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Cinema, Theatre, Music & Literature

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Cinema

जाने वाले सिपाही से पूछो (उसने कहा था 1960) – गीतकार शैलेन्द्र या मख़दूम?

बिमल रॉय निर्मित और मोनी भट्टाचार्जी निर्देशित फ़िल्म - उसने कहा था, हिंदी के लेखक चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' की एकमात्र उपलब्ध कहानी - उसने कहा था, पर आधारित है| सलिल चौधरी के मधुर एवं आकर्षक संगीत से सजी इस फ़िल्म... Continue Reading →

भारत में सिनेमा का पहला विज्ञापन!

जब स्वामी विवेकानंद बाद में बेहद प्रसिद्द हो जाने वाली शिकागो की यात्रा हेतु भारत से शिकागो वाया वैंकुवर पहुँच रहे होंगे तब भारत में सिनेमा अपनी पहली मुंह दिखाई कर रहा था| July 1896 के पहले सप्ताह में जब... Continue Reading →

Sylvester Stallone और उनका पालतू कुत्ता

Rocky और Rambo जैसी विश्व विख्यात फिल्मों के सर्जक हॉलीवुड के प्रसिद्द एक्शन स्टार Sylvester Stallone के चेहरे का एक हिस्सा जन्म से ही पैरालीसिस से ग्रस्त था| पर बचपन में  ही उनमें अभिनेता बनने की इच्छा घर कर गई थी और उन्होंने अपने सपने को पूरा... Continue Reading →

Mr & Mrs Iyer और पहलगाम : धर्म पहचान कर हत्या

अभिनेत्री एवं निर्देशक अपर्णा सेन ने सन 2002 में हिन्दू-मुस्लिम सांप्रदायिक तनाव पर एक फ़िल्म बनायी थी - Mr. and Mrs. Iyer जिसमें हिन्दू नायिका (कोंकना सेन सरमा) और मुस्लिम नायक (राहुल बोस) एक बस यात्रा के दौरान अलग बगल... Continue Reading →

Pakeezah (1972) : झूठ को सच बनाता कैमरा

सिनेमा परदे पर मायाजाल रचता है और दर्शक उसमें जानबूझ कर फंसते हैं| कई बार मायाजाल भी झूठे चित्रों से रचा जाता है जिसके बारे में अक्सर दर्शकों को पता नहीं चलता| स्टंट सीन्स में तो जानकार मानकर ही चलते... Continue Reading →

सिंगल स्क्रीन थिएटर : हिंदी सिनेमा की लुप्त हो चुकी रीढ़ (HK Verma)

~ © HK Verma [नोट : यह लेख श्री एच के वर्मा के अंगरेजी में लिखे लेख का हिंदी अनुवाद है| HK Verma, an alumnus of FTII, is a renowned cinematographer who earlier in his career collaborated with celebrated cinematographer KK Mahajan on many great... Continue Reading →

ऐसा समां न होता – ज़मीन आसमान (1984)

फिल्म ज़मीन आसमान (1984) में संजय दत्त और अनीता राज पर फिल्माया गीत "ऐसा समां न होता, कुछ भी यहाँ न होता, मेरे हमराही जो तुम न होते" से है, अस्सी के दशक में पंचम द्वारा संगीतबद्ध उन बेहतरीन गीतों... Continue Reading →

घायल हिंदी सिनेमा : रीस्टार्ट का समय (HK Verma)

बॉलीवुड की चमक फीकी पड़ती जा रही है, इसकी जगह एक कठोर वास्तविकता ने ले ली है कि यह एक ऐसे संकट से घिर गया है जो इसने खुद ही पैदा किया है। अत्यधिक बजट में चौंका देने वाला सबसे... Continue Reading →

Mahandi (1994) : एक पिता की मार्मिक कथा

80 के दशक के अंत में और 90 के दशक के शुरू में दो घटनाएं हुईं| तमिलनाडू के एक राजनेता पर पीडोफ़ाइल्‌ होने के आरोप लगे थे, उससे पहले भी एक राज्य के मुख्यमंत्री पर ऐसे आरोप लगे थे और इलस्ट्रेटेड... Continue Reading →

Jalwa (1987)

Martin Brest की प्रसिद्द फ़िल्म Beverly Hills Cops (1984) से प्रेरित होकर पंकज पाराशर ने जलवा बनायी थी जिसे, खट्टा मीठा, और चश्मे बद्दूर, जैसी रोचक मध्यमार्गी फ़िल्में निर्मित करने वाले निर्माता गुल आनंद का भरपूर सहयोग मिल गया| भारत... Continue Reading →

ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनाम अमेरिकी राष्ट्रपति – Love Actually 2003

सिनेमा, साहित्य की तरह उस काल का ही दर्पण नहीं होता कभी कभी वह वर्तमान को देख कर आगे की घटनाओं का पूर्व अनुमान भी लगा लेता है | वर्तमान में जो अमेरिका में घट रहा है वह बिलकुल भी... Continue Reading →

1942 A Love Story : देश-प्रेम बनाम वैयक्तिक प्रेम

दो तरह के प्रेम (निजी प्रेम और देश प्रेम) के मध्य संघर्ष इस फ़िल्म के बुनियादी तत्वों में से एक है| प्रेम, देशप्रेम, और स्वतंत्रता आन्दोलन का संघर्ष की पृष्ठभूमि में देशप्रेम जब आहुति माँगता हो तो व्यक्तिगत प्रेम एक व्यसन की तरह... Continue Reading →

PremShashtra 1974 : एक विवादास्पद प्रेमकहानी

देव आनंद हिंदी सिनेमा के बड़े सितारों में फ़िल्म का विषय चुनने में सबसे साहसी अभिनेता रहे हैं| जिन विषयों की तरह सुपर स्टार मुंह करके सांस भी न लें कि अगर पत्रकारों को ऐसी भी भनक लग गयी कि उन्होंने... Continue Reading →

Jewel Thief (1967) : बेशकीमती संगीतमयी सस्पेंस थ्रिलर

अगर थ्रिलर फिल्मों की बात छिड़ ही जाए तो हिंदी सिनेमा मुख्य तौर पर दो हिस्सों में बंटता है, विजय आनंद की ज्वैल थीफ से पहले और इसके बाद| और दोनों ही कालों में एक भी फ़िल्म इसकी बराबरी में खड़े होने लायक नहीं... Continue Reading →

सूरज बडजात्या की फ़िल्में और रामायण

''होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन! कह महाशक्ति राम के वदन में हुईं लीन।" [ "राम की शक्तिपूजा" - निराला] सूरज बडजात्या के किरदारों या उनकी कहानी की बात है तो सूरज की प्रेरणा का स्रोत रामायण और राम चरित मानस की कहानी और पात्र रहे हैं।... Continue Reading →

आख़िरी ख़त(1966): दुष्यंत,शंकुतला और भरत मुंबई में

दुष्यंत पर्वतीय अंचल में घूमते-घूमते पहुँच गया| वहां जंगल में उसे सुन्दर, मासूम, और अल्हड़ता से भरपूर जीवन जीती शकुन्तला दिखाई दी| घर में पितृहीन, सौतेली माँ के कटु वचनों से आहत रहती 17-18 साल की गरीब लड़की, जिसके अन्दर... Continue Reading →

Cinema Cinema (1979) : हिंदी सिनेमा का इतिहास

भारतीय जनमानस में फिल्मों का स्थान बेहद महत्वपूर्ण एवं विशेष रहा है, काल कोई भी हो| एक विकासशील या गरीबी से संघर्ष करते देश में गाँवों, कस्बों, छोटे शहरों या मझौले शहरों एवं पूर्व के बड़े शहरों (जैसे दिल्ली ,... Continue Reading →

Welcome To Sajjanpur (2008) : सामाजिक-राजनीतिक व्यंग्य

श्याम बेनेगल की फ़िल्म - Welcome To Sajjanpur (2008) मात्र एक कॉमेडी फ़िल्म न होकर सामाजिक-राजनीतिक व्यंग्य है और एक अच्छे व्यंग्य की तरह सामाजिक विसंगतियों पर हास्य-व्यंग्य के माध्यम से चुटीली चोट करती है| इस फ़िल्म में कथा-पटकथा लेखक अशोक मिश्रा की लेखनी... Continue Reading →

श्याम बेनेगल का भारतीय परिवेश से भरा सिनेमा

श्याम बेनेगल का सिनेमा वर्तमान के "Make in India" नारे पर विशुद्ध रूप से खरा उतरता है| श्याम बेनेगल की विविधता से भरी फिल्मोग्राफी इतनी संपन्न है कि भारत के सामजिक-राजनीतिक इतिहास को देखने, जानने और समझने के लिए दर्शक की... Continue Reading →

The Karate Kid (2010): मार्शल आर्ट गुरु-शिष्य परंपरा

भारतीय मिथक के किस्सों में खोजें तो बहुत से उदाहरण (श्रीराम -ब्रह्मास्त्र, अश्वत्थामा - द्रौपदी पुत्र एवं उत्तरा गर्भ, परशुराम-कर्ण शस्त्र विद्या प्रसंग आदि) मिल जायेंगे जहां युद्ध कला या शस्त्र विद्या के दुरूपयोग से तबाही मची| इसलिए इसके लिये हर काल में कुछ नियम कायदे बनाए गए और... Continue Reading →

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