कुछ फिल्में फिल्में ही नहीं रह जातीं बल्कि वे सिनेमा से थोड़ा आगे बढ़कर बड़े स्तर पर जीवन से ऐसे जुड़ जाती हैं कि जीवन को ही प्रेरणा देने लगती हैं और उसे सुधारने लगती हैं। Clint Eastwood की Invictus (2009 ) भी ऐसी ही एक फिल्म है। यह फिल्म भी Richard Attenborough की Gandhi (1982) की तरह जैसा संबंध दर्शकों के साथ बनाती है। Invictus, गाँधी से प्रेरणा पाने वाले, दक्षिण अफ्रीका के महान नेता नेल्सन मंडेला के जीवन से जुड़ी हुयी फिल्म है और यह फिल्म जीवन में प्रेरणा देने वाले दर्शन को सिनेमा में सार्थक रुप से फलीभूत करती है।
नेल्सन मंडेला के राष्ट्रपति बनने के बाद दक्षिण अफ्रीका में 1995 में सम्पन्न हुये Rugby World Cup के दौरान हुये घटनाक्रमों को आधार बना कर John Carlin ने एक किताब लिखी थी – Playing the Enemy : Nelson Mandela and the Game That Changed a Nation, और यह फिल्म उसी किताब पर आधारित है।
फिल्म में नेल्सन मंडेला की भूमिका निभाने वाले Morgan Freeman ने Clint Eastwood को किताब पर आधारित सामग्री पढ़ने को दी और पढ़ते ही Clint Eastwood ने तय कर लिया कि उन्हे यह फिल्म बनानी है। नेल्सन मंडेला की भूमिका के लिये Morgan Freeman सर्वथा उपयुक्त थे और खुद मंडेला ने अपना अक्स Morgan Freeman के अभिनय में पाया होगा। वे इस भूमिका में गहरे रचे-बसे दिखायी देते हैं।
दक्षिण अफ्रीका की Rugby टीम – Springboks, के गोरे कप्तान François Pienaar की भूमिका गयी Matt Damon के पास।
फिल्म के अंदर दो कहानियाँ समांतर चलती हैं।
रंगभेद के खिलाफ संघर्ष करने के कारण 27 साल की कैद के बाद नेल्सन मंडेला रिहा होते हैं और नये परिदृष्य में गोरे राष्ट्रपति F.W. de Klerk के दल को हराकर चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बनते हैं और द. अफ्रीका में Apartheid व्यवस्था को समाप्त करके एक नये युग की शुरुआत करते हैं।
ऐसे लम्बे और जटिल संघर्ष के बाद परिवर्तन लाने के बाद सबसे बड़ी समस्या होती है देश को सुचारु रुप से चलाने की। Apartheid के काल में प्रशासन में सिर्फ गोरे ही रहते थे और गोरा शासक वर्ग काले रंग की जनता का जम कर शोषण करता था। हालात ऐसे थे कि Rugby के खेल के दौरान काले रंग वाली जनता अपने ही देश की टीम – Springboks, के खिलाफ जो भी टीम खेल रही होती थी उसका समर्थन करती थी।
राजनीतिक रुप से सत्ता परिवर्तन होता है और नेल्सन मंडेला देश के राष्ट्रपति बन जाते हैं। उनके समर्थकों की परेशानी है कि तीन दशकों तक अत्याचार सहने के बावजूद मंडेला एक आदर्श लेकर सत्ता में आये हैं। वे बदले की भावना से भरे हुये नहीं हैं। उनके विचार एकदम स्पष्ट हैं। वे बिल्कुल नहीं चाहते कि नफरत की जिस बुनियाद पर गोरे प्रशासन के अंतर्गत देश में दशकों तक Apartheid व्यवस्था कायम रही वैसी नफरत तब भी कायम रहे जब उन्होने देश में नये युग की बयार बहायी है। वे तो बड़े दिल वाले हैं, आदर्श नेता हैं पर संघर्ष के दौरान उनके सहयोगी रहे अन्य लोग तो ऐसे नहीं हैं। उन्होने सदा गोरों से नफरत, उपेक्षा और शोषण जैसे भाव ही पाये हैं और उनके अंदर भी गोरों को लेकर नफरत के ही भाव बस गये हैं।
नेल्सन मंडेला को तो अपने देश की चिंता है और वे इसे देशवासियों के आपसी मनमुटाव की बलि चढ़ने नहीं दे सकते। उनके चुनाव जीतने के बाद से ही प्रशासन से गोरे लोग अपने पद छोड़-छोड़ कर जा रहे हैं। राष्ट्रपति के रुप में पहली बार अपने दफ्तर में प्रवेश करते ही वे अपनी सचिव से कहते हैं कि वह सब लोगों को इकट्ठा होने के लिये कहे, वे उनसे कुछ कहना चाहते हैं। वे स्पष्ट निर्देश देते हैं कि जो गोरे अभी तक अपने पद छोड़कर नहीं गये हैं उन्हे आमंत्रित किया जाये। प्रशासन के कर्मचारियों को दिये अपने पहले ही सम्बोधन में वे स्पष्ट कर देते हैं कि जो स्वेच्छा से जाना चाहे वह जा सकता है पर अगर कोई इस कारण जाना चाहता है कि उसके साथ कोई भेदभाव होगा तो उससे वे निवेदन करेंगे कि वह रुक जाये। इस देश को आपकी जरुरत है।
स्पष्टतया उनके संघर्ष के साथियों को उनकी उदार नीतियाँ खटकती हैं। गोरे तो उन पर अविश्वास रखते ही हैं, उनके अपने साथी भी उनकी आदर्शवादी विचाधारा को पसंद नहीं करते। मंडेला हर संभव कोशिश करते हैं जिससे कि लोग बिना किसी रंगभेद के आपस में मिलजुलकर काम कर सकें।
देश को एकजुटता देने की उधेड़बुन में वे लगे रहते हैं पर गोरों और कालों के बीच पसर गये आपसी अविश्वास और नफरत के कारण उनके सारे प्रयासों पर पानी फिरता हुआ नज़र आता है। ऐसे में उनके अंदर आशा की किरण चमकती है जब वे टीवी पर Rugby का मैच देखते हैं और उन्हे देश को एकसूत्र में जोड़े रखने का विचार सूझ जाता है।
नेता वही है जो उस वक्त भी आशा से भरकर अवसर खोजे जब चारों तरफ निराशा के बादलों के कारण अंधकार छाया हुआ हो। सामान्य स्थितियों में तो प्रबंधक भी नेता लगने लगते हैं क्योंकि व्यवस्था अपने आप सुचारु रुप से चलती है, पर नेता के नेतृत्व की असली परीक्षा होती है कठिन घड़ियों में और जब मंडेला के Rugby के बहाने देश को एकजुट करने का प्रयास उनके साथियों को ऊटपटांग सनक लगती है तब वे अपनी विचारधारा पर अगाध विश्वास रखते हुये देशहित में कार्य करते रहते हैं।
वे अपनी Rugby टीम के गोरे कप्तान- François Pienaar, को चाय पर निमंत्रित करते हैं। François Pienaar राष्ट्रपति का निमंत्रण पाने के बाद थोड़ा सा भ्रमित और थोड़ा सा भयभीत है, उसकी समझ में नहीं आता एक खेल की टीम के उस जैसे खिलाड़ी में मंडेला की क्या दिलचस्पी हो सकती है। मंडेला उससे पूछते हैं कि उनकी टीम के विश्वकप जीतने के आसार क्या हैं। François को असमंजस में पाकर वे उसे अपने कैद के दिनों की बातें बताते हैं।
27 साल जेल की छोटी सी कोठरी में कड़े परिश्रम और बला के शोषण से गुजरते हुये भी मंडेला अपने देश को रंगभेद के क्रूर चंगुल से मुक्त कराने की भावना को जिंदा रखे रहे और उस सुनहरे समय के सपने देखते रहे जब उनके देश से नफरतपूर्ण रंगभेद खत्म हो जायेगा। व्यक्ति बहुत बातों से प्रेरणा लेता है और कितनी ही बातें उसका मनोबल बनाये रखने में सहायक बन जाती हैं।
मंडेला François को बताते हैं कि गहन निराशा के क्षणों में भी एक कविता से उन्हे बहुत प्रेरणा मिलती थी।
मंडेला से मिलकर François उनके व्यक्तित्व के आभामंडल से अभिभूत है, वह लगभग खोया खोया सा चाय पीकर लौटता है और उसकी मित्र पूछती है कि सब कुछ कैसा था, और राष्ट्रपति कैसे व्यक्ति हैं उनसे मिलकर कैसा लगा?
François अभी तक चाय पर हुयी मुलाकात के प्रभाव से बाहर नहीं आ पाया है और मुलाकात के सम्मोहन से बंधा वह कहता है,” उनसे मिल कर ऐसा लगा जैसा आज तक किसी और आदमी से मिलकर नहीं लगा। वे औरों से बहुत अलग हैं”।
मित्र पूछती है कि वे उससे क्या चाहते थे?
François जवाब में कहता है,”शायद वे चाहते हैं कि हम विश्वकप जीतें”।
मंडेला जानते हैं कि देशवासियों की Rugby में रुचि है। देश की टीम में सिर्फ एक ही काला खिलाड़ी है।
फिल्म का एक भाग अगर नेल्सन मंडेला के राजनीतिक और सामाजिक दर्शन और नेतृत्व को प्रस्तुत करता है तो दूसरा भाग Rugby के खेल पर आधारित है। Rugby को बहुत गहराई से जानने वालों के लिये खेल वाला भाग कम रोचक और कम रोमांचित करने वाला हो सकता है पर उनके लिये भी मंडेला के नेतृत्व वाला भाग पूर्णतया रोचक है और बाकी दर्शकों के लिये तो फिल्म की दोनों समांतर धारायें रोमांच लेकर आती हैं।
जैसे कोई शिल्पी छैनी हथौड़े से सावधानी से चटान पर चोट करके उसे एक आकर्षक बुत का आकार देता है वैसे ही कुशल शिल्पी की भाँति मंडेला देश को एकजुट करने के अपने लक्ष्य को पाने के लिये सधे हुये तरीके से अस्तव्यस्त देश को एक आकार देने के प्रयास में लगे रहते हैं। वे सामाजिक एकजुटता रचने का कई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते।
ऐसे मौके हमेशा आते हैं जब नेता को भी संशय होने लगता है कि क्या वह सही कर रहा है? मंडेला भी ऐसी ऊहापोहों से दोचार होते हैं पर वे अपनी ऊर्जा को ठीक दिशा देकर अपनी सोच पर आस्था रखते हुये अपने कार्य में लगे रहते हैं।
एक दिन मैदान में वे अपनी Rugby टीम के सदस्यों से मिलने पहुँच जाते हैं। उन्होने पहले उनके चित्र आदि देखकर उनके नाम आदि याद कर लिये हैं और वे पूरी तैयारी करके उनसे मिलते हैं। टीम में कुछ गोरे सदस्य हैं जो उन्हे पसंद नहीं करते पर कप्तान François उनके साथ है। सबसे मिलने के बाद जाते हुये वे François को एक कागज़ दे जाते हैं और कहते हैं कि इस पर वह कविता लिखी हुयी है जो जेल के दिनों में उन्हे प्रेरणा दिया करती थी।
कविता है William Ernest Henley द्वारा रचित Invictus
Out of the night that covers me,
Black as the Pit from pole to pole,
I thank whatever gods may be
For my unconquerable soul.In the fell clutch of circumstance
I have not winced nor cried aloud.
Under the bludgeonings of chance
My head is bloody, but unbowed.Beyond this place of wrath and tears
Looms but the Horror of the shade,
And yet the menace of the years
Finds, and shall find, me unafraid.It matters not how strait the gate,
How charged with punishments the scroll.
I am the master of my fate:
I am the captain of my soul.
मैं अपने भाग्य का खुद निर्माता हूँ, मैं अपनी आत्मा का खुद स्वामी हूँ… जैसे शब्द François को प्रेरणा देकर रोमांचित कर देते हैं। अब उसके सामने राष्ट्रपति का लक्ष्य कुछ हद तक साफ होने लगा है और वह अपने साथियों से कहता है कि चाहे जो हो जाये हमें विश्वकप जीतना है।
एक महान लक्ष्य को पाने के लिये जब व्यक्ति संकल्प करता है तो उसकी ऊर्जा बदल जाती है। उसके शरीर की जैव-रासायनिक क्रियाएं बदल जाती हैं। उसकी भावनाओं की दिशा और उनकी तीव्रता बदल जाती है। उसकी समझ बदल जाती है और उसके विचार बदल जाते हैं।
मंडेला और François दोनों के साथ भी ऐसा ही होता है। ऐसे में आदमी बहुत कुछ अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित विचारों से संचालित होता है। उसकी नींद कम हो जाये, उसका बी.पी बढ़ जाये पर उसकी एक्रागता नहीं टूटती। साधारण अवस्था में ऐसे परिवर्तन शायद आदमी को बीमार बना कर बिस्तर पर लेटा दें पर ऐसे समय उसकी ऊर्जा के गहनतम स्तर सक्रिय हो जाते हैं और भरपूर तनाव के क्षणों में भी उसे सुरक्षित रखते हैं।
विश्वकप आता है और एक एक करके मंडेला और François की टीम अपने प्रतिद्वन्दियों के ऊपर जीत हासिल करती चली जाती है। फाइनल में उनका मुकाबला उस समय अजेय मानी जाने वाली, New Zealand की टीम All Blacks से होना है। All Blacks में दानवाकार खिलाड़ी Jonah Lomu भी है जो शारीरिक शक्ति के बल पर विपक्षी टीमों को धराशायी कर देता है। खेल से पहले All Blacks की टीम द्वारा किया जाने वाला उनका परम्परागत नृत्य नुमा शारीरिक प्रदर्शन –Haka, विपक्षी टीमों के हौसले आधे खत्म करने के लिये काफी है।
फिल्म का एक बेहतरीन दृष्य आता है जब फाइनल मैच से पूर्व द.अफ्रीका की टीम को उस जेल में ले जाया जाता है जहाँ नेल्सन मंडेला को कैद रखा गया था। बाकी सभी खिलाड़ी तो औरी-फौरी तौर पर जेल देखते हैं पर François उस छोटी सी कोठरी में अकेला बैठ जाता है जहाँ मंडेला ने अपनी जीवन के तीन दशक व्यतीत किये थे।
इस कोठरी में बैठकर उसे मंडेला की महानता का वास्तविक आभास होता है। एक आदमी युवावस्था से लेकर अपने जीवन के बेहतरीन तीन दशक एक जेल की छोटी सी कोठरी में कैद होकर व्यतीत किये जाने के लिये विवश किया जाता है वह आदमी बाहर आकर उन व्यक्तियों से नफरत नहीं करता जिन्होने उसकी ज़िंदगी नर्क बना रखी थी। बहुत ही छू जाने वाला दृष्य है यह।
François अगले दिन अपने सब खिलाड़ियों से कह देता है,” हमें All Blacks को हराकर अपने देश के लिये कप जीतना है। चाहे शरीर में कितनी भी टूटफूट क्यों न हो जाये, चाहे स्ट्रेचर पर ही मैदान से क्यों न जाना पड़ा हमें Jonah Lomu को किसी भी हालत में नियंत्रित करना है। जान लगा देनी है”।
मैच के दौरान दिल की धड़कनें रोक देने वाले क्षण आते हैं। यहाँ तक कि मैच टाई भी हो जाता है और अब एक्स्ट्रा समय में हार-जीत का फैसला होना है। मंडेला खुद स्टेडियम में उपस्थित हैं।
सारा देश टीवी, रेडियो आदि से चिपका हुआ है। जिन शंकालुओं को द. अफ्रीका की टीम से कोई उम्मीद नहीं थी वे भी उसके फाइनल में प्रवेश करने के कारण उत्सुक हो गये हैं। स्टेडियम के अंदर की ऊर्जा और स्टेडियम के बाहर सुरक्षाकर्मियों की कार के पास एक बेहद गरीब काले लड़के के कमेंट्री सुनने के प्रयासों को एक श्रंखला में जोड़कर फिल्म बला की उत्तेजना उत्पन्न कर देती है।
एक दूसरे देश की कहानी है। एक दूसरे परिवेश की कहानी है। एक दूसरे देश की समस्या है। पर फिल्म दुनिया के हर आदमी की भावनाओं से जुड़ जाती है और फिल्म अपने ही परिवेश की, अपने ही देश की लगने लगती है। सबसे बढ़कर फिल्म मानवता से अपना संबंध स्थापित कर लेती है।
द. अफ्रीका के मैच जीतने के बाद स्टेडियम के बाहर खड़े सुरक्षाकर्मियों द्वारा कूड़ा बीनने वाले काले लड़के को अपने कंधों पर उठाकर नाचने वाला दृष्य दर्शक को गहरे में छू जाता है।
जीतने की खुशी को संतुलित करके मंडेला New Zealand के राजनेता से कहते हैं,” अच्छा मैच था”।
द. अफ्रीका के हर रंग के निवासी की खुशी उन्हे जता रही है कि देश को एक सूत्र में बाँधने का उनका लक्ष्य बहुत हद तक पूरा हो जायेगा और उसकी शुरुआत धमाकेदार तरीक से हुयी है।
उनके तौर-तरीकों के प्रति संदेह रखने वाले उनके साथी उनकी और प्रशंसा भाव से देख रहे हैं।
वैश्विक नेता ऐसे ही होते हैं!
जन नेता ऐसे ही होते हैं।
उन्हे चाहे जाने के अलावा कोई और रास्ता वे लोगों के सामने छोड़ते ही नहीं। कोई दूसरा विकल्प होता ही नहीं लोगों के पास ऐसे नेता को पसंद किये जाने के अलावा ।
विनम्रता से मंडेला François को कप देते हुये कहते हैं,” तुमने देश की बहुत बड़ी सेवा की है”।
सच से रुबरु हो चुका भावविभोर François उनसे कहता है,” श्रीमान आपसे बड़ी कोई सेवा नहीं है”।
जननेता नेल्सन मंडेला एक खेल के सहारे अपने देश में फैली बुराइयों को कमजोर करके राष्ट्र की नयी इमारत की बुनियाद रख देते हैं।
Clint Eastwood द्वारा निर्देशित फिल्मों में एक से बढ़कर एक नगीने हैं और Invictus भी ऐसा ही मूल्यवान रत्न है जिसे मुश्किल से ही कोई नापसंद कर पायेगा।
…[राकेश]
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