aajजीवन में यदि कुछ स्थायी है तो वह है निरंतर होने वाला परिवर्तन।

हर पल कुछ नया हो रहा है।

खुशी को स्थायी भाव बनाना चाहता है मनुष्य और दुख को जल्दी से जाने वाला भाव।

पर समय कभी एक सा नहीं रहता… –

किसी के लिये नहीं रहता, किसी के लिये कभी नहीं रहा।

जीवन अनपेक्षित है और कभी तो जान लड़ा देने से भी वांछित नहीं मिल पाता और कभी जब कतई कोई आशा न हो तब बिन मांगे चाह पूरी हो जाती है।

दूसरी स्थिति में अनायास खुशी मिल जाती है और पहली अवस्था सिखा जाती है कि जीवन से अपेक्षायें और हद से ज्यादा अपेक्षायें दुख लाती हैं और तब अपनी ही जिन्दगी दुश्मन लगने लगती है।

कभी सब कुछ ठीक चल रहा होता है और मोह दुख का प्रवेश जीवन में करा देता है क्योंकि जो खुशी दूसरे पर निर्भर है वह कभी भी खो सकती है।

सम्बंधों में क्षमा का बहुत बड़ा महत्व है और दूसरे को क्षमा न कर पाने के कारण व्यक्ति कष्ट पाता है। वह भूल जाता है कि भूल तो सबसे होती है|

ऐसा तो कोई मनुष्य हुआ ही नहीं आज तक, चाहे वह भगवान का अवतार ही क्यों न रहा हो मनुष्य रुप में, जिससे गलतियाँ न हुयी हों।

ऐसी सब बातों को यदि कोई कविता या गीत कुछ ही पंक्तियों में प्रस्तुत कर दे तो उस काव्य के नमूने को उत्कृष्ट ही कहा जायेगा।

मदनपाल ने ऐसा ही काव्य रचा निम्नांकित गीत में।

ज़िन्दगी रोज नये रंग में ढ़ल जाती है
कभी दुश्मन तो कभी दोस्त नज़र आती है।

    कभी छा जाये बरस जाये घटा बेमौसम

    कभी एक बूँद को रुह तरस जाती है

    ज़िन्दगी रोज नये रंग में ढ़ल जाती है।

   

जब कोई अपना चला जाये छुड़ाकर दामन

    दिल के अरमानों पर तलवार सी चल जाती है

    टूट जाते हैं बिखर जाते हैं मोती सारे

    प्यार की माला कहीं से भी जो कट जाती है।

    मेरे मांज़ी पे न जा मेरे गुनाहों को न गिन

    कौन है जिससे कभी भूल न हो पाती है।

    ज़िन्दगी रोज़ नये रंग में ढ़ल जाती है।

इस गीत को जगजीत सिंह ने संगीत से सजाया था और इसे महेश भट्ट ने अपने निर्देशन में बनी कुमार गौरव अभिनीत फिल्म आज (१९९०) में लिया था। इस समूह गीत को गया था अशोक खोसला, विनोद सहगल, घनश्याम वासवानी और जुनैद अख्तर ने।

फिल्म में जगजीत सिंह का प्रसिद्ध गीत “वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी” भी शामिल किया गया था। जगजीत सिंह ने एक और अच्छा गीत “फिर आज मुझे” भी गाया था। एक अन्य गीत “रिश्ता ये कैसा हैचित्रा सिंह की आवाज में था।

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