिखे हैं, जिनमें बहुत से बहुत प्रसिद्द हए हैं|
ऐसा अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि मजरुह सुल्तानपुरी के सिवा किसी और गीतकार ने इतने भिन्न संगीतकारों के लिए गीत नहीं लिखे होंगे| गैर फ़िल्मी कार्य में जगजीत सिंह के साथ उनकी जुगलबंदी तो बेहद प्रसिद्द रही ही है|
आबिद सुरती द्वारा बच्चों के लिए रचित प्रसिद्द श्रंखला – 72 साल का बच्चा, की तरह ही युवा ऊर्जा से लबरेज़, 91 साल के गुलज़ार को अपनी फ़िल्म, या अपने संगीत में गीत लिखवाने के लिए एक 20 साल का युवा इस नाते तो उनसे संपर्क करने से न हिचकिचाएगा कि उनकी उम्र ज्यादा है| उनकी ऊँची साख के कारण वह अवश्य हिचकिचा सकता है कि जाने वे तैयार भी होंगे या नहीं उसके साथ काम करने के लिए|
हिन्दी फ़िल्म के संगीत से परिचित सारी दुनिया को भली भांति ज्ञात है कि गीत लिखने के लिए गुलज़ार साब की कोई निश्चित आयु नहीं है| वे एक किशोर के रूप में परिवर्तित होकर बिलकुल आजकल के किशोरों को छू जाने वाले गीत भी लिख सकते हैं और एक लम्बी आयु पाकर जीवन का तमाम अनुभव पाए एक बुजुर्ग को भी चौंका देने वाले दर्शन से भरे गीत भी रच सकते हैं तो बेतरतीब ऊर्जा से भरे लोगों को थिरकने के लिए सामग्री देने वाले गीत भी| एक गैंगस्टर भी उनके गीत को अपने ही संसार का सटीक गीत मानेगा और साधना में रत संन्यासी को भी उनका लिखा गीत अपना सा ही लगेगा|
प्रेम की हरेक अवस्था के लिए उनके तरकश में तीर रुपी गीत भरे ही रहते हैं| धरती से लेकर तारामंडल तक कुछ भी उनके गीतों की शब्दावली का हिस्सा बन सकता है| पौराणिक मिथकों से लेकर आधुनिक जगत के जीवन से जुड़े शब्द उनके गीतों में आसानी से विचरण करते रहते हैं|
जिस तरह अपने को स्वस्थ व दुरुस्त रखने के लिए वे टेनिस खेलते रहे हैं उसी तरह हिंदी गीतों के रसिकों के साथ खेलने के लिए भी वे अपने गीतों में कलाकारी की एक अलग ही दुनिया रचाए रखते हैं| उनका हर गीत संगीत रसिक को कुछ सिखा कर जाता है, यह उसके लिए एक ऐसे विम्ब से साक्षात्कार करना भी हो सकता है, जो उससे परिचित तो रहा है लेकिन जिसे परिभाषित करने लायक भाषा उसके पास नहीं रही और एक दिन अचानक उस दृश्य की शाब्दिक परिभाषा या वर्णन वह गुलज़ार रचित गीत में पा जाता है और विस्मय से भर जाता है| अपनी ही संस्कृति के कम सुने या अब तक अनजान शब्दों, के रुबरु वह, गुलज़ार रचित गीतों के द्वारा, आ जाता है|
यूं तो उन्नींदे और नींद की खुमारी में भी गुलज़ार के बहुत से गीतों को सुना जा सकता है लेकिन कभी ऐसा भी वक्त्त आ जाता है जब ऐसे गीतों में भी ऐसा कुछ सामने आ जाता है जिसका अर्थ जाने बिना चैन नहीं पड़ता| उनके ज्यादातर गीत सजग दिमाग के लिए एक उर्वर मैदान प्रस्तुत करते हैं और वह गीतों के माध्यम से एक उत्सुक श्रोता जाने कहाँ कहाँ की यात्रा पर निकल सकता है|
गुलज़ार के गीतों पर यह आरोप कोई नहीं लगा सकता कि उनके गीत किसी को बिगाड़ रहे हैं, उनके गीत सुनने और पढने वाले के ज्ञान में वृद्धि करने वाले ही होते हैं| गुलज़ार धीरे धीरे एक ऐसे विशाल वृक्ष की भांति हो गए हैं जिसकी अनगिनत शाखाएं , टहनियां और पत्तियाँ वृक्ष के नीचे कुछ देर ठहरने वाले यात्री को कुछ शानदार उपहार जैसा प्रदान कर देती हैं|
गुलज़ार ने साहित्यिक कविता को फ़िल्मी गीतों के संसार में प्रविष्ट कराया है और ऐसा बार बार किया है और यह उनकी ठसक है कि इसके बावजूद फ़िल्म उद्योग, जिसे साहित्यिक तत्व भाते नहीं हैं, बार बार उनके आशियाने पर जाता है उनसे साथ काम करने की अनुमति मांगने| श्वेताम्बरी गुलज़ार ने स्वंय को साहित्यिक दुनिया के स्वाभिमान के रूप में फ़िल्मी दुनिया में अपने अस्तित्व को स्थापित किया है| साहित्यिक दुनिया इसे आज माने या 25-30 साल बाद माने, आज की सच्चाई तो यही है|
…[राकेश]
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