कला का क्षेत्र इस बात में एक विशिष्टता रखता है कि विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्त्ति कला के क्षेत्र में अपना योगदान दे सकते हैं और अपने साथ वे अपने क्षेत्र की विशेषज्ञता साथ लाते ही हैं। दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के दूसरे विजेता श्री बी. एन. सरकार (1901-1980) का सिनेमा से जुड़ाव भी कुछ इसी तरह से हुआ था। वे एक सिविल इंजीनियर थे जो फिल्मों से जुड़े और सिनेमा के प्रति अपने आकर्षण को केवल एक दर्शक की भाँति सीमित न रखकर उन्होने सिनेमा के संसार में अपने सपनों को पूरा किया और इस सपनीली यात्रा पर चलते हुये यथार्थ से टकराते हुये अपनी दूरदर्शिता, नेतृत्व क्षमता और प्रतिभा के बल पर भारतीय सिनेमा को इसकी शैशवास्था में विकास की राह पर मजबूती से चलाये रखने में सुदृढ़ योगदान दिया।
अविभाजित बंगाल में सर एन. एन. सरकार के घर उनके दूसरे पुत्र का जन्म सन 1901 में हुआ। बालक को नाम दिया गया बिरेन्द्रनाथ सरकार। बिरेन्द्रनाथ के पिता बंगाल के एडवोकेट जनरल थे और वॉयसरॉय की कौन्सिल के सदस्य भी थे। बड़ा होने पर बिरेन्द्र नाथ को लंदन यूनिवर्सिटी भेजा गया सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने। भारत आकर उन्होने सिविल कॉन्ट्रेक्टर के रुप में अपना व्यवसाय शुरु किया और इसी सिलसिले में एक सिनेमा हॉल की इमारत का मुआयना करते हुये उनके अंदर सिनेमा के प्रति रुचि का बीजारोपण हुआ। बीज शीघ्र ही अंकुरित भी हो गया और जब सिनेमा के प्रति आकर्षण जब पौधा बन लहलहाने लगा तो उन्होने कलकत्ता में खुद के एक सिनेमा हॉल का निर्माण किया और इसे नाम दिया “चित्रा“।
चित्रा सिनेमा को बड़ा सौभाग्य प्राप्त हुआ जब दिसम्बर 1930 में नेता जी सुभाषचंद्र बोस के हाथों इसका उदघाटन हुआ। जल्दी ही बी. एन. सरकार ने एक अन्य थियेटर – न्यू सिनेमा, का निर्माण कलकत्ता में किया। पर केवल दो सिनेमाघरों के निर्माण से ही बी. एन. सरकार का सिनेमा के प्रति रुझान पूर्णतया संतुष्ट न हुआ और वे सिनेमा के क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाने के लिये उत्सुक हो गये और इसी लगन ने उन्हे प्रेरित किया अपनी खुद की प्रोडक्शन कम्पनी शुरु करने के लिये।
तीस के दशक के शुरुआती साल में ही उन्होने इंटरनेशनल फिल्म क्राफ्ट, नाम से प्रोडक्शन कम्पनी शुरु की और इस बैनर के तहत शुरु में उन्होने दो मूक फिल्मों का निर्माण किया। ये फिल्में थीं – Chashar Meye, और Chor Kanta । इसी साल उन्होने अपने एक मित्र के साथ मिलकर एक अन्य मूक फिल्म- Buker Bojha, का निर्माण किया। भारतीय सिनेमा में बोलती फिल्मों के आगमन के साथ ही 1931 में उन्होने टॉलीगंज में स्वयं के स्टूडियो का निर्माण किया और इसका नामकरण किया गया – न्यू थियेटर्स लिमिटेड । इस स्टूडियो में उनकी पहली बोलती फिल्म बनी बांग्ला भाषा में। फिल्म थी – Dene Paona |
उन्होने अपने दोनों सिनेमाघरों को इस विधि से चलाया कि ’चित्रा’ में बंगाली फिल्में दिखायी जाती रहीं और ’न्यू सिनेमा’ को खासतौर पर हिन्दी फिल्में दिखाने के लिये सुरक्षित रखा गया।
बी. एन. सरकार शीघ्र ही बंगाल के एक प्रमुख फिल्म निर्माता बन गये। तकरीबन पच्चीस साल तक उन्होने न्यू थियेटर्स का चक्का अनवरत रुप से चलाये रखा और 150 फिल्मों से ज्यादा फिल्मों का निर्माण किया । उन्होने हिन्दी और बंगाली के साथ-साथ तमिल फिल्मों का भी निर्माण किया । बहुत सारी फिल्में उन्होने बांग्ला और हिन्दी, दोनों भाषाओं में बनायीं, ऐसी फिल्मों में के. एल. सहगल अभिनीत देवदास और स्ट्रीट सिंगर प्रमुख हैं। देवदास के बंगाली संस्करण में देवदास की प्रमुख भूमिका फिल्म के निर्देशक पी. सी बरुआ ने स्वयं निभायी थी और हिन्दी संस्करण में यह भूमिका के. एल सहगल ने निभायी थी। के. एल. सहगल ने बंगाली संस्करण में चुन्नीलाल की भूमिका निभायी थी। देवदास के बंगाली संस्करण ने पी.सी बरुआ को सितारा बना दिया और इसके हिन्दी संस्करण ने के.एल.सहगल की शोहरत को बुलन्दियों पर पहुँचा दिया। देवदास में एडिटिंग में जम्प कट्स तकनीक का इस्तेमाल भावनाओं की तीव्रता बढ़ाने के लिये किया गया और इस विधि से प्रस्तुत किये गये फिल्म के दृष्यों ने ने दर्शकों पर गहरा असर छोड़ा।
Vidhyapati, Badi Didi, President, Chandidas, Yahudi ki ladki, Mukti और Dhoop Chaon, उनकी अन्य प्रसिद्ध हिन्दी फिल्में हैं जो बंगाली भाषा में भी बनी थीं। 1955 में बनी Bakul संभवतः उनके द्वारा निर्मित अंतिम फिल्म थी।
बी. एन. सरकार के कुशल नेतृत्व में न्यू थियेटर्स ने लगातार कई सालों तक बेहतरीन फिल्मों का निर्माण किया। उनकी फिल्मों ने रविन्द्रनाथ टैगोर, बंकिमचन्द्र चटर्जी, और शरतचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित साहित्य के फिल्मी संस्करण प्रस्तुत किये गये। बी. एन. सरकार की देखरेख में जहाँ न्यू थियेटर्स ने अच्छे साहित्य को अपनी फिल्मों की विषयवस्तु बनाया और सामाजिक एवम मानवीय सरोकारों से सराबोर फिल्में बनायीं वहीं उनकी फिल्मों में मनोरंजन तत्व हमेशा ही प्रचुरता में उपस्थित रहा । इन्ही सब उल्लेखनीय तत्वों के कारण दर्शकों ने उनकी फिल्मों को हाथों-हाथ लिया और पच्चीस साल तक उनकी फिल्में सफलता के झंडे गाड़ती रहीं।
बंगाल के प्रसिद्ध साहित्यकारों की रचनाओं से प्रेरणा लेने के साथ-साथ न्यू थियेटर्स ने अपने समय के प्रसिद्ध लेखकों को भी अपने यहाँ आमंत्रित किया अपनी फिल्मों के लिये कथा और पटकथा लिखने के लिये। ऐसे लेखकों में सैलजानंद मुखोपाध्याय का नाम प्रमुख है जिन्होने न्यू थियेटर्स की कई फिल्मों में अपनी लेखनी का योगदान दिया। उनके सहयोग से बनी फिल्मों में Deshar Mati, Jiban Maran, और Daktar मुख्य हैं। न्यू थियेटर्स की बेहद सफल फिल्मों- Pratisruti, Parichay, और Wapas के जरिये एक और लेखक बिनॉय चटर्जी की लेखकीय प्रतिभा सामने आयी। बिनॉय चटर्जी ने केवल फिल्मों के लिये ही लिखा।
न्यू थियेटर्स के जरिये ही बहुत सारे कलाकारों ने देशव्यापी और अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाने की ओर शुरुआती कदम उठाने का अवसर, संरक्षण और मार्गदर्शन पाया । के.एल. सहगल, पंकज मलिक, बिमल रॉय, पी.सी बरुआ, नितिन बोस, फणी मजूमदार, देबकी बोस, सिसिर कुमार भादुड़ी, नीमो, तिमिर बारन, जमुना, और लीला देसाई आदि बहुत सारे कलाकारों ने शुरुआत में अपने प्रतिभा को न्यू थियेटर्स के संरक्षण तले ही संवारा और निखारा । न्यू थियेटर्स ने ही बंगाल में बोलती फिल्मों की शुरुआत की और पार्श्व गायन (प्लेबैक सिंगिंग) को फिल्मों में स्थान दिया।
केवल बंगाल ही नहीं बल्कि सारे भारत में जन्मी कई पीढ़ियों के दर्शकों को न्यू थियेटर्स द्वारा बनायी गयी फिल्मों ने लुभाया है, शिक्षित किया है, भावनाओं से सराबोर किया है। दुनिया की कई नामी फिल्म कम्पनियों के लोगो की भाँति न्यू थियेटर्स का लोगो- जिसमें एक हाथी सूँड उठाये हुये है- दर्शकों के लिये फिल्मों में गुणवत्ता का प्रतीक रहा है। न्यू थियेटर्स एक संस्थान के रुप में आज भी याद किया जाता है। न्यू थियेटर्स के दूरदर्शी संस्थापक बिरेन्द्रनाथ सरकार भी लोगों में बंगाल में जन्म लेने वाले अन्य नायकों की भाँति ही अपनी जगह बना गये हैं।
बी. एन. सरकार फिल्म संसार से जुड़ी कई संस्थाओं से भी सम्बंधित रहे और फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने का काम जीवनपर्यंत करते रहे। वे B.M.P.A के अध्यक्ष रहे और Film federation of India के भी अध्यक्ष रहे । वे Central Film Censor Board के सदस्य रहे। बंगाल सरकार द्वारा स्थापित Film Consulative Committee का सदस्य भी उन्हे बनाया गया। वे Film and TV Institute की Joint Advisory Committee के सदस्य भी रहे और National Film Achives of India के सदस्य भी। वे Children’s Film Society के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। भारतीय सिनेमा में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिये उन्हे दूसरे दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (1971) से सम्मानित किया गया और भारत सरकार ने उनके योगदान के लिये उन्हे 1971 में ही पदमभूषण प्रदान किया।
भारतीय सिनेमा के विकास में बी. एन. सरकार जैसे, मजबूत नींव डालने वाले, निर्माता का बहुत बड़ा योगदान है। भारतीय सिनेमा उनके योगदान को कभी भुला न पायेगा।
…[राकेश]
Leave a Reply