उपन्यास में एक सहूलियत होती है कि लेखक घटनाओं को विस्तार दे सकता है, इधर उधर की व्याख्या या वर्णन कर जो दर्शाना है उसे ज्यादा गहराई और विस्तार से पाठक को समझा सकता है| एक कहानी जैसी कहानी तो... Continue Reading →
जीवन में वास्तविक दुःख से घिरा ही न हो तो एक दर्शक, कॉमेडी फ़िल्म को अन्य वर्गों की फिल्मों की तुलना में कभी भी देख सकता है और अक्सर तो कॉमेडी फिल्मों को अन्य वर्गों की फिल्मों पर प्राथमिकता भी... Continue Reading →
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है (~फ़ैज़ अहमद फ़ैज़) TVF ने ग्रामीण जीवन पर आधारित अपनी वेब श्रंखलाओं में प्रेमचंद और श्रीलाल शुक्ला द्वारा ग्रामीण जीवन पर रचे साहित्य... Continue Reading →
ओ टी टी पर प्रदर्शित श्रंखलाओं में पंचायत की अलग ही महिमा है| इसके अलग स्वभाव और इसमें दिखाए संसार ने दर्शकों को बेहद मजबूती से अपना प्रशंसक बनाया है| नामी गिरामी अभिनेताओं से सजी श्रंखलाओं ने वैसा दर्शक वर्ग... Continue Reading →
अपने जलने का हमेशा से तमाशाई हूँ आग ये किस ने लगाई मुझे मालूम नहीं (~ मोहम्मद आज़म) एक अग्निशामक, दमकलकर्मी, अग्नियोद्धा या फायरमैन को नायक बनाकर उनके खतरनाक कार्य को बारीकी से दिखाने के लिए फ़िल्म - अग्नि, सराहनीय... Continue Reading →
कूकी, फ़िल्म की 16 वर्षीय नायिका (रितिषा खौंड) का नाम भी है और फ़िल्म का शीर्षक भी| गैंग रेप की शिकार नायिका के बलात्कारियों को पुलिस पकड़ लेती है, अदालत सजा भी दे देती है लेकिन कूकी को इससे राहत... Continue Reading →
दुःख ऐसा भाव है मनुष्य के जीवन में कि इसमें कुछ कहावतें एकदम सटीक बैठती हैं पर उपदेश कुशल बहुतेरे जाके पाँव न फटे बिवाई सो क्या जाने पीर पराई किसी दूसरे पर जब दुःख का साया पड़ता है तो... Continue Reading →
पाकिस्तानी फ़िल्म "कमली" तीन मुख्य स्त्री चरित्रों और कुछ अन्य स्त्री चरित्रों, और उनके इर्द गिर्द कुछ पुरुषों की मेहमान भूमिकाओं जैसी उपस्थितियों को समेटे हुए स्त्री जगत को दर्शाती है| तीनों मुख्य स्त्री चरित्र अपनी अपनी कैद में हैं|... Continue Reading →
https://www.youtube.com/watch?v=6PYsyl4xBDA ...[राकेश] धर्म (Dharm(2007) : दिल न मंदिर, न मस्जिद, न गिरजा, न गुरुद्वारा),
फ़िल्म – चेहरे, का विषय रोचक है और चार मुख्य चरित्रों में वरिष्ठ अभिनेताओं को देखना सुखद है और ज्यादा से ज्यादा ऐसे विषयों पर फ़िल्में बनें तो फिल्मों के स्तर में विविधता और ज्यादा गुणवत्ता आने की संभावना... Continue Reading →
कारगिल का युद्ध एक ऐसा कड़वा इतिहास है जो भारतीय जनमानस से आसानी से हट नहीं पायेगा| जिसने भी उस दौर का मंजर देखा है, उसे कश्मीर की तरफ कूच करती बोफोर्स तोपें और सेना की टुकडियों के वाहनों की... Continue Reading →
तकरीबन तीन दशकों से “शेरनी” शब्द का सम्बन्ध श्रीदेवी और शत्रुध्न सिन्हा अभिनीत एक बेहद सामान्य और फ़ॉर्मूला छाप हिन्दी फ़िल्म से जुड़ा रहा है| अब जाकर विद्या बालन अभिनीत शेरनी फ़िल्म ने इस शब्द को सही मायने दिए हैं,... Continue Reading →
विनोद चोपड़ा ने जब 1942 A Love Story बनाई थी और अखबारों में उनका एक बयान छपा था जिसके अनुसार उन्होंने दावा किया था,"I am the best filmmaker in India" तब किसी पत्रकार द्वारा फ़िल्म के बारे में पूछने पर... Continue Reading →
कम अक्ल, रोज़मर्रा की ज़िंदगी में ऐसी छोटी मोटी साजिश भरी हरकतें, जिन्हे सब जानते हों, करने वाले बुजुर्ग के चरित्र से दर्शक कैसे जान-पहचान कर पाएंगे? अगर वह अपना मुंह ढके रहे और आँखें भी बेहद मोटे चश्मे के... Continue Reading →
हिन्दी सिनेमा के अब तक के इतिहास में राजनीतिक थ्रिलर वर्ग में श्रेष्ठ फ़िल्मों में गुलज़ार लिखित और रमेश शर्मा निर्देशित “न्यू दिल्ली टाइम्स (1987)” के बाद हाल में अमेज़न प्राइम वीडियो पर प्रदर्शित क्राइम और राजनीतिक थ्रिलर वैब सीरीज़... Continue Reading →
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