फ़िल्म के अंदर ही सैयामी खेर को पाइप में छिपा धन नहीं मिलता बल्कि यह फ़िल्म उनकी प्रतिभा के प्रस्तुतीकरण के लिए लॉटरी लगने के समान भाग्यशाली प्रतीत होती है| उनकी पहली फ़िल्म मिर्ज़या देख किसने सोचा होगा कि उनकी अगली ही फ़िल्म उनकी अभिनय क्षमता को कायदे से प्रस्तुत कर पाएगी और उनके लिए संभावनाओं के द्वार खोल पाएगी| अनुराग कश्यप, जो अपनी फिल्मों में स्त्री चरित्रों को इस रोचक तरीके से प्रस्तुत करने की क्षमता रखते हैं कि उन्हे निभाने वाली अभिनेत्रियाँ अपने को धन्य समझें कि उन्हे अनुराग कश्यप की फ़िल्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका मिली, इस फ़िल्म में मुख्य स्त्री चरित्र को उसकी हदों में प्रस्तुत कर पाये हैं और इसे निभाने वाली अभिनेत्री सैयामी चरित्र की संभावित सीमा से एक क्षण को भी बाहर निकाल कर अभिनय नहीं करतीं| यह एक कमजोर और बॉक्स ऑफिस पर धराशायी हिन्दी फ़िल्म, एक ज्यादा दर्शकों तक न पहुँच पाने वाली मराठी फ़िल्म, और टीवी पर थोड़ा बहुत काम करने वाली एक तरह से नई अभिनेत्री के लिए गौरव अनुभव करने वाली बात है|

क्लोज अप शॉट्स में भी उनकी बोलती आँखें और चेहरे के संतुलित हाव भाव कम से कम इस फ़िल्म में ऐसी आशा तो जगाते ही हैं  कि अगर वे सचेत रहीं, अपने क्राफ्ट के विकास के प्रति निरंतर जाग्रत रहीं तो स्मिता पाटील की कमी से उत्पन्न स्थान पर वे स्वयं को ले जाकर एक अभिनेत्री के तौर पर अपनी प्रगति गढ़ सकती हैं|

अनुराग कश्यप की यह लगभग तीसरी-चौथी फ़िल्म है जो इस बात की गवाही देती है कि स्त्री-पुरुष, विशेषकर पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका के मध्य सम्बन्धों की डायनामिक्स दर्शाने में वे अद्भुत हैं| विशाल भारद्वाज और सुधीर मिश्रा के साथ वे ही हैं जो इस पहलू को बेहद गहराई से परदे पर उतार पाते हैं| केवल हिन्दी फिल्मों की बात करें तो उनमें और विशाल भारद्वाज में एक हिन्दी मास्टरपीस वैश्विक सिनेमा को देने की क्षमता है| चोक्ड फ़िल्म के सबसे अच्छे दृश्य वही हैं जहां कामकाजी पत्नी (सैयामी खेर) और संघर्षरत कलाकार – अतः बेरोजगार, पति (रोशन मैथ्यू) के मध्य दैनिक स्तर के जीवन में हर उस पल उठने वाले द्वंद दर्शाये गए हैं जब वे साथ होते हैं| उनके द्वंद को फ़िल्म बेहद गहराई से दर्शाती है| कहानी के स्तर पर हो या सिनेमाई प्रदर्शन के स्तर पर हो, इस फ़िल्म का टेक अवे पति-पत्नी के मध्य के द्वंदात्मक हिस्से ही हैं|

बाकी नायिका के गायन में घटित दुर्घटना, जो फ़िल्म का शीर्षक निर्धारित करने के पीछे के दो कारणों में से एक है, एवं नोटबंदी और उससे जुड़े हिस्सों का वह उच्च स्तर नहीं है जो उपरोक्त भागों का है, बल्कि नोटबंदी वाले हिस्से अनुराग कश्यप की जैसी साख है उसके सामने और उनकी फिल्मों को उनकी पहली फ़ीचर फ़िल्म- पाँच के जमाने से लगातार देखने वाले लगभग सभी सिने प्रेमी, हल्के स्तर के ही पाएंगे| उन्हे पता है की अनुराग कश्यप की क्षमता इससे बहुत बेहतर करने की है, इस नाते उनसे अपेक्षाएँ भी बहुत ज्यादा और बड़ी होती हैं|

नोटबंदी ने भारत में बहुत से लोगों के लिए अभूतपूर्व स्थितियाँ रच दी थीं| ऐसे लाखों भारतीय होंगे जो नोटबंदी की घोषणा की अगली सुबह अपनी यात्राओं के मध्य में ही थे और उन्हे कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ा होगा इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है| अनायास ऐसी जटिल परिस्थिति से दो चार होने वाले लोग कठिनाई के उस वक्त में देश की अर्थव्यवस्था के बारे में नहीं सोचते, बल्कि जीने की अपनी संभावना से जूझते हैं| फ़िल्म नोटबंदी पर बहुत से लोगों द्वारा धारण की गई सनकी विचारधारा पर व्यंग्य करती हुयी उसे दर्शा देती है| घर के पाइप में नोटबंदी के कारण प्रतिबंधित नोटों के बंडल लगातार पाती नायिका, जो बैंक में काम करती है, के विचार गूंगे के गुड जैसी प्रसन्नता से भरे हैं| वह अपने पति तक से इस बात को साझा नहीं कर सकती, बस आर्थिक परेशानियों से घिरे अपने जीवन में अचानक मिले इस धन से प्राप्त ज्यादा खर्च कर सकने की क्षमता से संतोष और प्रसन्नता पाती रहती है और बैंक में पुराने नोटों के बदले नए नोट लेते हुये पकड़ी न जाये इस आशंका से ग्रस्त भी रहती है| उसका पति उन सनकी विचारों से प्रसन्नता पाता है, जो देश के बहुत से लोगों ने नोटबंदी के समय पाले, कि नोटबंदी ने काले धन के स्वामियों को बैंक की कतारों में ला खड़ा किया| स्वयं की परेशानी को भूल बहुत से लोग इस सेडिस्टिक प्लेजर से प्रसन्न थे कि नोटबंदी ने काले धन के कारण समाज में समर्थ बने लोगों पर नकेल कस दी| वे इस बात से भी अनभिज्ञ रहे कि 500 और 1000 के पुराने नोट बंद करने और 2000 के नए नोट जारी करने से काले धन की समस्या कैसे सुलझी? फ़िल्म नोटबंदी में परपीड़ा में सुख लेने वाले लोगों की बात को रोचक ढंग से दर्शा देती है| नायक-नायिका के कई पड़ोसी पाइप में छिपाए गए पुराने नोटों के कारण लाभान्वित होते हैं और उन पुराने नोटों को नए करेंसी नोटों से बदलने के लिए वे नायिका के भरोसे ही रहते हैं|

लेकिन फ़िल्म नोटबंदी के पहलुओं पर कोई ज्यादा गहरी खोजबीन नहीं करती| इसलिए फ़िल्म के अंत में दर्शक भ्रमित हो जाता है कि फ़िल्म किस बारे में थी? नायिका के एक कार्यक्रम में स्टेज पर गा न सकने से उत्पन्न शॉक के ऊपर, घर में,  ड्रेन के पाइप का धन छिपाने के कारण चोक होने के ऊपर, नोटबंदी के ऊपर, या नेताओं द्वारा जमा काले धन के ऊपर? या बस सभी को सतही स्तर पर छूते चले जाना ही फ़िल्म का मकसद था?

फ़िल्म में नोटबन्दी से उत्पन्न समस्या में दो सबसे कमजोर पहलू रहे- बैंक में डकैती और नायिका से पूछताछ करने उसके घर टैक्स अधिकारियों का आना| टैक्स अधिकारियों को नायक बताता है कि उसने नायिका को पुराने नोट दिये और उसे बिल्डिंग के गटर से मिले| क्या उसने अपनी तरफ से टैक्स अधिकारियों को उस काले धन के बारे में सूचित किया कि उसे उनके द्वारा पुरस्कृत किया जाता है?

नायक को नायिका के चरित्र पर शक होता है पर वह कोण सहसा ही छोड़ दिया जाता है|

रोशन मैथ्यू शुरू में बहुत देर तक ऐसे लगते हैं मानो एम के रैना की युवावस्था को देख रहे हैं, फिर धीरे धीरे वे अपनी उपस्थिती दर्शा देते हैं|  फ़िल्म में नायिका की पड़ोसन की भूमिका में अमृता सुभाष ने भी बेहतरीन अभिनय का प्रदर्शन किया है|

एक बात जो फ़िल्म में खटकती है वह है कैमरे द्वारा सैयामी खेर के शारीरिक सौष्ठव को विभिन्न कोणों से पकड़ने की यात्रा पर निकाल जाना, जो अनुराग कश्यप के फ़िल्म निर्माण के दर्शन से उलट है| बहुत साल पहले हिन्दी सिनेमा के तेजी से ढलान पर जाते एक निर्देशक के बारे में उन्होंने कहा या लिखा था कि जब आपका कैमरा नायिका की थाइज़ टटोलने लगे तो आप समाप्त हो रहे हैं| उनकी पहली फ़ीचर फ़िल्म पाँच में ऐसा अवश्य था जब चरित्रों के दृष्टिकोण से हटकर कैमरा सीधे ही नायिका तेजस्वनी कोल्हापुरे के शरीर को दर्शाने लगता है, और इसे उस वक्त अनुभव की कमी से जोड़ कर देखना ही उचित होगा, पर उसके बाद किसी फ़िल्म में स्त्री चरित्रों को शारीरिक तौर पर कैमरे ने स्वतंत्र रूप से नहीं दर्शाया| कैमरे ने वही दिखाया जो परदे पर उपस्थित अन्य चरित्र दृश्यों में देख सकते हैं| ऐसे में इस फ़िल्म में कैमरे और सैयामी के शरीर के मध्य के संबंध के तार चौंकाते हैं कि क्या अनुराग कश्यप ने अपना दर्शन बदल लिया है या यह नेट्फ़्लिक्स जैसे प्लेटफॉर्म पर सेक्रेड गेम्स जैसे कार्यक्रम रचने का सह परिणाम है?

बहरहाल सैयामी खेर के हिन्दी सिनेमा के पटल पर सशक्त अभिनेत्री होने की संभावनाओं को जाग्रत करने और पति-पत्नी के मध्य रिश्तों के सतत उत्तर चढ़ाव और संघर्ष एवं तनाव को दिखाने और नोटबंदी पर कुछ चुटीले दृश्य दिखाने के लिए चोक्ड का योगदान माना जाएगा, पर एक साल बाद अनुराग कश्यप की फिल्मग्राफी में औसत से ऊपर उठा मानकर, उनकी बेहतरीन फिल्मों की सूची में शायद कोई भी न जोड़ पाये|

…[राकेश]

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