दो स्त्रियों एवं एक पुरुष चरित्र के माध्यम से एक स्त्री की कहानी दिखाने वाली तकरीबन बीस मिनट की अवधि की यह लघु फिल्म, लघु फिल्मों को बनाए जाने की महत्ता को स्थापित करती है और यह भी स्थापित करती है कि हर कहानी अपने ऊपर बनने वाली फिल्म की अवधि स्वंय निर्धारित करती है| एक अन्य पुरुष चरित्र भी फिल्म में है पर उसे हमेशा सोते हुए ही दिखाया गया है|
नयनतारा (Konkana Sen Sharma), और अलका (Tillotama Shome) के अलग-अलग और साझा जीवन के प्रसंग फिल्म में सिलेसिलवार तरीके से न दिखाए जाकर उन्हें आगे पीछे दिखाया गया है और फ्लैश बैक तकनीक के माध्यम से फिल्म के प्रदर्शन में रोचकता लाई गयी है और इसी लिहाज से जो एक समय कुछ घटित होता दिखाई देता है उसका अर्थ दर्शक के सामने पूरी तरह से कुछ मिनटों बाद खुलता है|
अपने आज से ऊबे, थके और परेशान लोगों को अक्सर दूसरों के जीवन या उनके जीवन की दिखावट प्रभावित कर जाती है और अगर दिखावट करने वाला ऊबे हुए व्यक्ति के दिमाग में यह हीन भावना भी भर दे कि उसे अपने को बदलने की जरुरत है क्योंकि जैसा वह है वह बेहद अनाकर्षक व्यव्क्तित्व का नमूना है तब तो व्यक्ति शीघ्रातिशीघ्र ही अपने व्यक्तित्व के ऊपर अपने तत्कालीन रोल मॉडल के व्यक्तित्व से उधार पाई छवियों का मुलम्मा चढ़ा लेना चाहता है|
दो स्त्री किरदारों, नयनतारा एवं अलका और एक पुरुष किरदार – गिरीश (Gulshan Devaiah), तीनों अपने अपने वर्तमान के जीवन से ऊबे हुए चरित्र हैं| रूटीन जीवन ऊब लाता ही है, पर तीनों की ऊब के कारण अलग अलग हो सकते हैं बल्कि फिल्म दिखाती है कि ऐसा है भी|
फिल्म की शुरुआत में नयनतारा और अलका ही सामने आते हैं और उनकी बातों के माध्यम से गिरीश का जिक्र दर्शकों के समक्ष होता है|
नयनतारा, ऐसा बताया जाता है, हाल ही में अपने पति और बेटे के साथ दुबई से भारत में रहने आई है और उसकी मित्रता अलका से हो जाती है| अलका किसी भी तरह उसके स्तर की नहीं है और यह मित्रता नयनतारा के वहाँ नया होने और स्थानीय बातों की जानकारी न होने और नयनतारा के बेटे समर और अलका के बेटे धीरज के एक ही स्कूल में पढ़ने के कारण हुयी है|
चूँकि फिल्म एक लघु फिल्म है मितव्यता बरतते हुए कम दृश्यों और न्यूनतम संवादों के माध्यम से ही अपनी बात संप्रेषित करती है| दुबई के ऐश्वर्यपूर्ण जीवन का बखान करती हुयी नयनतारा से अलका सहजता से पूछती है कि वहाँ का सुख-साधनों वाला जीवन छोड़ कर वह भारत में थोड़ा संघर्ष वाला जीवन जीने क्यों चली आई? नयनतारा थोड़ा खीज कर कहती है कि लोग बाहर से भारत भी वापिस आ रहे हैं और वह सेकेण्ड क्लास सिटिजन बन कर कहीं नहीं रह सकती|
इतना सा दृश्य जताने के लिए काफी है कि नयनतारा के जीवन में सच नहीं दिखावट ज्यादा है और जो वह है वह उसे प्रदर्शित नहीं करती| अलका के सीधे दिमाग के लिए ऐसी बारीकियां पकड़ना मुश्किल है, वह तो नयनतारा के प्रभावशाली व्यक्तित्व, दुनिया-जहान की बातों, और उसके अपने को प्रदर्शित करने के सलीके के सम्मोहन से बंधी हुयी है और नयनतारा के समक्ष उसकी अपनी हीन- भावनाएं और ज्यादा मुखर हो जाती हैं और उसे लगता है कि वह गुणी नहीं है| नयनतारा के जाने के बाद एक बार अलका अपने घर में उस कुर्सी पर जाकर बैठ कर उस कुर्सी को देखती है जिस पर वह कुछ पल पहले स्वंय बैठी थी और अपने को नयनतारा समझने की कल्पना करती है|
नयनतारा को समय काटने के लिए अलका से सीधी-सादी स्त्री का साथ मिलना मुश्किल है क्योंकि अन्य चतुर स्त्रियाँ उसकी दिखावट को, उसके झूठों को पकड़ लेंगी और उसे वह सम्मान नहीं मिलेगा जो अलका से उसे मिलता है| अलका के साथ रहने से कहीं न कहीं नयनतारा के अहं की संतुष्टि होती है|
नयनतारा और अलका की दैनिक बैठकें भी एकरूपी हैं जहां नयनतारा की बातों से, अलका सोचती है उसका कुछ ज्ञानवर्द्धन हो रहा है वरना वह तो कुछ नहीं जानती और नयनतारा के लिए अलका की बातें बेहद उबाऊ हैं, मसलन नयनतारा के अपने पति से वीडियो कॉल करने पर अलका टिप्पणी करती है कि महाभारत में भी ऐसा ही था, विदुर जी दूर से महाभारत का युद्ध देख लेते थे टीवी के माध्यम से और तब होती थी शल्य चिकित्सा और अब होता है ऑपरेशन, तब होता था उड़नखटोला और अब होता है एयरोप्लेन|
अलका और नयनतारा की नियमित बैठकों में एक नये विषय का प्रवेश होता है अलका दवारा यह बात साझा करने से कि दसवीं तक उसके साथ पढ़ा गिरीश उसे हाल ही में फेसबुक पर मिला है और कुछ दिनों की चैटिंग के बाद अब उससे मिलना चाहता है और मलेशिया से भारत केवल उससे मिलने ही आ रहा है|
अलका के रूटीन जीवन में गिरीश प्रकरण एक रोमांटिक भाव लाता है| वह रोमांचित है| स्कूल में दसवीं में वह भी उसे पसंद करती थी पर अब अपने वैवाहिक जीवन के दायित्वों के बोझ तले दब कर, नयनतारा के पूछने पर वह यह भी व्याख्या नहीं कर पाती कि रोमांस क्या होता है?
रोमांस के बारे में सोचते हुए वह अपने जीवन में झाँकने की कोशिश करती है जहां रात में अगर वह अपने पति से दिल खोल कर बात भी करना चाहे तो थका-मांदा पति सोया रहता है| सुबह उठते ही बेटे को स्कूल और पति को ऑफिस भेजने की तैयारियों में वह व्यस्त हो जाती है, उन दोनों के जाने के बाद घर के बाकी काम करती है| शायद ब्यूटीशन के रूप में कभीकभार छोटामोटा काम ले लेती हो या शायद पहले यह कम करती हो और छोड़ दिया हो| फिल्म उसे हमेशा घरेलू कार्यों में व्यस्त ही दिखाती है या नयनतारा के संग बैठे या घूमते दिखाती है| कहीं न कहीं नयनतारा के अंदर अलका के सादेपन और बोरियत भरे जीवन के बावजूद अपने जीवन के प्रति एक निश्चिन्तता और महत्वाकांक्षा से परे संतोष के भाव अलका के प्रति उसके मन में हल्की ईर्ष्या जगाते हैं| अलका आर्थिक और स्टेटस के मामले में महत्वाकांक्षी नहीं है और यह बात नयनतारा को कहीं न कहीं विचलन देती है|
अलका के बोरियत भरे रूटीन जीवन में गिरीश का, फेसबुक के माध्यम से ही सही, आगमन उसके जीवन में ऊर्जा लाता है| गिरिश के बारे में भी वह नयनतारा से सलाह मशविरा करती है| वह ऊपर से दिखाती तो है कि उसकी खास इच्छा नहीं गिरीश से मेलजोल बढाने में पर अंदर से वह उससे मिलने के लिए बेहद उत्सुक है और नयनतारा यह भांप लेती है|
नयनतारा, अलका को गिरीश से मिलने के लिए तैयार करती है, और मेकअप दवारा उसे बिल्कुल आधुनिक स्त्री के रूप में इस कदर परिवर्तित कर देती है कि अलका स्वयं अपने नये रूप पर मोहित हो जाती है| नयनतारा उसे अपना मोतियों का नेकलेस भी देती है, जिसे पहन कर अलका बेहद प्रसन्न होती है|
अलका गिरीश से मिलने होटल पहुँच जाती है| टैक्सी में वह खिड़की का शीशा खोलकर और चेहरे पर हवा के झोंके सहन करती जाती है| नयनतारा इतने मेकअप के बाद ऐसा नहीं करती पर अलका अपने अकेलेपन में इन सब बातों से बहुत दूर है|
होटल में गिर्ष के सामने बैठी अलका का चेहरा मोहरा तो अलका ही है पर बातें करने वाली स्त्री अलका न होकर नयनतारा है| अलका यहाँ नयनतारा बन कर वही सब बातें बोलती है जो नयनतारा उससे बोला करती है| यहाँ तक कि अपने बेटे धीरज को वह समर नाम दे देती है जो कि नयनतारा के बेटे का नाम है|
धीरज अपने व्यवसाय के नतीजों से प्राप्त जीवन शैली से ऊब चुका है| उसकी नौकरी उसे उच्च स्तरीय जीवन शैली देती है पर वह एक घरेलू सीधे-सादे जीवन की तलाश में है| और शायद यही तलाश उसे अलका से मिलवाने मलेशिया से भारत लाई है| उसके जेहन में शायद अलका वही सीधी-सादी लड़की है जो उसके साथ दसवें तक पढ़ती थी| पर अब बरसों बाद मिलने पर वह अलका के रूप में नयनतारा को पाता है (जिसे वह नहीं जानता पर किसी अजनबी की छाया वह अलका पर आरोपित हुयी महसूस कर सकता है) और उसकी बड़ी-बड़ी बनावटी बातों को सुन और दिखावट भरे व्यवहार को देख असहज महसूस करता है|
पुराने साथियों, जिनसे मिले जमाना हो गया हो, से बरसों बाद मिलना ऐसे झटके अक्सर ले आता है| समय बदल जाता है और समय के संग लोग भी बदल जाते हैं बस कई बार ये बदलाव इतने ज्यादा हो जाते हैं कि वे व्यक्ति की पुरानी छवि के बिल्कुल उलट लगते हैं और मिलने आने वाले को स्तब्ध छोड़ जाते हैं|
ऐश्वर्यपूर्ण जीवन की जिन बातों से गिरीश ऊब चुका है वही सब बातें अलका अपनी पसंद की बातें बताती है, और गिरीश का मोहभंग कर जाती हैं|
अपनी निगाहों में नयनतारा के रूप में परिवर्तित अलका जब यह सोचती हुयी लौटती है कि उसने गिरीश के सामने मोर्चा जीत लिया तब नयनतारा के घर की ओर उससे मिलने जाते हुए उसे अपने जीवन का सबसे बड़ा झटका लगता है|
उधार का जीवन अपने काम नहीं आ सकता| दूसरों जैसा बन कर अपना जीवन आनंद से नहीं गुजारा जा सकता| अपना स्वभाव छोड़कर दूसरे को अपने ऊपर आरोपित करने से जीवन सुगम नहीं बन सकता| कब तक इंसान अभिनय करेगा?
इमारत के नीचे नयनतारा की कार में नयनतारा के नेकलेस को रखकर जाती दुखी अलका यही सब सोच रही होगी|
नयनतारा के जीवन की असलियत जान कर अलका का स्तब्ध रह जाना स्वाभाविक है|
लघु फ़िल्में अक्सर बहुत से प्रश्न और बहुत सी संभावनाएं जगा देती हैं|
क्या सच्चाई को जानकर अलका अपने असल जीवन से मित्रता कर बैठी?
क्या उसने फेसबुक पर गिरीश से फिर संपर्क साध अपने असली रूप को दिखाया?
असल में तो कहानी ऐसे मोड़ के बाद ही गहराई पाती है|
कोंकणा और तिलोत्तमा के बेहतरीन अभिनय ने फिल्म को स्तरीय बनाया है| Monsoon Wedding, Shanghai और Qissa के बाद इस लघु फिल्म में भी तिलोत्तमा ने स्वय के एक बेहतरीन अभिनेत्री होने का सुबूत दिया है| कोंकणा के साथ तो बरसों के उच्च स्तरीय अभिनय प्रदर्शन की साख है ही|
फिल्म में एक छोटी सी गलती संवाद के स्तर पर नज़र आती है| नयनतारा से बात करते हुए भी अलका धीरज के कराटे क्लास में जाने की बात बताते हुए धीरज को समर कह जाती है|
बहरहाल जयदीप सरकार की यह लघु फिल्म एक रोचक फिल्म है और भारत में लघु फिल्मों की परम्परा को विकसित करती है और उन्हें एक साख देती है|
…[राकेश]
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