आम दर्शक किसी अभिनेता को कैसे जाने? अभिनेता नाटक करता हो तो उसके द्वारा नाटक में निभाए गए चरित्रों (चुनाव) के द्वारा या उन भूमिकाओं में उसके अभिनय की गुणवत्ता के द्वारा? अभिनेता सिनेमा के संसार में कार्य करता हो तो उसके द्वारा की गयी फिल्मों के द्वारा या उन फिल्मों में उसे मिली या उसके द्वारा चुनी गयी भूमिकाओं के द्वारा या उन भूमिकाओं में उसके अभिनय के स्तर या उसकी गहराई के द्वारा? क्या अभिनेता को उसके साक्षात्कारों के द्वारा जाना जाए?

या अभिनेता के साथ काम करने वाले अन्य कलाकारों, निर्देशकों और तकनीकीशियनों के उसके बारे में जन्माये गए विचारों के माध्यम से उसका सही सही सा रेखाचित्र खिंच सकता है?

या कि व्यक्तिगत जीवन में अभिनेता के परिचित रहे और मित्र रहे लोगों के उसके बारे में प्रकट उद्गारों से ही अभिनेता के बारे में सही बातें पता लग सकती हैं|

जीवन का सत्य तो यही है कि अभिनेता को तो छोड़ ही दें क्योंकि वहां सच और मिथ्या के बीच का अंतर बहुत बार धूमिल होता जाता है, किसी साधारण मनुष्य के त्रिआयामी अस्तित्व को बाकी लोग खंड खंड रूप में उसी तरह से जान पाते हैं जैसे सामने रखी किसी वस्तु की छवि कैनवास पर उतारते चित्रकार अपनी तरफ से उस वस्तु का कोई ख़ास कोण ही देख पाते हैं और वस्तु का बाकी भाग उनसे अनदेखा ही रह जाता है| उस वस्तु को किसी और समय में चारों ओर से देख सकने के पूर्व अनुभव से उस वस्तु के बारे में कल्पना करके चित्रकार बोल तो सकता है लेकिन वह उस वक्त पूर्ण सत्य नहीं होता| ऐसे ही किसी एक अभिनेता की शख्सियत के बारे में भी एक ही मंच से बोलने वाले लोग उस व्यक्ति का ऐसा खाका खींच देते हैं जिनमें कुछ बातें तो अवश्य ही समान होती हैं लेकिन कुछ बातें उस अभिनेता के परस्पर विरोधी छवियों का निर्माण कर देती हैं|

अभिनेता इरफ़ान के देहांत के पूरे एक साल और पांच महीनों के अंतराल के बाद भी इरफ़ान को दुनिया भुला नहीं पाई है| जब तक वे जीवित थे वे इतने जीवंत और स्तरीय अभिनेता के रूप में जीवित थे कि उनके उच्च गुणवत्ता भरे अभिनय की सामग्री के अनवरत आगमन के कारण लोग उनके अभिनय के आनंद और उसकी बारीकियों में ही उलझे रहे और एक तरह से संतुष्ट ही रहे और इरफ़ान के जीवन को और ज्यादा जानने की इच्छा कम ही लोगों में पनपी होगी| टीवी की और फ़िल्मी दुनिया में उनके जीवन काल के बारे में लगभग सभी कुछ ज्ञात ही था| उनके थियेटर के जीवन के बारे में अलबत्ता कम ही जानकारी लोगों के बीच रही है इस तथ्य के सिवा कि उन्होंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षण प्राप्त किया था| थियेटर काल के बारे में उन्होंने कभी अपने साक्षात्कारों में भी कुछ विशेष नहीं बताया न ही एन एस डी में व्यतीत सालों के बारे में कुछ रोचक घटनाएं ही साझा कीं|

अभी तो संभवतः उनकी उम्र भी नहीं थी अपनी आत्मकथा लिखने की| शायद लन्दन में अपनी गंभीर बीमारी से लड़ते हुए उनके अन्दर ऐसा विचार पनपा हो कि अपने जीवन के बारे में लिखें पर शायद बीमारी की घातकता ने उन्हें यह अवसर दिया ही नहीं कि ऐसे भयंकर रोग से लड़ते हुए वे रचनात्मक लिखें| शायद वे हर बात को स्वीकार करके हर पल को पूर्णतया जीने में व्यस्त हो गए हों और किताब लिखने के लिए अपने ही जीवन से जैसे कट जाना पड़ता है लेखक को, उसके लिए वे तैयार नहीं हुए हों|

एन एस डी में प्रवेश से लेकर इससे निकलने के बाद इरफ़ान की ज़िंदगी के विवरण ही “मेकिंग ऑफ इरफ़ान” के बारे में लोगों को सूचित कर सकते हैं| एन एस डी में भर्ती होने से पहले ही इरफ़ान की ज़िंदगी में कुछ लोग आये होंगे जिन्होंने उनके साथ अभिनय के क्षेत्र में चहल कदमी की होगी और एन एस डी के प्रशिक्षण काल के दौरान भी उनके वरिष्ठ एवं कनिष्ठ सहपाठीगण होंगे जिन्होंने इरफ़ान को शिक्षा पाते, अभ्यास करते, प्रगति करते, अपने अन्दर की व्यक्तिगत कमियों से लड़ते हुए और अपने सिद्धांत गढ़ते हुए देखा होगा| कुछ साथी साथ रहे होंगे कुछ जीवन की आपाधापी में पीछे रह गए होंगे और वे दूर से इरफ़ान की फ़िल्मी दुनिया में प्रगति को देखते रहे होंगे|

कितने लोग ऐसे रहे होंगे जिन्होंने इरफ़ान के बाद फ़िल्मी दुनिया में कदम रखे और अपने मन में इरफ़ान की एक गढ़ी हुयी छवि के साथ उनसे व्यक्तिगत रूप से मिले और कुछ समय उनके साथ रहे|

ऐसे बहुत से लोगों के अनुभवों को समेटे हुए लेखों को आमंत्रित करके दशकों से हिन्दी में फिल्मों पर लेखन कार्य कर रहे वरिष्ठ पत्रकार श्री अजय ब्रहमात्मज ने अपने संपादन में “इरफ़ानियत” पुस्तक को प्रकाशित किया है| चूंकि इरफ़ान पर वे पहले ही एक पुस्तक की रचना कर चुके हैं सो संभवतः इसीलिए उन्होंने भूमिका लिखने के अलावा अपना कोई लेख इस पुस्तक में सम्मिलित नहीं किया है|

एक बात उनसे व्यक्तिगत रूप से मिले हरेक व्यक्ति के लेख में सामान है कि वे गज़ब के दोस्ताना व्यक्ति थे और स्वयं ही पहले करके बातचीत कर लिया करते थे| फ़िल्मी दुनिया में एक सफल अभिनेता होने के उनके सत्य ने उन्हें किसी गैर-फ़िल्मी व्यक्ति से संपर्क करने में बाधा उत्पन्न नहीं की|

जीवन में संभवतया कुछ भी बिना अर्थ नहीं घटता| इरफ़ान की “लंच बॉक्स” प्रदर्शित हुयी थी और हिन्दी सिनेमा के नियमित दर्शक मित्रों से बातचीत के दौरान हिन्दी में ऐतिहासिक फिल्मों का जिक्र हुआ तो एक मित्र को “मुग़ल-ए-आज़म” के बनने का इतिहास जानकार बड़ा आश्चर्य हुआ| के. आसिफ द्वारा बड़े गुलाम अली खान साहब को उनकी शर्तों पर ही गाने के लिए राजी करने की कथा ने तो उसे विभोर कर दिया| बात चली कि मुग़ले-ए-आज़म फ़िल्म तो शानदार है ही लेकिन के. आसिफ द्वारा इसे बनाने की गाथा पर भी एक महान फ़ीचर फ़िल्म बन सकती है| के.आसिफ के चरित्र के लिए अभिनेता की चर्चा छिड़ी तो तुरंत ही इरफ़ान और नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के नाम उभर गए| के.आसिफ का एक फोटो है राजेन्द्र कुमार के साथ जिसमें वे तर्जनी और मध्यमा उँगलियों के मध्य सिगरेट फंसाए हुए हैं, उसे और उनके चेहरे की बनावट को देखते हुए नवाज़ुद्दीन ज्यादा सटीक चुनाव लगे थे और “लंच बॉक्स” में दोनों के अभिनय इतने अच्छे थे थे कि तय करना मुश्किल कि किसने दूसरे से बेहतर अभिनय किया| तब यह अंदाजा बिल्कुल भी नहीं था कि इरफ़ान स्वयं के.आसिफ की मुग़ल-ए-आज़म बनाने की यात्रा के बहुत बड़े मुरीद थे और उस पर फ़िल्म बनाने की गहन इच्छा रखते थे और मुग़ल-ए-आज़म से सम्बंधित शोध सामग्रियों को पढ़ते रहते थे| उनकी ऐसी उत्कट आकांक्षा को देखते हुए यह तय ही है कि वे बड़े बेहतरीन ढंग से के. आसिफ के “मुग़ल-ए-आज़म” बनाने के जूनून को फ़िल्मी परदे पर उतार सकते थे और उनके जीतेजी अन्य किसी का अधिकार भी नहीं था इस भूमिका पर| “इरफ़ानियतइरफ़ान के मुग़ल-ए-आज़म के बनने की यात्रा के आशिक होने की बात को दर्शाती है|

एन एस डी में इरफ़ान के अपने बैच के कितने कलाकार होंगे जिनके उस काल में  रोल मॉडल  नसीरुद्दीन शाह होंगे? एन एस डी में पढने के बावजूद फिल्मों में काम करने वालों में ज्यादातर के जेहन में बड़े और सफल सितारे ही छाए रहते होंगे, पर इरफ़ान नसीर साहब के अभिनय के दीवाने थे| उनके इस चुनाव से ही उनके अभिनय की यात्रा हट कर रहेगी इस बात के संकेत मिल गए थे|

इरफ़ान के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की इच्छा के कारण किसी भी लेख में उसके लेखक का मुख्य विषय से भटक कर अपने पर या इरफ़ान के जीवन में उपस्थित अन्य व्यक्तियों पर लेखनी केन्द्रित करना खलता है और यह संभवतः इरफ़ान के हरेक प्रशंसक को खलेगा|

इरफ़ानियत पढ़ कर आश्चर्य होगा कि “दिल कबड्डी” के निर्माता को “मदारी” फ़िल्म इरफ़ान ने स्वयं सौंपी लेकिन अलीगढ़ में उनके नाम पर विचार ही नहीं हुआ|

इरफ़ानियत” क्या है, इस शब्द को गढ़ने वाले ने किसी भी सन्दर्भ में इसे उपयोग में लाया हो लेकिन इसका अर्थ भी अलग व्यक्तियों के लिए अलग हो सकता है|

एक उम्दा अभिनेता और एक अच्छे इंसान के बेहद सुसंस्कृत मिश्रण में भी यह एक भिन्न सा तत्व है जो बहुत से बेहतरीन अभिनेताओं के पास नहीं है| इरफ़ान के पास था यह तत्व, इसे “इरफ़ानियत” का नाम दे दें|

इरफ़ान पर बहुत सी किताबों की आवश्यकता है| यह किताब एक शुरुआती प्रयास करती है|

इरफ़ान सबके लिए अलग मायने रखते हैं, एक पुस्तक या दर्जनों पुस्तकें इरफ़ान पर पढने के बाद भी इरफ़ान से सम्बन्ध हरेक का व्यक्तिगत अपने ही तरह का रहेगा|

पुस्तक का ई-संस्करण यहाँ पढ़ सकते हैं ;> https://notnul.com/Pages/Book-Details.aspx?ShortCode=drO2NMHy

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