Tribhanga': exploring the mother-daughter dynamic - The Hindu

इंसान सिर्फ आनंद दायक वस्तुओं या घटनाओं में ही अटक कर नहीं रह जाता, बहुत बार तो जीवन में घटित ऋणात्मक भी जीवन को ऐसे घेरे में बाँध लेता है कि पीड़ित व्यक्ति बाकी सारी उम्र सिर्फ उस ऋणात्मक घटना को आधार बना कर प्रतिक्रिया स्वरूप ही शेष जीवन जीता है और कहने को वह उस घटना से दूर जा चुका है लेकिन असल में उसके सारे सोच विचार और कदम उस घटना के कारण ही संचालित होते जाते हैं| ऐसे में पीड़ित को पता भी नहीं चलता कि उस घटना ने उसके अस्तित्व को कैसे एक विशेष सांचे में ढाल दिया है| दूसरे इंसानों को भी वह उसी घटना से जन्मी समझ के बलबूते आंकता है, समझता है और स्वीकार या अस्वीकार करता जाता है|

व्यक्ति अपनी समझ से अपनी स्वतंत्रता से जीवन जीता तो है पर उसके उठाये कदम ही उसके भविष्य को निर्धारित करते चलते हैं और वास्तव में वह कभी भी उन्मुक्त जीवन जी नहीं पाता और अपने पूर्व में उठाये क़दमों की प्रतिक्रियाओं में ही उलझा रहता है|

अगर उसके इर्द गिर्द बच्चे भी हैं तो यह सिलसिला पीढी दर पीढी चल सकता है और अगली पीढी सिर्फ अपने से अग्रज पीढ़ी द्वारा की गई क्रिया की प्रतिक्रियाओं से ही अपने जीवन को परिभाषित करती जाती है| साधारण मानवों से भरा मानव जाति का विकास इन्हीं सब सीमाओं के कारण बेहद धीमी गति से हो पाता है और संभवतः इसलिए स्थितप्रज्ञ, योग, ध्यान, आदि इत्यादि शब्द और प्रक्रियाओं का भी जन्म हुआ|

अभिनेत्री रेणुका शाहने ने अपनी निर्देशकीय पारी की शुरुआत एक जटिल सामाजिक मुद्दे पर आधारित फ़िल्म से की है और पहली फ़िल्म के नाते यह उनका अच्छा प्रयास है|

फ़िल्म में तीन पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व करती हैं, नयन (तन्वी आजमी) एक प्रसिद्ध लेखिका है, उसकी बेटी है अनु (काजोल) जो दशकों से अपनी मां से बात नहीं करती, और उसके विरुद्ध ही रहती है| अनु की बेटी है, माशा (मिथिला पालकर)|

फ़िल्म के तीनों स्त्री चरित्र प्रतिक्रियाओं से अपने जीवन की नींव रखते हैं|

लेखिका नयन को लगता है उसने अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जी| उसके छोटे बच्चों के भविष्य का सवाल और उन्हें अपने जैविक पिता की आवश्यकता भी हो सकती है जैसे मसले भी उसे अपने पति का घर छोड़ने से नहीं रोक पाए और अन्य पुरुषों के अपने जीवन में आवागमन के बावजूद वह लगभग अकेली ही रह गई| उसके दूसरे पति ने अनु के बचपन में उसका यौन शोषण किया जिसके कारण अनु को नयन से घृणा हो गयी| उसे हमेशा यही लगा कि सब कुछ नयन की आँखों के सामने होता रहा और उसने रोका नहीं क्योंकि नयन सिर्फ अपना ही हित देखने वाली स्त्री है और उसका  दूसरों, यहाँ तक कि अपने बच्चों से भी ज्यादा वास्ता नहीं हैं| बाकी जीवित इंसान उसके हितों के कारण उसके जीवन में आते जाते रहते हैं और वह बस अपने कथानकों के चरित्रों में खोयी रहती है| अनु किको लगता है कि नयन ने उसके और उसके भाई के जीवन नरक बना दिए| वे दोनों नयन को नाम से ही संबोधित करते हैं कभी आई (मां) नहीं कहते|

नयन का जीवन देखकर अनु ने कभी विवाह नहीं किया और एक रूसी व्यक्ति संग उसकी बेटी है माशा, जिसके प्रति अनु प्रति बेहद संवेदनशील है| माशा के जन्म के बाद अपने जीवन के कटु अनुभव से सीख लेकर अनु ने कभी अपने किसी प्रेमी को अपने घर में नहीं रहने दिया| अपनी दृष्टि में उसने माशा को एक बेहतरीन जीवन दिया|

जहां अनु बेहद मुंहफट, गाली गलौज करने वाली, क्रोधी स्वभाव की स्त्री है, माशा बेहद शांत और सुलझी हुयी युवती लगती है| और उसके शांत स्वभाव को देखकर ही अनु को लगता होगा कि उसने एक शानदार और सुरक्षित बचपन माशा को दिया| अपने जीवन में वह कभी अपने सौतेले पिता द्वारा किये शोषण के कारण अपनी मां से सम्बन्ध नहीं रख पाई लेकिन उसे असलियत पता चलती है अस्पताल के कक्ष में जहां नयन कोमा में है और हमेशा की तरह अनु नयन के ऊपर दोषारोपण कर रही है और माशा को भी सीख दे रही है कि वह कैसे अपने पुरातनपंथी ससुराल वालों के साथ रह सकती है, जिन्होंने टेस्ट कराकर पता लगाया कि माशा की कोख में पल रहा बच्चा लड़का है या लडकी| वह क्रोध में उससे कहती है कि अगर लडकी होती तो ससुराल वालों के कहने से वह बच्ची को जन्म ना देने के बारे में भी निर्णय ले लेती|

अनु और माशा के बहस के बीच अनु यह जानकार स्तब्ध रह जाती है कि उसकी तरह माशा ने भी एक प्रताड़ना भरा बचपन ही जिया| जबकि अनु ने घर पर माशा का बेहद ध्यान रखा| माशा उसे निरुत्तर छोड़ देती है यह बताकर कि घर से बाहर और स्कूल में उसका जीवन नरक से कम नहीं था और उसकी भी इच्छा मर जाने की होती थी| जब उसे उसके पिता को लेकर और अनु के बदलते प्रेमियों के कारण चिड़ा कर प्रताड़ित किया जाता था और पीटीएम् उसके लिए बेहद तनाव भरे दिन होते थे क्योंकि उनमें अनु हमेशा एक नए प्रेमी के साथ उसके स्कूल आती थी| यहाँ तक कि उसकी क्लास टीचर तक ने उससे पूछ लिया था कि अनु कितना चार्ज करती है|

अपनी दादी और मां के जीवन को देखकर माशा अपने पुरातनपंथी बड़े से संयुक्त्त परिवार में रहने वाले अपने प्रेमी से विवाह कर लेती है जहां उसके पति पर बड़ों के अंकुश हैं और सारा घर पराने किस्म के विचारों के साथ चलता है| अगर उसके सामने अपनी दादी और मां के अस्थिर जीवन के उदाहरण न हों तो शायद अपने ससुराल की इस अवस्था से प्रसन्न ना हो, लेकिन अभी वह इसी बात से संतुष्ट रहती है कि अपनी दादी और मां से उलट वह एक स्थिरता भरा जीवन जी पा रही है और उसके बच्चे को एक अच्छा सरलता भरा और जटिलताओं से रहित बचपन मिल पायेगा|

एक दृश्य में अनु बोलती है, कि नयन अभ्रंग है, माशा सम्भ्रंग है और वह स्वंय त्रिभंग है|

तीन पीढ़ियों की कशमकश को दिखाती त्रिभंग में कुछ खटकने वाली बाते भी हैं| फ़िल्म की केन्द्रीय भूमिका में काजोल के बहुत अच्छे अभिनय के बावजूद उनके शारीरिक हावभावों में एक प्रसिद्द ओडिसी नृत्यांगना वाली बातें नहीं हैं| अगर फ़िल्म उन्हें केवल बॉलीवुड अभिनेत्री दिखाती तो क्या समस्या थी? फ़िल्म में वे एक प्रसिद्द नृत्यांगना हैं लेकिन उनके नृत्य की एक झलक तक नहीं है| नृत्यांगना के रूप में रेणुका शाहने के साथ हम आपके हैं कौन में काम कर चुकी माधुरी दीक्षित क्या ज्यादा सटीक न रहतीं? यह तो संभव है जितनी गालियाँ काजोल से दिलवाई गई हैं उन्हें स्क्रिप्ट में पढ़कर माधुरी संभवतः सवयं ही इस भूमिका को करने से पीछे हट जातीं| काजोल के चरित्र द्वारा अपनाई गई भाषा आवश्यक नहीं लगती| बचपन में बेहद चुप रहने वाली अंतर्मुखी लडकी कब और कैसे ऐसी भाषा में और इतना ज्यादा बोलने वाली बहिर्मुखी स्त्री बन गई, इसका कोई संकेत फ़िल्म नहीं देती| एक सामाजिक फ़िल्म में ऐसे तर्क नहीं चलते कि चरित्र तो परदे पर दूसरे का खून भी करते हैं| अगर चरित्र पेशेवर कातिल नहीं है और साधारण मनुष्य ही है तो खून किसी परिस्थिति विशेष में किया गया अपराध है| अपनी बेटी के सामने भी अश्लील भाषा में गाली गलौज करना अनु के समाजिक परिवेश से मेल नहीं खाता| उसकी प्रेमी ऐसी भाषा नहीं बोलता, उसकी बेटी नहीं बोलती, उसका भाई नहीं बोलता, फिर अनु ने ही ऐसी भाषा की ट्रेनिंग कहाँ से ले ली?

फ़िल्म में संयोग भी हैं और कहानी में झूल भी हैं| अस्पताल में माशा को जन्म देने के बाद अनु नयन को माशा को छूने भी नहीं देना चाहती, लगभग एक माह पहले ही अनु ने नयन को धक्के मारकर अपने घर से निकाल दिया था, लेकिन अब तक उससे अपरिचित एक कलाकार रैना (कंवलजीत), जो अब नयन का नवीनतम प्रेमी है, के केवल एक बार कहने से कि अस्पताल से छुट्टी मिलते ही घर आना है और वह माशा को लेकर नयन और रैना के साथ रहने लगती है| यह अनु के स्वभाव से मेल नहीं खाता| फिर अनु का जितना झगडा था नयन से वह माशा के जन्म से पहले का है, और बाद में उसके अनुसार रैना के घर कका समय उनके जीवन का सबसे अच्छा समय था तो फिर बाद में अनु और नयन के बीच इतने कडवे रिश्ते कैसे बने रहे कि अनु को नयन की कोई खबर ही नहीं है?

फ़िल्म में एक दृश्य है जिसमें अस्पताल में कोमा में लेटी नयन को देखने रैना आते हैं और नयन के सिरहाने जासमीन के फूल रख देते हैं| शायद स्वपन में नयन को अपने बेटे और बेटी उनके बचपन में उसके लिए फूल लाते दिखाई देते हैं| अगर यह सोचा समझा निर्णय नहीं था कि तन्वी आजमी को अनु और उसके भाई के बचपन में साथ दिखाया जाए तो यह सम्पादन की गलती हो जायेगी क्योंकि अनु और उसके भाई के बचपन में उनकी मां की भूमिका तन्वी आजमी नहीं निभाती हैं|

काजोल, तन्वी आजमी, मिथिला पालकर, कंवलजीत, वैभव तत्ववादी, अपनी अपनी भूमिकाओं में रमे हैं| अनु के विस्फोटक और एक तरह से असभ्य चरित्र से उलट शिष्ट और सौम्य चरित्र में कुणाल रॉय कपूर सटीक लगते हैं|

कुछ हिचकियों के बावजूद ९५ मिनट की त्रिभंग एक अच्छा प्रयास है रेणुका शाहने का और निर्देशन के क्षेत्र में उनके उज्जवल भविष्य की गवाही है|