duniya rangपिछली सदी के तीस और चालीस के दशक में समूचा भारत कुंदनलाल सहगल की आवाज़ के मोहपाश में यूँ ही नहीं बंध गया था। के.एल सहगल की संवेदना से भरपूर भावप्रवण गायिकी और गंगोत्री में गंगा के जल जैसा शब्दों का साफ एवम स्पष्ट उच्चारण, गाने का बहाव और ठीक मौके पर ठहराव सभी ऐसे गुण थे, जो उनकी गायिकी के जादू से लोगों को बाँधते चले जा रहे थे। वे बिल्कुल सर्वश्रेष्ठ गायक होने लायक थे और यह बात उनके ऐसे गानों से स्पष्ट होती है जो उन्होने अपने समकालीन दूसरे गायकों के साथ गाये हैं। वे श्रोताओं को फिल्मी गीतों में शास्त्रीय संगीत की भरपूर मात्रा अपनी मीठी आवाज़ के जरिये प्रदान कर रहे थे। हिन्दी, संस्कृतनिष्ठ और उर्दू के क्लिष्ट शब्द भी उनकी वाणी से ऐसे निकलते थे मानो उन्ही के गले के लिये ये शब्द रचे गये हों। वे कठिन से कठिन शब्द को लय में गाकर सरल बना देते थे।

के.एल. सहगल होने का क्या अर्थ था यह 1938 में प्रदर्शित हुयी फिल्म – “धरती माता” के गीत ” दुनिया रंग-रंगीली बाबा” से पता चलता है।

फिल्म में यह गीत क्रमशः के.सी डे, उमा शशि और के.एल. सहगल गाते हैं जबकि फिल्म के संगीत के रिकार्ड में इसी गीत में स्वर क्रमशः पंकज मलिक, उमा शशि और के.एल. सहगल का है।

प्रसिद्ध गायल मन्ना डे, के.सी. डे के भतीजे हैं। के.सी.डे सचिन देव बर्मन के संगीत गुरु भी रहे हैं और वे अपने समय के बेहद प्रसिद्ध गायक थे। पंकज मलिक तो गायक और संगीतकार के रुप में हिन्दी फिल्मों में भी अपार प्रसिद्धि पा चुके थे।

उमा शशि भी पारंगत और प्रसिद्ध गायिका थीं। जब एक ही स्तर के गुणों वाले महारथी मैदान में हों तो उच्च गुणवत्ता वाली रचनायें जन्म लेती हैं।

के.सी.डे, उमा शशि और के.एल.सहगल संस्करण

पंकज मलिक, उमा शशि और के.एल. सहगल संस्करण

इसी फिल्म “धरती माता” के अन्य गीत जो के. एल. सहगल ने गाये हैं, जैसे एकल गीत “अब काह करुँ, कित जाऊँ“, या उमा शशि के साथ गाया युगल गीत “मैं मन की बात बताऊँ” या गीत “किसने ये खेल रचाया” वे भी उनकी श्रेष्ठता साबित करते हैं पर
गीत ” दुनिया रंग-रंगीली बाबा” के दोनों संस्करणों को सुनकर इस बात को आसानी से माना जा सकता है कि अच्छे गायकों पंकज मलिक, के.सी. डे और उमा शशि के मध्य खड़े के.एल.सहगल में कुछ ऐसा था जो इन गायकों एवम अपने समकालीन अन्य गायकों से कुछ अलग हटकर था। वह इतर गुण ही उन्हे अपने समकालीनों में श्रेष्ठतम बनाता है।

जब के.एल.सहगल की बारी आने से पहले के.सी.डे या पंकज मलिक, उमा शशि के साथ इस गीत को गाते हैं तब भी गीत अच्छी स्वर-लहरियों के साथ आनंद देता है और उमा शशि का लहराती आवाज में हा हा हा करते हुये के.सी.डे और पंकज मलिक के गायन के चलते रहने के बीच में प्रवेश करना लुभावना लगता है पर जब यही कार्य के.एल सहगल करते हैं और उमा शशि के गायन पर हा हा हा के अपने गायन की छतरी तान कर गाने में प्रवेश करते हैं तो गीत कुछ और ही हो जाता है और जब वे गाते हैं –

दुख की नदिया जीवन नैया आशा के पतवार लगे
ओ नैया के खेने वाले नैया तेरी पार लगे
पार बसत है देस सुनहरा
किस्मत छैल-छबीली बाबा

तो यही गीत बहुत ऊपर आकाश में उड़ने लगता है।

ओ नैया के खेने वाले… वाली पंक्ति में उनका गायन उनकी आवाज़ का जादू और इसकी श्रेष्ठता दोनों का भली भांति प्रतिनिधित्व करता है।

ऐसा तो नहीं हुआ होगा कि पंकज मलिक ने तीन गायकों के इस सयुंक्त्त गीत में के.एल.सहगल वाले भाग के लिये अलग से धुन तैयार की होगी या प. सुदर्शन ने कुछ विशेष शब्द के.एल.सहगल वाले भाग के लिये लिखे होंगे। वही धुन तीनों गायकों को मिली है। एक ही कवि ने तीनों के लिये शब्द रचे हैं। यह के.एल.सहगल की गायिकी की अपनी विशेषता और विशिष्टता है कि तीन गायकों वाले गीत में उनके द्वारा गाया भाग एक अलग ही ऊँचाई प्राप्त करता है।

अलग-अलग गायकों में तुलना नहीं हो सकती। सबका अपना अंदाज़ होता है। के.सी.डे, पंकज मलिक और उमा शशि के एकल गीत हैं जो अलग आनंद लेकर आते हैं। पर अगर एक ही गीत को एक ही साथ कई गायक गायें तो सापेक्ष भाव आ जाना स्वाभाविक है। यही इस गीत के साथ होता है।

के.एल. सहगल की गायी पंक्तियाँ सुनिश्चित कर देती हैं कि अब यह गीत श्रोता के दिल से मुश्किल से ही निकल पायेगा।

…[राकॆश]

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