India's first movie on skateboarding to release on Netflix

दक्षता, किसी भी क्षेत्र में हासिल की जाये, मुक्ति प्रदान करती ही करती है, नयी संभावनाओं के द्वार खोलती है, उड़ान भरने के लिए प्रेरित करती है|

परिवर्तन लाने के लिए अवसर का होना भी आवश्यक है| अगर जेसिका (Amy Maghera) के दादा की मौत उनके कार्यस्थल पर दुर्घटना में होने पर फैक्ट्री का मालिक एक अंग्रेज, अपने कर्मचारी की मौत के बाद अनाथ हो गए सात साल के लड़के को गोद लेकर लंदन न लेकर गया होता तो कालान्तर में जेसिका का जन्म राजस्थान के इसी छोटे और पिछड़े कस्बे- खेमपुर, में हुआ होता और उसकी ज़िंदगी प्रेरणा (Rachel Saanchita Gupta) से थोड़ी सी ही अलग हो पाती| मौटे तौर पर तो उसकी ज़िंदगी उन्हीं बंदिशों से बंधी रहती जिनसे प्रेरणा का जीवन बंधा हुआ है| हो सकता है उसने थोड़ी ज्यादा पढ़ाई कर ली होती| संभवतः प्रेरणा को नजदीक से देखने पर जेसिका को इस बात का एहसास भी होता है कि ये जो लडकी जीवन जी रही है, ऐसा ही जीवन उसका भी हो सकता था अगर वह यहाँ खेमपुर में ही पलती बढ़ती|

जैसा महारानी (Waheeda Rehman) जेसिका से कहती हैं,”यहाँ के लोग बदलाव का विरोध करते हैं तब तो और ज्यादा जब यह बदलाव एक औरत लेकर आये| कभी किसी समय आपको अपने जीवन की  स्टोरी सुनाउंगी”|

कुलीन राज वर्ग से आने के बावजूद और धन-सम्पद्दा एवं शक्ति से सामर्थ्यवान होने के बावजूद महारानी के अपने दुःख हैं जो उन्होंने पुरुष प्रधान परिवेश में सीमाओं से बंधा जीवन व्यतीत करके एकत्रित किये हैं|

जेसिका और महारानी से इतर प्रेरणा है जो जनजाति से और गरीबी होने के कारण इसलिए स्कूल नहीं जाती क्योंकि उसके पास स्कूल की यूनीफोर्म नहीं है, जबकि सरकारी स्कूल में उसकी फीस आदि सब माफ़ होगी| उसका छोटा भाई स्कूल जाता है| घर में उसका पिता उसकी मां और अपने दोनों में से किसी की नहीं चलने देता| वह अपनी पत्नी और बेटी के इस प्रस्ताव पर कि अगर वे दोनों भी कुछ काम करें तो घर खर्च में थोड़ी सहायता हो जायेगी, आग बबूला हो जाता है| उसे लगता है लोगों को लगेगा कि अपना घर चलाना उसके बस की बात नहीं इसलिए अपनी पत्नी और बेटी से काम करवा रहा है| उसके लिए नारी सशक्तिकरण जैसे किसी विचार का कोई अस्तित्व है ही नहीं|

जो अध्यापक प्रेरणा को स्कूल आने के लिए कहता है वही उसके द्वारा पुस्तक न लाने के कारण सज़ा के तौर पर उससे कक्षा के बाहर फर्श साफ़ करने का काम करवाता है| उसे इस सामाजिक तथ्य से कोई मतलब नहीं कि शायद प्रेरणा के पास पुस्तक खरीदने लायक पैसे ही ना हों|

स्कूल का प्रिंसीपल इस बात से चिंतित रहता है कि बच्चे स्कूल नहीं आ रहे, लेकिण उसी स्कूल में पढने वाले अपने बेटे को वह नसीहत देता है कि उसे अपने बराबरी वाले बच्चों के साथ उठना बैठना चाहिए| प्रिंसिपल के बेटे का लगाव प्रेरणा संग है|

इन्हीं सब मिश्रित बातों में खेमपुर का जीवन चल रहा है|

बचपन साधन और इनकी कमियों पर बहुत निर्भर नहीं करता और बच्चे कैसे भी माहौल में अपने मनोरंजन हेतु वातावरण रच ही लेते हैं| यह अवश्य है कि एक बेहतरीन सुविधाजनक माहौल में उनकी कल्पना और आगे का सोच कर बेहतर भविष्य की नीवं डालती चलती है और समाज का वृहत्तर विकास होता जाता है| इसलिए कायदे के सभी विकसित देशों में स्कूली शिक्षा वहां की सरकारें मुफ्त में प्रदान करती हैं और इसी एक क्षेत्र के बलबूते वे विकसित देश बने रहते हैं और घटिया व्यापारिक सोच वाले सलाहकारों के सुझावों पर भारत में स्कूली शिक्षा को महंगे से मंहगा बनाकर आज़ादी के बाद से ही देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाता रहा है| यहाँ ऐसे ऐसे आर्थिक विशेषज्ञ होते रहे हैं जिनका सोच विचार ऐसा रहा है कि शिक्षा और स्वास्थ्य सरकार का काम नहीं| शिक्षा में तो कण कण बोल रहा है कि उनकी सलाह विनाशकारी रही है और भारत छलांग लगा कर विकसित नहीं बन पा रहा उसमें सबसे बड़ी रुकावट स्कूली शिक्षा का मुफ्त न होना ही है| कोविड ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी आँखें खो दी हैं कि स्वास्थ्य भी सरकार का ही काम है| स्वस्थ और शिक्षित नागरिक ही एक बेहतर समाज और देश का निर्माण कर सकते हैं|

सीमितताओं में बंधे जीवन जीते खेमपुर के बच्चों के जीवन में परिवर्तन के बीज उगते हैं जेसिका के फिरंगी मित्र एरिक (Jonathan Readwin) द्वारा प्रेरणा को अपना स्केटबोर्ड देने से| जेसिका ने इससे पहले प्रेरणा के छोटे भाई अंकुश (Shafin Patel) द्वारा स्केटबोर्ड जैसी ही बनाई गई पहियों वाली पटरी का वीडियो बनाया था जिसे देखकर एरिक वहां आ जाता है| स्केटबोर्ड प्रेरणा के ही जीवन में बदलाव नहीं लाता बल्कि खेमपुर के सारे बच्चों के जीवन में एक उल्लास भर देता है|

पहियों वाली पटरियों से उनका खेलना हो जाता था, समय कट जाता था लेकिन स्केटबोर्ड सीखने से वे शेष दुनिया के एक ऐसे खेल से जुड़ जाते हैं जिसे दुनिया भर में करोड़ों लोग खेलते हैं| इस नए खेल से उन्हें एक उद्देश्य मिल जाता है| गिल्ली डंडे का महत्व बढ़ जाए अगर उसे एक खेल के रूप में मान्यता मिल कर उसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर खेला जाए और बाद में उसे अन्तर्राष्ट्रीय बनाया जाए|  

प्रेरणा ने स्केटबोर्ड चलने से पहले मुक्ति के इस भाव का अनुभव पहले नहीं किया था| इस खेल को सीखने से जब इसमें उसकी दक्षता बढ़ती है तब उसे एहसास होता है कि इसमें संभावना है| खेल में प्रतिस्पर्धा का महत्व है| उसके पिता के सोच विचार में यह आर खेल लड़कों के खेल हैं और प्रेरणा को ऐसे खेल नहीं खेलने चाहियें| उसके पिता का सोचना है कि जल्दी ही प्रेरणा की शादी हो जायेगी सो उसे घर के कामकाज सीखकर उनमें अपनी कुशलता बढानी चाहिए| प्रेरणा का दिल स्केटबोर्ड से लग चुका है और उसके पिता की कुंद बुद्धि स्केटबोर्ड को दुश्मन समझती है|

स्केटबोर्ड के भूत से पीछा छुटाने के लिए वह प्रेरणा का विवाह तय कर देता है| प्रेरणा अब दोराहे पर खड़ी है, या तो जैसा उसका अब तक चलता रहा है उसी राह पर चलकर वह विवाह कर ले और अपनी मां जैसा जीवन जिए जहां उसकी अपने एकीसी इच्छा का कोई महत्व नहीं होगा, वह एक मशीन की तरह नए परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ती करती रहेगी|

या वह स्केटबोर्ड प्रतिस्पर्धा में भाग लेकर अपनी इच्छा की पूर्ति करे और इसे समय पर छोड़ दे कि आगे उसके जीवन में क्या होगा|

महारानी एक समय जेसिका से कहती हैं,” अगर स्केट पार्क न बनाएं तो जैसा अब तक चलता आया है आगे भी ऐसे ही चलेगा| लेकिन अगर स्केट पार्क बनवा दिया गया तो लोग विरोध तो करेंगे लेकिन परिवर्तन भी आयेगा|”

उसी तर्ज पर प्रेरणा चलकर प्रतिस्पर्धा में पहुँच जाती है| प्रेरणा के पिता के लिए यह बहुत बड़ी बात है कि महारानी स्वयं प्रेरणा का उत्साहवर्धन कर रही हैं और उसे अपनी तरफ से पुरस्कार दे रही हैं|

एक खेल-फ़िल्म होने के नाते स्केटर-गर्ल, अच्छी फ़िल्म है, तकनीकी रूप से भी और भावनात्मक रूप से भी| अभिनय के स्तर पर भी स्वाभाविकता से भरपूर है|

दिवंगत अभिनेता मैकमोहन की सुपुत्रियों मंजरी एवं विनती माकिजानी ने इसे लिखा है और मंजरी माकिजानी ने इसे निर्देशित किया है| पहली फ़ीचर फ़िल्म के रूप में मंजरी ने आकर्षक फ़िल्म बनाई है| हिंदी सिनेमा में महिला निर्देशक नए मुकाम हासिल करती जा रही हैं| अभिनेत्रियों ने तो सदैव ही अपने साथी अभिनेताओं को कड़ी टक्कर दी है लेकिन अब निर्देशन और फ़िल्म निर्माण के बाकी तकनीकी क्षेत्रों में भी महिलायें श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही हैं और यहाँ ऐसा भी नहीं है कि पुरुष और महिलाओं के लिए अलग वर्ग हो| दोनों एक ही श्रेणी में प्रतिस्पर्धाबद्ध हैं|

मध्यप्रदेश के जनवार गाँव की आशा गोंड और जर्मन Ulrike Reinhard के जीवन से फ़िल्म का काफ़ी हिस्सा प्रेरित है, और यहाँ तक कि आशा के स्कूल के बाहर लिखी इबारत ‘No School. No Skateboarding’ भी फ़िल्म में ली गई है| जैसा सीमेंट का स्केटपार्क Ulrike Reinhard ने जनवार में बनवाया वैसा ही फ़िल्म वालों ने खेमपुर में बनाया| भारत में अन्य जगहों के स्केटपार्कों से भी फ़िल्म ने प्रेरणा ली होगी|

इन सबको सही क्रेडिट देकर हिन्दी फिल्मों में परिवर्तन की बयार तो यह फ़िल्म बहा ही सकती थी| हिन्दी सिनेमा में नियमित रूप से विदेशी फिल्मों की अनाधिकृत नकलें बनाई जाती हैं| किसी लेखक की कहानी से सामग्री उठाकर कुछ बदलाव करके फ़िल्म बना दी जाती है और बेचारे लेखक से आशा की जाती है कि वह धनी फ़िल्म निर्माताओं से अदालती लड़ाई लडे|

परिवर्तन पर आधारित फ़िल्म इतना तो कर सकती थी कि आशा गोंड और Ulrike Reinhard के जीवन की घटनाओं से प्रेरणा को सही क्रेडिट देती|

…[राकेश]

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