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इरफ़ानियत : अभिनय और इंसानियत के मिश्रण से निकला X- फैक्टर

आम दर्शक किसी अभिनेता को कैसे जाने? अभिनेता नाटक करता हो तो उसके द्वारा नाटक में निभाए गए चरित्रों (चुनाव) के द्वारा या उन भूमिकाओं में उसके अभिनय की गुणवत्ता के द्वारा? अभिनेता सिनेमा के संसार में कार्य करता हो... Continue Reading →

तुम्हारे लिए (हिमांशु जोशी) : गहन दुख में पगी एक प्रेमकथा

हिन्दी सिनेमा ने शरतचंद्र चटर्जी, टैगोर, बिमल मित्र, समरेश बसु, आदि बंगलाभाषी साहित्यकारों की रचनाओं पर आधारित फ़िल्में बनाई हैं और इन पुस्तकों के कारण ठोस विषय सामग्री मिल जाने के कारण इन सभी फिल्मों का स्तर सराहनीय रहा है|... Continue Reading →

रिम-झिम गिरे सावन (Manzil 1979) : आई बरसात तो लता मंगेशकर ने समां बाँध दिया

इस गीत के स्त्री गायक संस्करण ने दर्शक को बरसात का आनंद खुले आसमान के नीचे दिलवाया है| गीत के लता मंगेशकर संस्करण का फिल्मांकन बम्बई के 1978-79 के दौर का दस्तावेज है| तब बारिश से बम्बई में आतंक नहीं... Continue Reading →

रिम झिम गिरे सावन (Manzil 1979) : महागायक “किशोर कुमार” का सावन वर्णन

बासु चटर्जी द्वारा निर्देशित फ़िल्म – मंजिल, के इस गीत का फिल्मांकन उस दौर के सामाजिक परिवेश के संकेत देता है| मित्र की शादी के समारोह में उसके घर पर आयोजित पार्टी में वे सबके कहने पर एकदम घरेलू माहौल... Continue Reading →

राह पे रहते हैं (Namkeen 1982) : जल गए जो धूप में तो साया हो गए

वर्तमान में गुलज़ार साब की फिल्मों को जब जब देखा जाता है, तब तब उनके अपने सिनेमाई क्लब के तीन सदस्यों क्रमशः संजीव कुमार, किशोर कुमार और राहुल देव बर्मन, का फ़िल्मी परिदृश्य पर न होना बेहद खलता है| गुलज़ार... Continue Reading →

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