हिन्दी फिल्म संगीत में संगीतकारों द्वारा रागमलिका या रागमाला बनाये जाने के उदाहरण बहुत नहीं होंगे। ज्यादातर गीत किसी एक ही राग पर रचे-बुने और गढ़े जाते हैं। एक ही गीत में एकाधिक रागों का प्रयोग हुआ हो ऐसा कम ही देखने को मिलता है। संभवतः खेमचंद प्रकाश और के.एल.सहगल की बेशकीमती जोड़ी ने तानसेन फिल्म में फिल्मी संगीत में रागमाला पिरोने की शुरुआत की थी।
सन 1957 में हिन्दी में एक फिल्म बनायी गयी सुवर्ण सुन्दरी, जो कि पहले ही तेलुगू और तमिल में बनकर अपने संगीत के कारण प्रसिद्धि पा चुकी थी। तेलुगू और तमिल संस्करणों में फिल्म को संगीतबद्ध किया था आदिनारायण राव ने और उन्होने ही हिन्दी संस्करण में भी संगीत दिया था। वेदांतम राघवैया ने इस फिल्म को निर्देशित किया था। ए. नागेश्वर राव, सरोजा देवी, श्यामा, कुमकुम और अंजलि देवी, (जो कि फिल्म के संगीतकार आदि नारायण राव की पत्नी थीं) ने फिल्म में भूमिकायें निभाई थीं। एक अप्सरा के धरती पर आने की कथा पर आधारित पौराणिक कथाओं पर आधारित फिल्मों की श्रंखला की एक अन्य फिल्म है सुवर्ण सुन्दरी और कुछ खास इसे नहीं कहा जा सकता पर इसका संगीत अलबत्ता खास है और इसका संगीत हिन्दी फिल्म संगीत के इतिहास में अच्छे संगीत की सूची में सम्मिलित किये जाने योग्य है। यह भी कहा जा सकता है कि इस फिल्म के संगीत के कारण ही आदिनारायण राव को हिन्दी संगीत के क्षेत्र में जाना-पहचाना और याद किया जाता है। उन्होने बाद में सन 1964 में बनी फिल्म – फूलों की सेज, में भी बड़ा अच्छा संगीत दिया था।
सुवर्ण सुन्दरी के मधुर गीतों को लिखा था भरत व्यास ने। फिल्म के दस गीतों की सूची निम्नलिखित है।
मुझे न बुला – लता मंगेशकर
कुहु कुहु बोले कोयलिया – लता मंगेशकर, मो. रफी
चंदा सा प्यारा – लता मंगेशकर, मन्ना डे
राम नाम जपना पराया माल अपना – मो. रफी
मौसम सुहाना दिल है दीवाना – लता मंगेशकर
सर पे मटकी अंखियाँ भटकी – आशा भोसले, कोरस
जा रे नटखट पिया – लता मंगेशकर, सुधा मल्होत्रा
शम्भो सुन लो मेरी पुकार – लता मंगेशकर
गिरिजा संग है सीस पे गंग है – लता मंगेशकर
ले लो जी ले लो गुड़िया – लता मंगेशकर
फिल्म का हरेक गीत बेहद अच्छा है। यहाँ चर्चा हो रही है लता एवम रफी द्वारा गये युगल गीत “कुहू कुहू बोले कोयलिया” की। शास्त्रीय संगीत की भीनी खुशबू बिखेरने वाला यह युगल गीत लता–रफी के सबसे अच्छे और क्लिष्ट गीतों में से एक है। आदीनारायण राव ने लता–रफी के मधुर गायन से एक कर्णप्रिय रागमाला रची है जो बरसों से ताजी बनी हुयी है। भरत व्यास ने केवल हिन्दी के शब्दो का प्रयोग करके बहुत ही आकर्षक गीत लिखा है और बसंत ऋतु की छटा का गुणगन करते हुये श्रंगार रस का भरपूर प्रदर्शन इस गीत में किया है।
भोर होने से पहले के पहर, जिसे दिन का आठवाँ पहर भी कहा जा सकता है, का राग कहा जाता है राग-सोहनी को और आदीनारायण राव इस राग से गीत की शुरुआत करते हैं और राग यमन से गीत का अंत करते हैं। बीच में राग-बहार, दरबारी, अडाणा, और जौनपुरी आकर झलक दिखला जाते हैं। सही राग न भी पहचान में आयें पर इतना अनुमान तो लग ही जाता है कि अलग-अलग अंतरे अलग-अलग रागों पर आधारित हैं।
बांसुरी की धुन के बीच लता अपने मधुर स्वर में उद्यान में कोयल और भंवरे अस्तित्व से उपजे संगीत को जीवंत करती हुयी गाती हैं, आलाप बिखेरती हैं और गुलशन को महका जाती हैं, वातावरण को पुष्पमयी, संगीतमयी और सौन्दर्य से लबालब भरा हुआ जीवनमयी बना देती हैं।
कुहू कुहू बोले कोयलिया,
कुंज-कुंज में भंवरे डोले,
गुन गुन बोले, आ आ आ
कुहू कुहू बोले कोयलिया,
गीत को लता ने इस माधुर्य से गाया है कि गीत के बोल जिन दृष्यों का वर्णन कर रहे हैं वे जीवंत हो उठते हैं।
लता, रंगीन बसंत के सजे संवरे स्वरुप का बखान करती हैं और अपने आलाप से उसका स्वागत करती हैं
सज सिंगार ऋतु आयी बसंती,
इतने रसपूर्ण वर्णन को सुन रफी भी खिल ऊठे बासंती सौन्दर्य की तुलना रसवंती नारी से करने आ जाते हैं।
जैसे नार कोई हो रसवंती,
लता और रफी दोनों फूलों और तितलियों के आपसी प्रेम-दर्शन और व्यवहार का बखान करते हुये गाते हैं –
डाली डाली कलियों को तितलियां चूमें
फ़ूल फ़ूल पंखडियाँ खोले, अमृत घोले,
कुहू कुहू बोले कोयलिया,
आकाश में घिर आये बादलों के मध्य चमकती बिजली को देख नायिका पूछती हैं
काहे, काहे घटा में बिजली चमके,
भरत व्यास, रफी के गायन के द्वारा श्रंगार रस की गहराई में चले जाते हैं और रफी बिजली के इस चमकने के पीछे के कारण के बारे में अनुमान लगाते कहते हैं –
हो सकता है, मेघराज नें बादरिया का श्याम-श्याम मुख चूम लिया हो…
इस अलंकारिक तुलना से नायक नायिका की नजदीकी भी बढ़ती है –
चोरी चोरी मन पंछी उड़े, नैना जुड़े
कुहू कुहू बोले कोयलिया,
नायक की बंसी की धुन पर मगन हो नृत्य करती नायिका आकाश में खिले पूरे चाँद की छटा देख विभोर हो नायक को बताती है
चंद्रिका देख छाई, पिया, चंद्रिका देख छाई…
नायक चंदा के उपस्थित होने को इसका कारण बताता है और चंदा के ही कारण चंद्रिका प्रसन्न है, ऐसा समझाता है। यह सब तुलनायें उनके अपने प्रेम को और उनके भीतर उत्पन्न होने वाले भावों को अभिव्यक्त्ति दे रही हैं।
चंदा से मिलके, मन ही मन में मुसकाई, छाई,चंद्रिका देख छाई…
शरद ऋतु में पूरे चाँद की चाँदनी से उत्पन्न शीतलता, विरह की अग्नि में जल रहे मन को भाती है, ऐसा नायिका कहती है।
प्रेमी के पास होने से उसका मन प्रसन्न है।
शरद सुहावन मधुमन भावन,
प्रेमी कहता है कि बिरही मन को सावन में सुख मिलता है।
बिरही जनों का सुख सरसावन
प्रेमी-प्रेमिका पूनम के चाँद की खूबसूरती देख प्रसन्न होते हैं।
छाई छाई पूनम की छटा, घूंघट हटा,
कुहू कुहू बोले कोयलिया,
प्रेमी कमल-कमलिनी के संयोग की बात प्रेमिका से कहता है
सरस रात मन भाये प्रियतमा, कमल कमलिनी मिले
प्रेमिका जल में बन रही चाँद की छवि में देखकर और उसकी किरणों से बने हार के सौन्दर्य को देख आनंदित हो रही है
किरण हार दमके, जल में चांद चमके,
मन सानंद आनंद डोले
कुहू कुहू बोले कोयलिया।
भरत व्यास, आदीनारायण राव और लता एवम रफी, चारों मिलकर बसंत ऋतु के आगमन पर जीवन में जो सौन्दर्य और ऊर्जा का संचार होता है उसका खूबसूरत वर्णन इस गीत के द्वारा प्रस्तुत करते हैं। गीत में प्रयुक्क्त शब्द, कुंज, तितलियाँ, फूल, कलियाँ, चाँद, चाँदनी, जल, कमल, कोयल, भँवरा, बसंत, बादल, और बिजली आदि मात्र शब्द न रहकर एक जीवंत वातावरण की रचना करते हैं। लता के गायन से कोयल की कुहू कुहू की मिठास जीवित हो उठती है। गीत गुलशन को महका जाता है।
पचास साल से पहले बना यह गीत आज भी ताजगी और खूबसूरती का प्रसारण चारों ओर कर देता है। यह गीत अपने अस्तित्व में ही चित्रात्मक है और शब्दों से श्रोता के अंदर कल्पनायें गढ़ता हुआ यह गीत उसे आनंद से सराबोर कर जाता है।
…[राकेश]
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