parttioinएक ही विषय पर दो लेखक अलग-अलग कहानियाँ लिख सकते हैं। एक ही कहानी पर दो पटकथा लेखक भिन्न लगने वाली पटकथायें तैयार कर सकते हैं। एक ही विषय पर दो निर्देशक अलग प्रतीत होने वाली फिल्में बना सकते हैं। निर्देशक अपनी संवेदना और अपने रुझान के अनुरुप फिल्म की प्रकृत्ति तय करते हैं। किसी निर्देशक को एक ही कहानी के कुछ तत्व पसंद आते हैं और दूसरे निर्देशक को उसी कहानी के कुछ अन्य ही तत्व भाते हैं।

केवल कहानी के संदर्भ में ही देश-काल-वातावरण के पैमाने नतृत्व प्रदान करते बल्कि ये तीनों पैमाने किसी भी व्यक्त्ति को एक समझ देते हैं, उसे एक खास तरीके की समझ प्रदान करते हैं और उसकी सोच और कल्पना को एक खास ढ़ंग से विस्तार प्रदान करते हैं और उसकी सोच और कल्पना को सीमाओं के अंदर भी ढ़ालते हैं।

लेखक और निर्देशक की कल्पनाओं, क्षमताओं और सीमाओं के बाद अभिनेताओं की क्षमताओं एवम सीमाओं के कारण भी किसी विषय पर बनी फिल्म की गुणवत्ता, दिशा और प्रकृत्ति निर्धारित होती है।

जरुरी नहीं कि यदि किसी भारतीय निर्देशक को गाँधी फिल्म की पटकथा दे दी जाती तो वह ऐसी ही फिल्म बना पाता जैसे कि Richard Attenborough ने बनायी। इन्ही सब अभिनेताओं एवम बिल्कुल यही पटकथा लेकर भी भारतीय निर्देशक जो फिल्म बनाता वह इस गाँधी फिल्म से भिन्न लगती।

कनाडा में रहने वाले भारतीय (कश्मीरी) मूल के सिनेमेटोग्राफर Vic Sarin ने यह फिल्म Partition बनायी है। द्वितीय विश्वयुद्ध के आसपास शुरु होने वाली कहानी भारत से पाकिस्तान नामक एक नये राष्ट्र के निर्माण के दौरान हुये दंगों से गुजरती हुयी विभाजन के कुछ साल बाद जाकर समाप्त होती है।

विभाजन के बाद हिन्दू एवम सिख जनता के पाकिस्तान से भारत स्थानांतरण और मुस्लिम जनता के भारत से पाकिस्तान जाने के दौरान पनपने वाले दंगों में दस लाख से ज्यादा लोग मारे गये थे। हर सम्प्रदाय का व्यक्त्ति उन दंगों में मारा गाया।

इन दंगों से फैली नफरत ने सबसे पहले और सबसे ज्यादा भारत-पाक सीमा पर स्थित पंजाब प्रांत को बहुत ज्यादा प्रभावित किया था। सीमा पर रहने वाले लोगों ने ही भीषण दंगों में मचे कत्लेआम की वीभत्सता को अपनी आँखों देखा था और सहा था। हिंदू -सिखों और मुसलमानों के बीच पनपी नफरत के कारण लाखों जानें चली गयीं। लाखों परिवार तबाह हो गये। इन दंगों और नफरत का सिलसिला वहीं तक सीमित नहीं रहा बल्कि वह नफरत लोगों के दिलों में घुसपैठ करके बैठ गयी।

द्वितीय विश्व-युद्ध की विभीषिका से विचलित होकर ब्रिटिश सेना में अधिकारी ज्ञान सिंह (Jimi Mistry) सेना की नौकरी छोड़कर पंजाब स्थित अपने गाँव में आकर रहने लगता है। वह शांति से जीवन व्यतीत करना चाहता है। युद्ध ने उसके मानस को गहराई तक प्रभावित किया है। उसके अंग्रेज मित्र Andrew (Jesse Moss) की युद्ध के दौरान हुयी वीभत्स मौत भी उसके विचलन का एक कारण है। उसका एक अन्य मित्र अवतार सिंह (इरफान खान) भी सेना की नौकरी छोड़कर गाँव में आ बसता है।

भारत-पाक विभाजन के दंगों के समय भी ज्ञान चुपचाप खेती-बाड़ी में व्यस्त रहता है। परंतु अवतार सिंह उन सिखों के साथ है जो समझते हैं कि मुसलमानों ने पाकिस्तान में बहुत सारे सिख और हिंदू मार डाले हैं। पाकिस्तान से आने वाली, लाशों से लदी ट्रेन को देखकर उनका खून और खौलता है और वे पाकिस्तान जाने वाले काफिले पर हमल करके मुसलमानों को मारने लगते हैं।

एक मुस्लिम परिवार की लड़की- नसीम खान (Kristin Kreuk) एक हिंसक सिख से बचने के चक्कर में अपने परिवार से बिछड़ कर जंगल में छिप जाती है। संयोग से वहाँ से गुजर रहे ज्ञान सिंह की नज़र नसीम पर पड़ती है और इधर-उधर घूम रहे सिखों की नज़र बचाते हुये वह उसे अपने घर ले आता है और शरण देता है।

जल्दी ही गाँव में सभी सिख परिवारों को पता चल जाता है कि ज्ञान ने एक मुसलमान लड़की को अपने घर में पनाह दी है। अवतार सिंह सहित बहुत सारे सिख, जिनमें महिलायें भी शामिल हैं, नसीम को मारने के लिये ज्ञान के घर पहुँचते हैं। ज्ञान को किसी भी तरह नसीम की जान बचानी है और वह बुद्धि से अपनी जमा-पूँजी का सहारा लेकर नसीम के सर पर आयी मौत की बला को टाल देता है।

धीरे-धीरे ज्ञान एवम नसीम में परस्पर प्रेम होता है। गाँव वाले भी धीरे धीर नसीम को अपनाने लगते है। नसीम ज्ञान की पत्नी बन जाती है और दोनों एक पुत्र-विजय के माता-पिता बन जाते हैं। नसीम की गृहस्थी ज्ञान के घर जम जाती है पर यह सब खुशियाँ भी उसके मन से माता-पिता और भाईयों से बिछड़ने के ग़म को कम नहीं कर पातीं और उसकी खातिर ज्ञान अपने दिवंगत मित्र Andrew की बहन Margaret (Neve Campbell) और उसके मित्र Walter (John Light) की सहायता लेता है पाकिस्तान में नसीम के परिवार के सदस्यों को खोजने में। कुछ समय बाद Margaret ज्ञान के गाँव आकर खबर देती है कि नसीम के परिवार का पता चल गया है।

नसीम, ज्ञान और बेटे विजय को भारत में ही छोड़कर अकेली पाकिस्तान चली जाती है, अपने परिवार से मिलने। वह एक माह के लिये गयी है पर वह वापिस नहीं आती। वह वापिस नहीं आ पाती क्योंकि उसके भाई अकबर (आर्य बब्बर) ने उसे घर में बंद कर दिया है।

ज्ञान को नसीम को भारत वापिस लाने के लिये पाकिस्तान जाना है। प्रेमी क्या न कर गुजरते हैं। अपने खोये प्रेम को वापिस पाने के लिये सिख ज्ञान सिंह अपने केश कटाता है, मस्जिद में कलमा पढ़कर बाकायदा मुसलमान बनता है और तब अपने पुत्र के साथ पाकिस्तान के लिये रवाना होता है।

हिंसा में जन्मी प्रेम कहानी एक दुखद परिणति को प्राप्त होती है।

अगर यह फिल्म 2001 से पहले बन जाती तो सनी देयोल अभिनीत गदर-एक प्रेम कथा, इस फिल्म से प्रेरित बतायी जाती पर अब यह अंग्रेजी फिल्म गदर से प्रेरित होकर बनी है।

गदर और इस अंग्रेजी फिल्म की कहानी में बहुत समानतायें हैं। हाँ दोनों फिल्मों की पटकथाओं में काफी अंतर है।

दोनों फिल्मों के ट्रीटमेंट में बहुत अंतर है। गदर में नाटकीयता ज्यादा थी। यहाँ ज्ञान सनी देयोल की तरह हैंड पम्प उखाड़कर पाकिस्तानियों को खदेड़ता नहीं।

भारतीय दर्शकों को खटक सकता है नसीम की भूमिका को विदेशी अभिनेत्री Kristin Kreuk से करवाया जाना। शुरु में उन्हे एक मुस्लिम महिला के रुप में स्वीकार करने में कठिनाई भी होती है पर यह एक हॉलीवुड प्रोडक्शन है और उन्होने अपने यहाँ की व्यवसायिक जरुरतों को ध्यान में रखकर नायक-नायिका दोनों की भूमिका विदेशी अभिनेताओं को दी है। Jimi Mistry के पिता जरुर भारतीय मूल के थे पर Jimi ब्रिटेन में ही जन्मे और पले और बड़े हुये हैं।

हालाँकि शुरुआत की छोटी-मोटी हिचकिचाहट को छोड़कर वे जल्दी ही ज्ञान के रुप में दर्शक को स्वीकार होने लगते हैं।

बहुत सारी सहायक भूमिकायें भारतीय अभिनेताओं ने निभाई हैं। इरफान खान के अलावा फिल्म में विनय पाठक, डॉली अहलूवालिया, मधुर जाफरी, जैसे कलाकार उपस्थित हैं और चारों ने बड़े अच्छे ढ़ंसे अपनी अपनी भूमिकायें निभाई हैं।

फिल्म की सिनेमेटोग्राफी बहुत अच्छी है। आश्चर्य की बात है कि कुछ दृष्य़ों को छोड़कर लगभग सारी फिल्म की शूटिंग कनाडा में ही सेट लगाकर की गयी थी। सेट-डिजायनिंग बहुत अच्छी है।

गदर देखने के बाद भी इस फिल्म को देखना बासी अहसास नहीं लाता और विषय के अलग तरह के ट्रीटमेंट के कारण फिल्म आकर्षित करती है। शुरुआत से ही ऐसा प्रतीत होने लगता है कि फिल्म हॉलीवुड के व्याकरण के मानकों के अनुरुप बनायी गयी है।

गदर से इसकी तुलना करें तो कुछ बातों में गदर अच्छी लगती है और कुछ में Partition ज्यादा भाती है।

…[राकेश]