
भारत में अक्तूबर उत्सवों की शुरुआत का ही माह नहीं होता बल्कि मौसम के लिहाज से भी ये महीना राहत भरा होता है| दिन में धूप सुहानी प्रतीत होना शुरू हो जाती है| व्यक्तिगत दुखों को छोड़ दें तो प्रकृति की ओर से उपहारित अधिकता के कारण औसत रूप में व्यक्ति एक खुशगवारी महसूस करने लगता है| पर कुछ सालों से बहुतों को अक्तूबर की दस तारीख सताने लगती है| एक बेचैनी सी छाने लगती है| जिन सुरीली आवाज़ों के साथ बचपन से बढ्ने की यात्रा सम्पन्न होती हो उनका यकायक परिदृश्य से हट जाना खलता है| 9 साल का अरसा बड़ा होता है किसी को भूल जाने के लिए लेकिन जैसा गुलज़ार ने लिखा था किनारा में
मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे… नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा
जगजीत सिंह द्वारा वक्त और स्पेस में छोड़ दी गई रिक्तता नहीं भर पाई है| फ़िल्मी संगीत में नए नाम आते रहते हैं सो बड़े बड़े नामों की अनुपस्थिति भी वैसा विचलन नहीं लाती जैसा भारतीय गज़ल संसार में जगजीत सिंह के जाने से महसूस होता है| फिर भले ही सक्रिय न हों पर हिन्दी फ़िल्म संगीत संसार में लता और आशा दो सबसे बड़े नामों की मात्र उपस्थिति ही बहुत बड़े सहारे हैं संगीत प्रेमियों के लिए| एक गायक के गीत तो श्रोताओं के साथ रह ही जाते हैं और उनका गायक संग नाता इन्हीं गीतों के माध्यम से बना था और आगे भी बना रहता है और जगजीत सिंह के गीत भी पहले की ही भांति श्रोताओं के साथ बने हुए हैं लेकिन तब भी जगजीत सिंह के अनायास चले जाने की कशिश लोगों के दिलों में एक टीस बन चुभती रहती है| हिन्दुस्तानी गज़ल के परिदृश्य पर फिर वैसी शख्सियत उभर न पाना भी एक कारण हो सकता है|
कलाकार जब जीवित होता है तब उसके प्रशंसकों को उससे बहुत बड़ी-बड़ी अपेक्षाएँ होती हैं और इनमें सबसे उच्च स्थान रखती है कलाकार द्वारा बाकी सबसे श्रेष्ठ करने और लगातार करते रहने की अपेक्षा रखना| तब प्रशंसक कलाकार को बाज़ार में बने रहने की सहूलियत देने की गुंजाइश भी अपने मन में नहीं रखते| जगजीत सिंह ने भी संगीत बाज़ार की मांग पूर्ति हेतु बहुत कुछ ऐसा गाया जिसे उनके घोर प्रशंसक स्वयं भी शुरू से ही बेहद हल्का मानते थे| पर उनके जाने के बाद इन पिछले नौ सालों में उनके द्वारा गाई गई दुर्लभ सामग्री भी संगीत प्रेमियों के सामने आई है और उसकी बेहद उच्च गुणवत्ता जगजीत सिंह से सारी शिकायतें सारे गिले शिकवे दूर कर देती है| अब पीछे मुड़ कर देखने से जगजीत सिंह हिन्दुस्तानी गज़ल गायिकी के सुपर स्टार नज़र आते हैं| संगीत का एक ऐसा साधक जिसने अपनी खुद की बादशाहत कायम की और अपनी शर्तों पर जीवन जिया| संगीत के सुरों की गंभीर साधना करते हुये जो घोड़ों संग राजसी समय व्यतीत करता रहा, व्यक्तिगत रूप से जीवन ने जिसे इतने बड़े धक्के दिये जिनके कारण आदमी गिर कर चकना चूर हो जाये| इन धक्कों के बावजूद जगजीत ठसक से जीते रहे, गीत, गज़ल, भजन आदि गाते हुये जीवन की अपनी समझ का रस उनमें उड़ेलते रहे| हास्य बोध से भरपूर बने रहे| मौकों पर नृत्य करते रहे|
जीवन संग जगजीत सिंह ने भरपूर जुगलबंदी की जब तक कि 10 अक्तूबर 2011 को समय ने सहसा ऑर्केस्ट्रा ही बंद न कर दिया|
तब से हर साल की 10 अक्तूबर की रात 10 अक्तूबर 2011 की रात जैसी ही प्रतीत होती है|
परेशाँ रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ
सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारों तुम तो सो जाओ
बहुत से लोगों की एक रोमांचक इच्छा होती है कि वे जीते जी अपना मृत्यु लेख लिख लें, अन्यों से लिखा लें| शायद क़तील शिफ़ाई की इस गज़ल को जगजीत सिंह ने अपना मृत्य लेख ही मान कर इसे गाया होगा| जिस कदर डूब कर जगजीत सिंह ने इसके एक एक शब्द को गाया है उससे हरेक अक्षर श्रोता के भीतर प्रवेश करके उसकी बेचैनी, बेकरारी, उसके दुखों और उसके आंतरिक संघर्षों के साथ बैठक करने लगता है|
रात के एकांत में तारों और चाँद से जगमगाते खुले आकाश के नीचे, या खिड़की के किसी कोने से कक्ष में अंदर झाँकती चाँदनी की रोशनाई में, अनगिनत लोगों ने इस गीत की भावना को अपने अंदर विचरते महसूस किया ही होगा| यह गीत दुःख और दुःख का कांटा बाहर निकाल सकने वाले उपचार के संगम को एक साथ लेकर चलता है|
परेशाँ रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ
सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारों तुम तो सो जाओ
मनुष्य के जीवन में ऐसी बहुत सी रातें होती हैं जब वह नितांत अकेला रहना चाहता है, नितांत अकेला ही रह जाता है और ऐसी रातों में इधर उधर रहते हजारों हजार मनुष्यों से नहीं बल्कि प्रकृति से उसका संबंध जाग्रत हो जाता है| उसका अन्तर्मन चाँद, सितारों, हवा, आकाश से बातें करता है| जैसे बहुत हंगामे के अचानक बाद नीरवता छा जाये, बेहद सक्रिय जीवन जीते जीते सहसा मृत्यु का सर्द स्पर्श हर तरफ खामोशी बरपा दे, यह ऐसी रातों में दिल की बेचैनी का गीत है| जब चाँद सितारों को देखते देखते मनुष्य को अपनी नगण्यता की एहसास हो जाये, अपनी निरीहता का भाव उसे चारों और से घेर ले जब आकाश ताकते ताकते आँसू अपने आप उसकी आँखों से बहने लगें, उस घड़ी का गीत है ये और इसे जगजीत सिंह ने गाया भी उसी भाव के साथ है|
चारों और फैली मरघट की इस शांति और दुःख एवं बेचैनी को संगीत से उभारने के लिए जैसी मीठी आवाज़ चाहिए वैसी मिठास जगजीत सिंह ने इस गीत के गायन में बरकरार रखी है| श्रोता को जो बेचैनी और शांति लता मंगेशकर के पहले हिट गीत- ‘आयेगा आने वाला’ के मुखड़े से पहले गाई पंक्तियों को सुन कर मिलती है वैसी ही भावनाओं के रूबरू श्रोता जगजीत सिंह के इस गीत के गायन को सुन कर होता है|
यूं तो एक पाकिस्तानी फ़िल्म में इसे एक गायिका गा चुकी थीं पर वहाँ जिस तेज गति से इसे गाया गया उससे गीत की खूबसूरती उभर नहीं पाई| जगजीत सिंह ने गीत क मूल स्वभाव से सामंजस्य बनाते हुये जिस ठहराव के साथ गाया है उसने उनके इस गीत के गायन को अद्वीतीय, अमर बना दिया|
क़तील शिफ़ाई की लंबी गज़ल के सिर्फ तीन अश’आर ही जगजीत सिंह ने गाये| पर तीन मनकों की इस माला को एक निरंतरता, एक पूर्णता, एक ऊँचाई प्रदान की|
हमें तो आज की शब पौ फटे तक जागना होगा
यही क़िस्मत हमारी है सितारों तुम तो सो जाओ
जगजीत सिंह का यह गीत तारों से और प्रत्युत्तर में तारों की मैत्री का गीत है|
दुःख की घड़ी में उसे किसी बात से सान्त्वना नहीं मिलती, किसी सहारे से उसे सुकून नहीं मिलता पर तब भी दुःख की घड़ी में पास आ बैठे मौन मित्र के दयालु और प्रेममयी भाव की सराहना व्यक्ति करता है| दुःख से पार न पा पाने के कारण वह मित्र से कह ही सकता है किस्मत में गहन दुःख लिखा हो तो कब तक उसके करीबी लोग उसे सहारा देंगे? दुखों से भरे इस काल की रात्रि कभी तो समाप्त होगी और सुबह होगी| अन्य तो उसके साथ इस दुःख में बैठे रह नहीं सकते उनके अपने जीवन हैं अपने प्रारब्ध अनुसार जीने के लिए| उसे उसकी किस्मत के भरोसे छोड़ दिया जाये और मित्रों को अपने-अपने जहां में चले जाना चाहिए| उसे उसके हाल पर छोड़ दिया जाना चाहिए| उसे तो रात के समाप्त होने तक इस दुःख का सामना करना ही होगा| वह ऐसा कहता तो है पर उसकी आंतरिक इच्छा यही होती है कि उसके सखा उसके पास ही रहें| अपने जीवन की कठिनाइयों को नज़रअंदाज़ कर इन घड़ियों में वे उसके साथ बने रहने का सामर्थ्य दिखाएँ|
हमें भी नींद आ जायेगी हम भी सो ही जायेंगे
अभी कुछ बेक़रारी है सितारों तुम तो सो जाओ
एक समय आयेगा जब नींद उसे अपने आगोश में ले लेगी और मौन, निष्क्रिय हो वह भी सो ही जाएगा पर अभी तो जाने कितनी बातों की खलबली अंदर मची हुयी है| सितारों से संबंध बना उन्हें अपने हृदय का रुदन सुनाते हुये व्यक्ति के भावों को “अभी कुछ बेकरारी है” गाते हुये जगजीत सिंह बेचैनी को इतनी सांद्रता, गहराई और तीव्रता देते हैं कि डूब कर सुन रहे व्यक्ति भी सितारों को देख बेबसी से भरी अपनी ही रुलाई में डूब जाएँ|
बच्चों और जगजीत सिंह जी के गमन से अकेली पड़ गईं चित्रा जी के जीवन का असली गीत है ये| जगजीत सिंह के गमन के दुःख को महसूस करने वाले हर व्यक्ति का गीत है ये| अपने जीवन में किसी से रूबरू हो रहे हरेक व्यक्ति का गीत है ये|
इस गीत से बचाव संभव नहीं|
…[राकेश]
वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी, बचपन और वो जगजीत सिंह: कौन भूला है यहाँ कोई न भूलेगा यहाँ https://cinemanthan.com/2013/10/10/wokaghazkikashti/
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