शुरु से ही आशा भोसले की गायिकी उस ऊँचाई पर उड़ती रही है जहाँ से वह हरेक दौर में सक्रिय बड़े से बड़े संगीतकार को इठलाकर जताती रही है कि जनाब सृष्टि में हम भी श्रेष्ठ गायकों के साथ उपस्थित हैं, चाहो तो गीत मेरी गायिकी में गवा कर अपने गीत उच्च स्तरीय बना लो वरना नुकसान हमारा कतई नहीं है, हमारी गायिकी किसी अन्य की गायिकी से पासंग भर भी कम न ठहरेगी।
आशा भोसले की आवाज और गायन शैली इंद्रधनुषी रही है, और दोनों ही ने अलग-अलग दौर में अलग-अलग रंगों की छटा बिखेरी है। अच्छे संगीतकारों ने अपनी पसंद और जरुरत के अनुसार उनकी आवाज और गायन शैली के भिन्न रंगों का उपयोग अपने गीतों को बेहतर बनाने में किया है।
पचास के दशक के शुरुआती सालों में आशा भोसले की आवाज में मिठास का पुट अधिक था। पचास के ही दशक में आशा भोसले की आवाज के मिठास में उपस्थित मद भरे अंदाज़ का मधु पहचान लिया ओ.पी नैयर ने और ढ़ेर सारे कालजयी गीत इस जोड़ी ने रच दिये। इसी दशक के मध्योपरंत एस.डी.बर्मन ने उनकी आवाज में हिलोरें मारती सागर सरीखी लरज़ती लहरों को पहचाना और वे उनकी आवाज के नमक को सतह पर ले आये। मिठास और नमकीन का यह मिलन अदभुत आवाज बन कर सामने आया और एस.डी.बर्मन और आशा भोसले की जुगलबंदी से श्रोताओं को बहुत सारे अविस्मरणीय गीत सुनने को मिले।
पर आज एस.डी.बर्मन और ओ.पी.नैयर के साथ आशा भोसले की प्रसिद्ध जुगलबंदी से इतर चर्चा एक ऐसे गीत की, जो कि फिल्म नौलखा हार (1953) में आशा भोसले से गवाया गया था। फिल्म के संगीतकार थे भोला श्रेष्ठ और गीतकार भरत व्यास। मीना कुमारी, निरुपा राय और जीवन जैसे कलाकारों से भरी यह फिल्म आल्हा-ऊदल के प्रसंगों से प्रेरित थी।
गीत है – जैसे हो गूँजता सुरीला सुर किसी सितार का
इस गीत के मुखड़े की प्रथम पंक्ति आशा भोसले की गायिकी को परिभाषित करने के लिये एकदम उपयुक्त्त है।
भरत व्यास ने अपने लगभग हरेक गीत में सिद्ध किया है कि वे केवल हिन्दी के शब्दों का उपयोग करके बहुत ही उच्च स्तरीय गीत रच सकते थे।
प्रेम की मधुर भावनाओं से अभी नवीन परिचय हुआ है मीना कुमारी का और उन भावनाओं से ओतप्रोत हो उनका मन-मयूर गा रहा है, नृत्य कर रहा है।
प्रेम के भाव से सराबोर अल्हड़ युवती के भावों को भरत व्यास के शब्द आकर्षक अभिव्यक्त्ति देते हैं तो आशा भोसले ने डूबकर गीत को इस अंदाज़ में गाया है कि सुनकर ही चरित्र की कोमल और कच्ची वय की हिलोरें मारती भावनाओं का आभास हो जाता है, ऐसी भावनायें जिनके आगे और सब भावनायें दोयम दर्जे की लगने लगती हैं बल्कि अन्य भावनाओं की याद भी नहीं आ पाती, प्रेम की इन भावनाओं के सामने। और मीना कुमारी का अभिनय चरित्र और उसकी भावनाओं को परदे पर जीवंत कर देता है।
जैसे हो गूँजता सुरीला सुर किसी सितार का
लगता मधुर-मधुर मुझे बंधन तुम्हारे प्यार का
सितार की मधुर ध्वनि की प्रष्ठभूमि में धीम स्वर में आशा भोसले इस अंदाज़ में गीत को शुरु करती हैं मानो ध्यान लगाने के लिये आंखें बंद करके किन्ही मंत्रों का जाप शुरु कर रही हों। प्रेम में ध्यान अपने आप लग जाता है और दिल-दिमाग प्रेम और प्रेमी के ही ध्यान में डूबे रहना चाहते हैं। नायिका प्रेम बंधन में बंधने के कारण हर्षित है। अगर एकल व्यक्ति नदी का एक किनारा है तो प्रेम उसे दूसरे किनारे खड़े प्रेमी से जोड़ देता है।
तुमसे सजन मैं यूँ बँधी जैसे पतंग से डोर रे
सागर से जूँ हिलोर रे चँदा से जूँ चकोर रे
सिर्फ गीत में ही उड़ती पतंग का जिक्र नहीं है बल्कि मीना कुमारी भी मुक्ताभाव से हिंडोले खाती दिखायी देती हैं। अभी वे प्रसिद्ध मीना कुमारी नहीं हो पायी थीं। अभी उनके अभिनय में उपस्थित गहराई लिये हुये ठहराव सतह पर नहीं आ पाया था। अभी वे उस तरह से अभिनय करती दिखायी देती हैं जैसा कि उस दौर की अन्य प्रसिद्ध अभिनेत्रियाँ एक अल्हड़ युवती के चरित्र में करतीं। मीना कुमारी की विशेष छाप अभी विकसित नहीं हो पायी थी। कुछ वर्ष बाद वे इसी गीत पर अभिनय करतीं तो चरित्र में तो इतनी ही गहराई से डूबतीं पर तब गीत उनकी विशिष्टता की छाप से प्रदीप्त भी रहता।
ज्योति मेरे नयन की तू मोती मेरे सिंगार का
लगता मधुर-मधुर मुझे बंधन तुम्हारे प्यार का
नायिका प्रेम की उस अवस्था में है जहाँ अपने जीवन में उपस्थित हरेक उपलब्धि, क्षमता और सम्पदा, और घटने वाली हरेक अच्छी बात के पीछे का कारण उसके प्रेमी द्वारा उस पर प्रेम न्योछावर करना है।
सपने सुनहरे ज़िंदगी के आज झिलमिला रहे
तुझसे उलझ गया है रे आँचल मेरे दुलार का
लगता मधुर-मधुर मुझे बंधन तुम्हारे प्यार का
सुंदर भविष्य के सुनहरे सपने नायिका को ऊर्जा देते रहते हैं और सारा समय वह इन सपनीले क्षणों में ही खोयी रहती है। अपने जीवन के हर पहलू को वह प्रेमी से जोड़ कर देखने लगी है।
इसी गीत का एक छोटा सा भाग युगल गीत के रुप में भी है, जो कि आशा भोसले के एकल गीत जितना ही मधुर एवम लुभावना है।
1953 में बनी फिल्म में उपस्थित इस गीत को सुनकर तो किसी प्रकार के संदेह की गुँजाइश रहती ही नहीं कि आशा भोसले ने अंततोगत्वा भारत की एक उत्कृष्ट गायिका का स्थान कैसे प्राप्त किया होगा। जो गायिका ऐसा गीत गा दे उसे तो शीर्ष पर पँहुचना ही था। यह गीत आशा भोसले के चमकीले आगाज़ की एक झलक मात्र थी।
…[राकेश]
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