किसी भी फ़िल्म में बड़े और महत्वपूर्ण चरित्रों को पा जाने वाले अभिनेताओं में अपने आप एक ऊर्जा भर जाती है और हर काबिल अभिनेता उसका लाभ उठाता है| पर अकसर ही कम महत्व वाले या छोटे काल के लिए पर्दे पर उपस्थित होने वाले चरित्रों में भी अच्छे अभिनेता अपनी एक अलग छाप छोड़ जाते हैं और अन्य अच्छे अभिनय प्रदर्शनों की भीड़ में भी वे अपनी चमक दिखा कर ध्यान खींच लेते हैं| जैसे एटेनबरो की गांधी में गज़ब के बहुत से अभिनय प्रदर्शनों के मध्य भी ओम पुरी ने डेढ़ मिनट के दृश्य से ही दुनिया को अपनी और आकर्षित कर लिया था| अनुराग कश्यप की ब्लैक फ्राइडे में के॰के॰मेनन, पवन मल्होत्रा, आदित्य श्रीवास्तव और कुछ अन्य अभिनेताओं द्वारा मुख्य चरित्रों में शानदार अभिनय प्रदर्शन दिखाने के करतब के मध्य एक नवागंतुक अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अपेक्षाकृत बेहद छोटे से रोल में ध्रुव तारे सी चमक दिखाई थी| यहाँ सेक्रेड गेम्स में बहुत से अभिनेताओं ने उल्लेखनीय अभिनय प्रदर्शन का कौशल दिखाया है| बेहद प्रतिभाशाली अभिनेताओं के बहुत अच्छे अभिनय प्रदर्शनों के मध्य यहाँ त्रिवेदी का चरित्र निभाने वाले अभिनेता चितरंजन त्रिपाठी ने अपने चरित्र के साथ सौ प्रतिशत खरी गुणवत्ता वाला साथ निभाया है| उनका अभिनय प्रदर्शन ऐसा है जैसा उच्च कोटि के शास्त्रीय गायक का किसी ऐसे दिन गायन कला का प्रदर्शन जिस दिन संगीत का हर तत्व उसके नियंत्रण में हो| चरित्र की गहराई, उसका मनोविज्ञान, उसके द्वारा प्रदर्शित हो सकने वाले हाव भाव पर सधा हुआ नियंत्रण, सब कुछ शास्त्रीय तरीके से सामने आता है|

सेक्रेड गेम्स का एक सबसे मुख्य चरित्र गणेश गायतोंडे कहता है कि उसके तीन बाप हैं| गाँव में रहने वाला गरीब भिक्षु पंडित, बंबई का सोने का तस्कर सलीम काका और गुरुजी|  श्रंखला में स्पष्ट है कि तीसरे बाप गुरुजी ने गणेश के जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित किया|

सेक्रेड गेम्स’ श्रंखला का असली पिता कौन माना जाएगा?

कहते हैं कि सिनेमा निर्देशक के नियंत्रण का माध्यम है| पर सेक्रेड गेम्स के प्रदर्शन में कह पाना मुश्किल है कि  इसका नियंत्रण किसके पास रहा है? जैसा दर्शकों को बताया गया, कि दो निर्देशकों की टीम ने अपने अपने भाग शूट करके सामग्री जुटा दी और फिर एक प्रेजेंटर ने उन हिस्सों को अपने ढंग से प्रस्तुत किया है| क्या प्रेजेंटर ने निर्दशकों द्वारा रची सामग्री को डीजे जैसी गतिविधियां करके एक मिश्रण दर्शकों के सामने प्रस्तुत कर दिया? सेक्रेड गेम्स के अंतिम प्रदर्शित रूप की गुणवत्ता और सामग्री के लिए कौन जिम्मेदार माना जाएगा? शूट करने वाले निर्देशक द्वय या प्रेजेंटर? यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि श्रंखला में कुछ बड़े बड़े लोचे उपस्थित दिखाई देते हैं| इन लोचों के असली निर्माता कौन हैं?  लेखकों की टीम, निर्देशकों की टीम, और प्रेजेंटर या ये सभी?

सेक्रेड गेम्स को चहुं ओर से हर संभव प्रशंसा प्राप्त हुई है सो पुनः गुणगान करने का कोई औचित्य नहीं| इसमें जो अच्छा है वह सफलता और प्रशंसा पा ही चुका है| इसकी कमजोर कड़ियों को भी प्रकाश में आना चाहिए|

*                   *                  *               *                  *                  *                     *                       *                       *

[डिस्क्लेमर : जिन्होने नेटफ्लिक्स की वैब सीरीज़ – ‘सेक्रेड गेम्स’ के दोनों सीज़न या दूसरा सीज़न नहीं देखे हैं और वे देखने से पहले फ़िल्म/सीरीज़ के विवरण नहीं जानना चाहते वे आगे पढ़ने से अपने को रोक सकते हैं, हालांकि सीरीज़ का प्रदर्शन इस तरीके का है कि अगर स्क्रिप्ट का अंतिम स्वरूप भी दर्शक को सीरीज़ देखने से पूर्व पढ़ने को दे दिया जाये तब भी उसे ऐसा नहीं लगेगा कि देखने में वह कुछ खो रहा है|]

*                *                  *                     *                           *                             *                         *                *

आतंकवादी और पुलिस इंस्पेक्टर मौसेरे भाई :-

यहाँ चोर चोर मौसेरे भाई वाली कहावत तो सिद्ध नहीं होती पर भारत विभाजन के वक्त बिछड़ी दो सगी बहनों की संतानों के मध्य एक ऐसा कोण अवश्य ही बनता था जिससे परिचित होने पर आमने सामने खड़े दोनों मौसेरे भाइयों के तनाव श्रंखला के दूसरे सीज़न को वांछित रोचकता प्रदान कर सकते थे| पर ये नहीं हुआ क्योंकि ऐसा किया नहीं गया|

पाकिस्तानी आतंकवादी शाहिद खान और भारतीय पुलिस अधिकारी सरताज सिंह मौसेरे भाई हैं| सरताज की अपहृत मौसी, नवनीत, से जबरन विवाह या उसके बलात्कार  से उत्पन्न संतान शाहिद खान है, जो भारत के प्रति नफरत के कारण अंततः एक आतंकवादी बन कर भारत को परमाणु बम के हमले से नेस्तानाबूद करना चाहता है| शाहिद को नहीं पता कि भारत में कहीं उसकी माँ का परिवार रहता है और सरताज उसकी मौसी प्रभजोत का बेटा है| भारत में मुंबई पुलिस में इंस्पेक्टर सरताज सिंह को इल्म नहीं है कि जिस आतंकवादी के आण्विक हमले से उसे मुंबई और अंततः भारत को बचाना है, वह उसकी मौसी, नवनीत का ही बेटा है|  सरताज, दूसरे सीज़न के अंत में माँ की गाली देकर शाहिद को मार देता है| अगर श्रंखला यह दर्शाती कि किसी मोड़ पर सरताज और शाहिद को एक दूसरे से अपने नाते के बारे में पता चलता है तो रिश्ते के तनाव का यह कितना जबरदस्त स्पेस होता!

पर श्रंखला सरताज और शाहिद के इस रिश्ते के बारे में बस एक हल्का सा इशारा करके रह जाती है| दर्शकों का बड़ा वर्ग इस इशारे को नज़रअंदाज़ कर गया हो तो आश्चर्य की बात नहीं| आम दर्शक की बात ही क्या, श्रंखला में विस्तार से अपने टारगेट का अध्ययन करने वाली रॉ की अति चतुर महिला अधिकारी के॰ डी॰ यादव, जो शाहिद खान के बारे में दस साल से ज्यादा समय से जांच कर रही है और जिसके पास शाहिद खान से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी है, यह उसे भी नहीं पता कि शाहिद की माँ का परिवार भारत में ही है| यह रोचक है कि श्रंखला में यादव, गायतोंडे से कहती है कि पहले शाहिद खान बंबई/मुंबई में रहता था और सुलेमान ईसा भी परुलकर को फोन पर ऐसा ही कुछ कहता है| शाहिद खान का सरताज से संबंध और उसका भूतकाल में भारत में  रहना सेक्रेड गेम्स श्रंखला का एक बहुत रोचक खंड था पर श्रंखला इसे विस्तार से तो क्या बिलकुल भी नहीं खंगालती | अभी तो श्रंखला के लेखकों एवं निर्देशकों को संदेह का लाभ मिलेगा कि हो सकता है श्रंखला के तीसरे सीजन में इसे विस्तार दिया जाए|

भूतकाल और वर्तमान का मिश्रण :-

श्रंखला का बहुत सा रहस्य इस बात में छिपा है कि सब घटनाओं को भूत और वर्तमान के घालमेल में दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है| और एक सीज़न के आठों हिस्सों की लंबाई, चरित्रों की संख्या एवं घटनाएं इतनी ज्यादा हैं कि दर्शक पहले दिखाई सारी बातों को याद नहीं रख सकता| संपादन इस तरह से किया गया है कि भूत कब वर्तमान से परिवर्तित हो जाता है दर्शक को पता लगने में समय लग जाता है| या तो देवकीनंदन खत्री की बेमिसाल भूतनाथ एवं चंद्रकांता श्रंखला जैसी रचना हो जिसमें बहुत से चरित्र एवं घटनाएँ हैं परंतु वहाँ सामग्री में गुणवत्ता है केवल पाठक के समक्ष प्रस्तुतीकरण में चालाकी बरत कर  उससे दो कदम आगे रहने का प्रयास नहीं किया गया है| वहाँ तर्क में पुस्तकें कहीं भी पाठक के समक्ष कमजोर नहीं पड़तीं|

पर यहाँ इस नेटफ्लिक्स श्रंखला में तर्क थोड़ा पीछे रह जाता है और संयोग के बलबूते कथा आगे बढ़ती है| यहाँ कथा में रहस्य उतना है नहीं जितना भूत वर्तमान के लगातार चलते मिश्रित प्रस्तुतीकरण के द्वारा जन्माने का प्रयत्न किया गया है| ऐसा नहीं कि भूत और वर्तमान के बीच छीना झपटी के बिना कथा के एक रेखीय प्रस्तुतीकरण में श्रंखला कमजोर पड़ जाती, बस दर्शक को हर दृश्य में तब बिना मतलब भ्रमित न होना पड़ता|  श्रंखला के पहले सीज़न में जो रहस्य जन्माए और जमाये गए, उनको दूसरे सीज़न में दर्शक के सामने खोला गया तो बहुत से मामलों में बात जमी नहीं|

श्रंखला में उपस्थित लोचे

  • नेरेटर

या तो निर्देशक के दृष्टिकोण के सहारे प्रस्तुतीकरण हो तब तो कहीं कुछ भी खलता नहीं| पर जब किसी एक चरित्र के माध्यम से कथा आगे बढ़ाई जा रही हो तो बार बार निर्देशक के दृष्टिकोण का प्रवेश एक ऐसा घालमेल जन्मा देता है जहां दर्शक का भ्रमित होना उसकी विवशता बन जाती है|

गणेश गायतोंडे, सरताज को अपने पूरी कहानी सुनाये बिना ही स्वयं को गोली मार  कर आत्महत्या कर लेता है, तो जितना उसने सरताज को सुना दिया उतने में उसका  वॉइस ओवर सहज लगता है पर जो उसने नहीं सुनाया उस कथा को उसकी आवाज में प्रस्तुत करना तार्किक नहीं लगता| निर्देशक के दृष्टिकोण से ही घटनाओं को दिखाना है तो एक चरित्र के वॉइस ओवर से कथा का प्रस्तुतीकरण अतार्किक लगने लगता है| जब चाहे श्रंखला गायतोंडे के नेरेशन से बढ़ती चलती है और जब चाहे निर्देशकों के दृष्टिकोण से| कथा दर्शन का यह घालमेल भ्रमित करता है|

  • कालखंड और चरित्रों की भूलभुलैया

विभाजन के वक्त शाहिद की माँ 15 से 16 या 17 साल की लड़की रही होगी, जिसका पाकिस्तानी मुस्लिम अपहरण करके ले जाते हैं  (जैसा श्रंखला के सीजन टू में फ्लैश बैक में दिखाया गया)| साल 2017 (जो श्रंखला का वर्तमान साल है) में शाहिद की माँ हर हालत में 85 साल से ज्यादा की वृद्धा होनी चाहिए  और शाहिद को सन 2017 में 65 के आसपास का नहीं तो हर हाल में साठ साल से ज्यादा आयु का व्यक्ति होना ही चाहिए|  क्या श्रंखला शाहिद खान (रणवीर शौरी अभिनीत चरित्र) को इस आयु वर्ग का दिखाती है?

अब सरताज की माँ का परिवार देखें,  विभाजन के वक्त सरताज की माँ लगभग 7, 8 या 9 साल की कन्या रही होगी अतः  साल 2017 में सरताज की माँ को 77 साल या ज्यादा की वृद्धा होना ही चाहिए| 1990 में सरताज अपने पिता दिलबाग सिंह के बटुए से दस रुपए का नोट निकाल कर गुस्से में जला देता है, क्योंकि दिलबाग सिंह ने अमृतसर जाकर स्वर्ण मंदिर जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया था| रद्द होने से कई दिन रोने वाला और गुस्से में दस रुपए का नोट जलाने वाला दस साल से बड़ा बच्चा तो नहीं ही होगा| उस लिहाज से सरताज को सन 1980 में जन्मा मानकर सन 2017 में सरताज की उम्र 37 साल होगी| सन 1980 में सरताज की माँ की उम्र 40 साल ठहरती है|

सन 1980 में सरताज के पिता दिलबाग सिंह को भी 40 साल (सरताज की माँ के बराबर तो आयु होगी ही) का माना जाये तो उसे 1998-99 के आसपास रिटायर हो जाना चाहिए| जब गायतोंडे विदेश से दिलबाग सिंह को फोन किया करता है तब सरताज 14-15 साल का लड़का दिखाया गया है, अर्थात यह 1994-95 की बात होनी चाहिए, जब यादव, गायतोंडे को केन्या में स्थापित कर देती है|

डीसीपी परुलकर आई॰ पी॰ एस॰ तो है नहीं, सब इंस्पेक्टर के रैंक से भर्ती होकर प्रमोशन पाते-पाते डीसीपी हुआ होगा| पर 2017 में परुलकर नौकरी में डीसीपी रैंक पर बादस्तूर विराजमान है|

सारांश यह है कि श्रंखला में बीच बीच में जो काल खंड दर्शक को दिखाये/बताए गए हैं वे श्रंखला के चरित्रों की उम्र से मेल नहीं खाते और उस लिहाज से उन चरित्रों  के प्रस्तुतीकरण (अभिनेताओं के अभिनय पर नहीं क्योंकि उन्होने बड़े शानदार तरीके से अपने अपने चरित्र निभाए!)  पर बात जाती है| बाल की खाल निकालने वाली बात है पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर श्रंखला प्रदर्शित हुयी है सो उसके लिए निवेश भी उतना ही ज्यादा रहा होगा अतः गहराई में कालखण्डों और चरित्रों में संतुलन बनाया ही जा सकता है|

कालखण्डों की रोशनी में श्रंखला द्वारा प्रस्तुत घटनाओं को देखते हैं|

गायतोंडे का पहला केस कैलाशपाड़ा पुलिस स्टेशन, 28 March 1984,  IPC 435,

[IPC 435: Mischief by destroying or moving, etc., a land- mark fixed by public authority Mischief by fire or explosive substance with intent to cause damage to amount of one hundred or (in case of agricultural produce) ten rupees.]

कचरे के मुस्लिम ठेकेदार से पिटाई के बाद गायतोंडे पर यह केस रजिस्टर्ड हुआ है| झूठे मुकदमें में IPC 435 के तहत क्यों रिपोर्ट दर्ज कराई गई होगी?

जब गायतोंडे केन्या से (1994) दिलबाग सिंह को फोन करता है तो सरताज 14-15 साल का लड़का है, जिसे क्रिकेट खेलने का शौक है| लेकिन बाद में सरताज के पूछने पर कि दिलबाग सिंह ने आश्रम कब ज्वाइन किया, उसकी माँ बताती है कि दिलबाग सिंह ने आश्रम तब ज्वाइन किया जब सरताज नौकरी की अपनी पहली पोस्टिंग पर नानदेड में ड्यूटी पर था| और सरताज, पिता दिलबाग सिंह द्वारा 1993 के गुरुजी के नासिक कैंप से उसकी माँ को भेजे गए पत्र को खोलता है| ये सब बातें एक साथ तो घटित हो नहीं सकतीं!

2003 में यादव, गायतोंडे को दुबई में शाहिद खान को मारने भेजती है| गणेश ईसा के यहाँ दास्तानगोई सुनने आए शाहिद खान की कार को क्यों उसके बैठने से पहले ही ब्लास्ट करके शाहिद को ज़िंदा छोड़ देता है? जैसे वह शाहिद खान को न मारकर के॰ डी॰ यादव के चंगुल से निकालने की बात सोचता है ऐसा तो वह शाहिद खान को मारकर भी आसानी से कर सकता था बल्कि तब तो यादव उस पर मेहरबान भी रहती कि उसने उसका उस समय का सबसे बड़ा काम निबटा दिया| शाहिद को छोडने का गणेश का तर्क लचर है| इसकी कोई तुक नहीं बैठती या लेखन, निर्देशन या प्रस्तोता तुक बिठाने में विफल रहे|

2005, क्रोएशिया, – गुरु जी गणेश गायतोंडे को सबको सतयुग में ले जाने के अभियान का सेनापति नियुक्त करता है|

2008, क्रोएशिया, – मुंबई पर 26/11 के हमले के बाद गुरुजी, मुंबई पर परमाणु हमले के अपने शैतानी प्रोजेक्ट का खुलासा सबके सामने करता है| वह कहता है – नो वॉर ऑफ नेशन ऑर रिलीजन बट वॉर ऑफ सिविलाइजेशन! इसका अर्थ क्या है?

दिलबाग सिंह की आश्रम में हत्या हो जाती है पर न तो सरताज और न ही उसकी माँ ऐसा कोई संकेत देते हैं कि वे दिलबाग सिंह की अचानक मौत के बारे में क्या सोचते हैं? दिलबाग सिंह की आश्रम में हत्या 2008 से 2016 के बीच कब हुयी श्रंखला इसे सही से दर्शाने की चेष्टा नहीं करती|

गायतोंडे के कथावाचन में 2016 में गुरुजी अपनी किताब – कालग्रंथ पर काम कर रहा था| सरताज जब आश्रम की वेबसाइट देखता है तो उसमें गुरुजी का जन्म 1958 में और मृत्यु 2015 में  दर्शाई गई है| गणेश के अनुसार गुरुजी ने अपनी मृत्यु की झूठी खबर फैला दी सो उस झूठी खबर का साल गुरुजी की मृत्यु का साल होना चाहिए| श्रंखला को गुरुजी की वेबसाइट पर उसकी मृत्यु का साल 2016 रखना था क्योंकि दुनिया के सामने उसने मरने का ढोंग इसी साल रचा|

जब गणेश गायतोंडे के जन्मदिवस समारोह में मिथुन का डूप्लीकेट डांस कर रहा होता है बिपिन भोंसले पहली बार गणेश से मिलता है, परुलकर भी वहाँ (शायद ड्यूटी पर) है, पर त्रिवेदी का प्रवेश श्रंखला में अभी तक नहीं हुआ है पर नेरेटर गणेश कहता है कि उसे पता होता कि भोंसले, परुलकर और त्रिवेदी की तिकड़ी उसके जीवन के साथ क्या खेल खेलने वाली है तो तीनों को उसी दिन वहीं मार देता! भोंसले, त्रिवेदी को गणेश से मिलवाने बाद में लाता है, जहां गणेश तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर जैसी बचकानी पहेली से त्रिवेदी का उपहास उड़ाकर अपमान करता है|

गायतोंडे अपने जीवन पर बनी फिल्म के प्रीमियर पर 2003 में मुंबई पहुंचता है| जब परुलकर उसे सड़क पर पकड़ लेता है| और यादव उसे पारुलकर से बचाती है| गायतोंडे 1999 में क्रोएशिया में गुरुजी से सक्रिय रूप से जुड़ गया था पर 4 साल तक यादव जैसी खुर्राट रॉ अधिकारी को गायतोंडे और गुरुजी के संबंध के बारे में कोई खास जिज्ञासा नहीं हुयी? केवल बाद में जब गायतोंडे उसके चंगुल से निकल भागता है वह उन दोनों के नामों के बीच लाइन खींचती दिखाई जाती है|

त्रिवेदी / शर्मा स्वयं भी अपने को त्रिवेदी कहकर गणेश से मिलता है और उसे पहली बार गणेश से मिलवाते हुये भौंसले भी उसका परिचय त्रिवेदी कहकर ही देता है| गुरुजी भी उसे शुरू से ही त्रिवेदी नाम से ही संबोधित करता है| श्रंखला के पहले भाग में अंजली माथुर जरूर अपने किसी सहयोगी द्वारा आइ॰ एफ॰ एस॰ अधिकारियों की सूची से सूचित किए जाने पर बिना जाने उसे त्रिवेदी और शर्मा दोनों एक आदमी कहती है, त्रिवेदी से जुड़ी रॉ अधिकारी यादव तो अवश्य ही जानती होगी कि आई॰ एफ॰ एस॰ अधिकारी त्रिवेदी है या शर्मा है? मुंबई में उसके घर के बाहर नेमप्लेट पर एल॰एन॰ त्रिवेदी गढ़ा हुआ है| सब उसे त्रिवेदी नाम से संबोधित करते हैं| पर अंजली माथुर उसे शर्मा कहती है और वह जब स्वयं जोजो से उसके घर मिलता है तब अपना नाम शर्मा बताता है| गायतोंडे तब भी उसे त्रिवेदी ही कहता है| श्रंखला में यह व्यर्थ का भ्रम जन्माने का प्रयास लगता है|

सरताज गायतोंडे पर बनी फिल्म में पाता है कि गायतोंडे के बाप का नाम त्रिवेदी (सरनेम?) है| अगर ऐसा है तो गणेश, गायतोंडे कैसे बना गणेश त्रिवेदी क्यों न कहलाया? गणेश गायतोंडे की पुलिस फाइल में उसका नाम गणेश एकनाथ गायतोंडे दर्ज है| कालग्रंथ को जब गाँव में वह अपने पिता के पास पोस्ट करता है तो उस लिफाफे पर पते में अपने पिता का नाम एकनाथ गायतोंडे लिखता है| फिर एकनाथ गायतोंडे त्रिवेदी कैसे बन गया? क्या श्रंखला तीसरे सीज़न में इस पर प्रकाश डालेगी या वैसे  ही दर्शकों के दिमाग का दही बनाने के लिए शर्मा अर्थात त्रिवेदी की भांति गायतोंडे अर्थात त्रिवेदी का कोण उपजा दिया गया? फिलहाल तो जितना दिखाया गया है उसमें इन दोनों भ्रमों की कोई तार्किक तुक बैठती नहीं|

जोजो द्वारा गणेश के सामने ऐसा दावा करना – वह बीस साल से ही जानती है कि गणेश को उल्लू बनाया जा रहा है | गुरुजी के चेलों में भोसले जैसा व्यक्ति सब बातें नहीं जानता पर जोजो सब जानती है पर त्रिवेदी को नहीं पहचानती, जबकि वह मैल्कम को जानने का दावा करती है, ये सब बेहद अटपटी कड़ियाँ हैं|  मैल्कम गणेश को पैसों के लिए ढूंढ रहा है पर एक बार भी जोजो के यहाँ नहीं खोजता| जबकि त्रिवेदी जोजो के यहाँ गुरुजी की संस्था का चिह्न दीवार पर देख लेता है और उन दिनों मैल्कम, त्रिवेदी, और बात्या आदि आपस में रोज़ संपर्क में होंगे, उन्हे कालग्रंथ खोजना है और गायतोंडे द्वारा कब्जाया धन प्राप्त करना है जिससे परमाणु बम की सामग्री के लिए भुगतान किया जा सके|

श्रंखला दिखाती है कि रॉ की महिला एजेंट अंजली माथुर अपने पुरुष सहकर्मियों को उससे ज्यादा महत्व दिये जाने से प्रताड़ित महसूस करती है और फील्ड में उसके द्वारा अच्छा काम किए जाने के बावजूद काम उससे लेकर उसके पुरुष सहकर्मी को दे दिया जाता है| लेकिन अंजली माथुर के पिता के काल में पिता की प्रेमिका रॉ अधिकारी के॰डी॰यादव न केवल फील्ड में पूर्ण स्वतन्त्रता से काम करती है बल्कि उसके पिता से बहुत ज्यादा शक्ति रखती है| अर्थात श्रंखला दिखाती है कि पिता के काल में उसी विभाग में स्त्री अधिकारी को ज्यादा स्वतन्त्रता और शक्ति मिली हुयी थी और बेटी के काल में पुरुष सहकर्मियों  को महिला कर्मचारियों के सापेक्ष ज्यादा शक्ति मिलने लगी| वास्तव में तो भारत में कार्यस्थल पर स्त्रियॉं के मामले में पुराने समय की तुलना में हालात बेहतर ही हुये हैं|

(ज़ारी)

…[राकेश]

Sacred Games (2018,2019) : क्या श्रंखला सिख संप्रदाय का अपमान करती है?
Sacred Games (2018,2019) : खोजा परमाणु बम, निकला गुरुजी!

Advertisement