मानवेंद्र, महाश्य जी के बहुत से किस्से चटखारे लेकर सुनाया करते, और बहुत बार तो महाश्य जी की उपस्थिति में ही, और महाश्य जी खुद भी अपने बारे में नमक मिर्च लगा कर सुनाये गए इन किस्सों को सुनकर ठहाके लगा कर हँसा करते थे| जब देश में कम जगह लाफिंग क्लब जैसे शब्द प्रचलन में आए होंगे तब उन्होंने “गंगा किनारे हंसोड़ समुदाय” की स्थापना कर दी थी| गंगा तट पर सुबह योग, ध्यान, और हंसने के लिए आये लोगों की मंडली जमा होती थी| सुबह सवेरे की ऐसी मंडली में महाश्य जी की उपस्थिति में बहुधा उनके ही प्रसंगों को सुनाया जाता और वे खुद भी उन्हें सुन कर हंसी से दुहरे हो जाते|

एक दिन मानवेंद्र ने महाश्य जी के जीवन से जुड़ा एक प्रसंग सुनाया था| स्मृति के आधार पर वह निम्न रूप में उपस्थित है :-

“जैसे विचित्र हमारे महाश्य जी वैसी ही विचित्र उनके साथ होने वाली घटनायें। महाश्य जी ठहरे एक झोंक में काम करने वाले व्यक्ति। अगर कुछ करने की सोच लें तो न आगा देखें न पीछा बस जुट जाते उस काम को पूरा करने में। दूसरों से सीखने का तो मतलब ही नहीं उठा कभी उनके जीवन में। वे रहे सेल्फ मेड व्यक्ति, वैसे ये बात दीगर है कि कितना निर्माण उनके द्वारा किये कामों से होता और कितना विध्वंस कई बार उनकी हरकतों की वजह से हो जाता। करने के बाद सोचना उनकी फितरत में रहा ही नहीं। कह दिया सो कह दिया ! कर दिया सो कर दिया!

घर में उनके पाँव कभी टिके नहीं, और जमाने भर के सिर दर्द वे अपने माथे लेकर चलते| एक बार घर वाले उन्हें उलहाना देने लगे कि वे घर के किसी काम से मतलब नहीं रखते और परिवार को नजरअंदाज किये रखते हैं। बाकी लोग अपने परिवार के साथ घुमने जाते हैं उन्हें मेला दिखाने ले जाते हैं, सिनेमा दिखाने ले जाते हैं पर महाश्य जी हमेशा दीन दुनिया के कामों में ही व्यस्त रहते हैं|

महाश्य जी रोज़ रोज़ के वाद विवादों से परेशान होकर वादा कर बैठे कि वे भी परिवार को कहीं न कहीं बाहर ले जाएँगे| सबका मनोरंजन करायेंगे पर स्थान आदि उनकी अपनी मर्जी का होगा।

उनके परिवार वाले ऐसा कोई मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे सो उन्होंने झट से हाँ कर दी।

महाश्य जी ने अपने कुछ दोस्तों से इस समस्या का जिक्र किया कि मेरी शांति के दुश्मन इन लोगों को कहीं भी ले जाना बिना मतलब की परेशानी को मोल लेना है तो क्या करना चाहिए| उनके एक मित्र ने सबको फ़िल्म दिखाने ले जाने का सुझाव दिया|

महाश्य जी  को प्रस्ताव तुरंत पसंद आ गया, और प्रसन्नचित होकर बोले,” इन सबको फिल्म दिखाने ले जाना अच्छा रहेगा, कम से कम सिनेमा हॉल के अंधेरे में मैं सो तो सकता हूँ।“

महाश्य जी ने परिवार में क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या स्त्री और क्या पुरुष सबको कह दिया कि अगामी रविवार को सब लोग तैयार रहें और वे उन सबको फिल्म दिखाने ले जायेंगे। चाहें तो वे लोग अपने- अपने मित्रों को भी आमंत्रित कर सकते हैं।

पूरे मोहल्ले के लिये चर्चा का विषय बन गया महाश्य जी जैसे आदमी द्वारा परिवार और मित्रों को फिल्म दिखाने ले जाने का कार्यक्रम। रविवार तक पूरी फौज तैयार हो गयी फ़िल्म देखने जाने के लिये।

महाश्य जी उन दिनों मुकेश और मन्ना डे द्वारा गायी गई राम चरित मानस का तुलनात्मक श्रवण कर रहे थे अध्ययन कर रहे थे और अपना अंतिम मत बनाने के कगार पर थे कि मुकेश ने यहाँ मन्ना डे से बाजी मार ली|

बहुत सालों से थियेटर में फिल्में देखना उन्होंने बंद कर दी थी| रविवार शाम घर पर अगर ठहर गए तो कभी कभार दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाली फ़िल्म देख लेते|

फ़िल्म देखना सुझाने वाले मित्र ने उन्हें पिछले ही हफ़्ते प्रदर्शित हुयी राज कपूर द्वारा निर्देशित फ़िल्म – “राम तेरी गंगा मैली” देख आने का सुझाव दिया| हालांकि उसने खुद भी फ़िल्म अभी देखी नहीं थी|

महाश्य जी ने कहा,” हाँ ये ठीक रहेगी, धार्मिक फिल्म लगती है और राम का नाम शीर्षक में मौजूद है तो उनके जीवन के प्रसंग भी इसमें होंगे और हो सकता है कि मेरी रुचि से मिलती जुलती बातें भी फ़िल्म में मिल जायें।“

राज कपूर द्वारा निर्देशित मेरा नाम जोकर तक की उनकी सभी फ़िल्में वे तब तक देख चुके थे और आप सबको ज्ञात है ही कि राज कपूर की संगीत की समझ के वे कितने बड़े कदादान हैं|

फ़िल्म के गाने फ़िल्म प्रदर्शित होने से पहले ही बजने लगते हैं| घर वापिस जाते समय एक द्कान से सामान लेते हुये उन्हें लता मंगेशकर की आवाज़ में एक गीत सुनाई दिया – “एक राधा एक मीरा”| गीत ने उन्हें मोह लिया| उन्होंने दुकानदार से पूछ ही लिया कि किस फिल्म का गाना है?

दुकानदार ने बताया कि नई फ़िल्म – राम तेरी गंगा मैली, का गीत है| फ़िल्म का नाम जानकर महाश्य जी उत्साह से भर गए और उन्हें पूरी तसल्ली हो गयी कि वे एक बेहतरीन धार्मिक फिल्म देखने जा रहे हैं। अगले दिन उन्होंने तकरीबन दो दर्जन टिकट रविवार के मैटिनी शो के खरीद लिये।

रविवार आया। महाश्य जी सबको सिनेमा हाल ले गये।

रविवार को महाश्य जी गये तो थे रामायण देखने और दिखाने पर वहाँ से लेकर आये महाभारत होने के बीज और कल्पना ही की जा सकती है कि कैसी फसल उगी होगी उन बीजों से। फ़िल्म शुरु होने के एक घंटे के अंदर ही सब लोग वापिस घर पर थे। महाश्य जी रास्ते से ही गायब हो गये और सीधे पहुंचे अपने मित्र के यहाँ जिसने उन्हें यह फ़िल्म सपरिवार देखने जाने का विचार सुझाया था|”

मानवेन्द्र ने सभा में उपस्थित लोगों पर एक निगाह डाल कहा,” अब वे कौन से मित्र थे और वहाँ मित्र के घर क्या हुआ या तो वे मित्र बताएं या महाश्य जी, क्योंकि दोनों यहीं मौजूद हैं|”

गंगा तट पर महाश्य जी समेत “गंगा किनारे हंसोड़ समुदाय” के सभी सदस्य हँसते हँसते रेत में लोट पोट हो रहे थे|

…[राकेश]

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