kahaniबेहतरीन अभिनेत्री विद्या बालन के बहुत अच्छे अभिनय वाली फिल्मों में इश्किया और कहानी दोनों ही थ्रिलर्स होने के कारण अलग ही स्थान रखती हैं|  निर्देशक सुजॉय घोष की फ़िल्म ‘कहानी‘ दर्शक की उत्सुकता को अंत तक बाँध कर रखने वाली थ्रिलर है| भले ही विद्या बालन के दृश्य से फ़िल्म शुरू न होती हो पर यह फ़िल्म शुरू से अंत तक उन्ही के बेहद मजबूत अभिनय प्रदर्शन के कारण ही अपनी सार्थकता पाती है| किसी और से ज्यादा यह विद्या बालन की फ़िल्म इस मायने में भी है कि फ़िल्म के अन्य विभागों को ज्यों का त्यों स्वीकार करने में किन्तु-परन्तु के संदेह से भरे भाव बीच में आ सकते हैं लेकिन विद्या बालन के अभिनय प्रदर्शन ने ऐसी कोई गुंजाइश छोड़ी ही नहीं है कि उसमें कहीं कोई कुछ छोटा-मोटा सा भी नुक्स निकाला जा सके| कमी हो सकती है उनके इर्द-गिर्द बुने गए दृश्य में पर उस दृश्य में भी उन्होंने पूरी तन्मयता के साथ अपनी भागीदारी की है|

अभिनेत्री विद्या बालन ने परदे पर अपने चरित्र विद्या बागची की आशा-निराशा, उसका संघर्ष, गायब हो चुके पति से मिलने की उसकी अनवरत खोज, उसका क्रोध, उसका रुदन, उसकी हंसी, उसका बदला, और उसकी रहस्यात्मकता आदि सभी कुछ को, इतने विश्वसनीय ढंग से प्रस्तुत किया है कि कुछ अविश्वस्नीय तत्वों के बावजूद फ़िल्म विश्वसनीय लगती हुयी आगे बढ़ती जाती है, और उनके चरित्र के भावों के साथ दर्शक “कहानी” के बहाव के साथ बहने में रोचकता पाने लगता है|

कहानी‘ फ़िल्म शुरू होती है एक लेबोरेट्री में चूहों पर किसी विषैली गैस के प्रभाव की जांच करते किसी आदमी से जिसने अपने बचाव के लिए गैस-मास्क पहना हुआ है, अतः दर्शक केवल उसकी आँखें ही देख पाते हैं और चूंकि यह फिल्म का पहला ही दृश्य है सो जाहिर है कि साधारण दर्शक तो अलग, फ़िल्म विशेषज्ञ भी इस बात का भान नहीं ले पायेंगे कि इस व्यक्ति को ढंग से पहचाने जाने की जरुरत है| अगले ही क्षण कलकत्ता की मेट्रो रेल में एक आतंकवादी जहरीली गैस से सौ से ज्यादा लोगों की जान ले लेता है|

आतंक की इस त्रासद घटना के दो साल बाद एक गर्भवती स्त्री विद्या बागची (Vidya Balan) लन्दन से कलकत्ता आती है अपने खोये हुए पति को तलाशने| लगभग सात-आठ महीने की गर्भवती स्त्री जब विदेश से कलकत्ता आकर अपने खोये हुए पति की तलाश में दिन-रात एक करती है तो न केवल उसके संपर्क में आने वाले चरित्र बल्कि दर्शकगण भी उसके साथ सहानुभूति रखते हुए उसके साथ हो लेते हैं और यही फ़िल्म की दर्शकों को अपने साथ ले चलने की विधि भी है|

पति को तलाश रही विद्या की यात्रा ही ‘कहानी’ फ़िल्म की कहानी है और उसकी इसी यात्रा गति के साथ दर्शक को यात्रा करनी है और इसके पड़ावों के साथ रुकना है| विद्या की खोज जैसे जैसे आगे बढ़ती है दर्शक को बताया जाता है कि विद्या के पति की शक्ल एक अन्य व्यक्ति, मिलन दामजी, से मिलती है पर उस व्यक्ति के इर्द-गिर्द रहस्य के इतने बादल छाए हुए हैं और आगे भी छाते चले जाते हैं क्योंकि जिस-जिस से भी विद्या इस सन्दर्भ में मिलती है उसकी ह्त्या होती चली जाती है| हैरान-परेशान विद्या को दो संभावनाएं लगती हैं – या तो उसका पति और मिलन दामजी एक ही व्यक्ति के दो रूप हैं या फिर मिलन ने उसके पति के हमशकल होने का लाभ उठा कर उसे या तो कैद कर रखा है या मार दिया है|

इन सवालों का जवाब पाने के लिए विद्या का मिलन से मिलना बहुत जरूरी है, पर उसकी खोज के बीच में आ खड़ा होती है भारत की खुफिया एजेंसी आई.बी.| अक्खड़ और गुस्सैल आई. बी. अधिकारी खान (Nawazuddin Siddiqui) विद्या की जांच के बीच में आ खड़ा होता है| उसे भी मेट्रो में हुये आतंकवादी हमले के जिम्मेदार आतंकवादी की तलाश है| विद्या भी खान को चुनौती देती है कि उसके लाख विरोध के बावजूद वह अपने पति को खोज कर रहेगी|

विद्या का पति कौन था/है?
उसका संदिग्ध आतंकवादी मिलन दामजी से क्या लेना देना है?
क्या विद्या का पति जीवित है और अगर है तो क्या विद्या उससे मिलकर उसकी आँखों में आँखे डालकर अपने मन में उठा रहे संदेहों के समाधान कर पायेगी?

विद्या अंततः मिलन दामजी को विवश कर देती है कि वह खुद उससे मिलने के लिए उत्सुक हो जाए| वे दोनों मिलते हैं और उनकी भेंट होने के कुछ मिनट तक तो फ़िल्म रोचकता बनाए रखती है पर एक बहुत महत्वपूर्ण घटना होते ही फ़िल्म दम तोड़ जाती है और अंत के दस के लगभग मिनट जिसमे फ्लैशबैक में दिखाए दृश्य भी शामिल हैं, अब तक बीती फ़िल्म के किये कराये पर कमी का मुलम्मा चढ़ा देते हैं|

ऐसा नहीं है कि फ़िल्म एकदम मौलिक है| कहानी, दृश्यों से लेकर ट्रीटमेंट तक ऐसे विषयों और अन्य विषयों पर बनी फिल्मों की याद दिलाते रहेंगे|
विद्या की खोज जहां Kill Bill जैसी फिल्मों की याद दिलाएगी वहीं फ़िल्म के सबसे महत्वपूर्ण भाग का ताना बाना Kiefer Sutherland की Angelina Jolie और Ethan Hawke अभिनीत Taking Lives से प्रेरित है| जिन्होंने वे फिल्मे देख रखी हैं जिनसे कहानी के कुछ भाग मिलते जुलते हैं उन्हें कुछ आभास हो ही जाता है कि आगे क्या होने वाला है पर यह भी सत्य है कि इन सब तथ्यों के साथ भी “कहानी” एक रोचक फ़िल्म है और पहली बार इस तरह की फ़िल्म देखने वाले के लिए तो यह बेहद तनावयुक्त रोचक दर्शन लेकर आयेगी|

विद्या बालन की तो फ़िल्म यह है ही पर साथ ही इस फिल्म को बहुत अच्छे अभिनेता   Nawazuddin Siddiqui को अंततः एक बड़ी भूमिका देने के लिए भी याद की जानी चाहिए|  जहां Black Friday में उन्होंने स्वाभाविक अभिनय का प्रदर्शन किया था वहीं कहानी में उन्होंने अतिनाटकीयता से भरपूर अभिनय किया है, या कह लीजिए निर्देशक सुजॉय घोष ने उनके चरित्र को ऐसे ही रचा| पर उनका चरित्रचित्रण उनके चरित्र को अविश्वस्नीय बना देता है| आई. बी के नंबर दो अधिकारी जैसा चरित्र-चित्रण उन्हें नहीं मिला और उनके तौर तरीके इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी से ज्यादा के कतई नहीं लगते| ऐसा प्रतीत होता है कि निर्देशक या लेखक ने उनके चरित्र के बहाने अपनी कोई निजी राय उत्तर भारत से आने वाले केन्द्रीय अधिकारी के चरित्र पर थोप डाली है और इसे केन्द्र बनाम क्षेत्रीय रूप दे दिया है जो फ़िल्म को कमजोर बनाता है| अगर यह चरित्र ढंग से रचा जाता तो फ़िल्म को और ज्यादा तनाव, और ज्यादा विश्वसनीयता मिलती|

गिद्ध जैसी दृष्टि और लोमड़ी जैसी चालाक बुद्धि वाला अधिकारी खान, और जिसके पास हर तरह की सुविधा और पावर है, अपने अधिकारी से विद्या की पृष्ठभूमि की पूरी जांच करने का दावा करता है पर उसे यह बात नहीं खटकती कि इतने महीने की गर्भवती विद्या को किस एयरलाइन्स ने लन्दन से कलकत्ता आने दिया? दिल्ली में बैठे बैठे उसे तुरंत खबर मिल जाती है जब विद्या को उसके पति के हमशक्ल इंसान के बारे में बताने वाली महिला की ह्त्या हो जाती है, पर वह विद्या की पूरी प्रष्ठभूमि से अनभिज्ञ है| जितना खुर्राट अधिकारी खान को दिखाना चाहा गया है उनता वह लग नहीं पाता|

न ही विद्या के बारे में ये बातें मिलन दामजी के शातिर दिमाग में पनपती हैं|

आई. बी के उच्च स्तरीय नेतृत्व को जैसा दिखाया गया है वह विश्वसनीयता नहीं ला पाता|

ये फ़िल्म का कमजोर पहलू हैं| Kill Bill, और Taking Lives जैसे थ्रिलर्स में ऐसे बुनियादी कमजोर तत्व् नहीं मिलते हैं और कहानी की जबरदस्त सफलता के बावजूद इसके कमजोर पहलू यही घोषणा करते हैं कि इस वर्ग की फिल्मों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आने के लिए भारतीय सिनेमा को अभी बहुत विकास करना बाकी है|

इन्स्पेक्टर सात्यिकी की भूमिका में Parambrata Chatterjee सहज और आकर्षक लगे हैं|

विद्या बालन के अलावा सबसे ज्यादा ध्यान खींचते हैं Saswata Chatterjee जिन्होंने बॉब विश्वास की भूमिका निभाई है| उनकी मुस्कान और उनकी शैतानियत का संगम एक आकर्षक स्क्रीन प्रेजेंस उत्पन्न करता है|

मिलन दामजी की सशक्त और रहस्यमयी भूमिका ऐसी थी कि एक सशक्त अभिनेता इस भूमिका को यादगार बनाकर फ़िल्म की गुणवत्ता और बढ़ा देता पर Indraneil Sengupta का औसत अभिनय प्रदर्शन इस भूमिका को फ़िल्म की अक बड़ी कमजोरी बना डालता है|

विद्या बालन के चरित्र के कन्धों पर ही फ़िल्म का दारोमदार टिका हुआ है पर उनके चरित्र को परदे पर तनाव देने वालों के चरित्र उतनी कुशलता से नहीं बुने गए हैं कि फ़िल्म जस की तस स्वीकार्य हो जाए| कहानी एक रोचक फ़िल्म है पर इसकी कमियां बाद में यही अहसास देती हैं कि यह और अच्छी थ्रिलर हो सकती थी|

…[राकॆश]