Shetty Eyesउपरोक्त शीर्षक का भावार्थ किया जाये तो ” खतरनाक गंजा ” एकदम उपयुक्त लगेगा। यह शीर्षक किसी जासूसी (बाल, किशोर या वयस्क) उपन्यास से उठाया गया लगता है। पर ये समझ लेना जरुरी है कि इन गंजे महोदय से खतरनाक कोई और गंजा कभी भी हिन्दी सिनेमा के परदे पर दिखायी नहीं दिया।

नहीं नहीं उनका श्रीलाल शुक्ला जी के द्वारा रचित शिवपालगंज के गंजहों से कोई ताल्लुक नहीं था। उनका सम्बंध तो कर्नाटक से था।

पहले या तो स्कूल के प्रिंसीपल की कुर्सी पर विराजमान महोदयों को गंजे शब्द से सुशोभित किया जाता था या इन महाश्य को। वे हिन्दी सिनेमा के ओरिजनल गंजे थे।

शाकाल के परदे पर जन्म लेने से बरसों पहले से इन महाशय ने हिन्दी फिल्मों के नायको, नायिकाओं या यूँ कहना चाहिये कि अच्छे चरित्रों का जीना हराम करना शुरु कर दिया था।

ये कहना कतई अतिशयोक्ति न कह लायेगा कि साठ और सत्तर के दशकों में वे एक ऐसे फाइट मास्टर और अभिनेता या आजकल की भाषा में कहें तो वे आवश्यक आइटम देने वाले ऐसे कलाकार बन गये थे जैसे कि हेलन। तो हिन्दी सिनेमा में एक विलक्षण योगदान देने वाले कलाकार को याद करना और उन पर लिखना लाजिमी बन जाता है। साठ और सत्तर के दशक की हिंदी फिल्मों के रसिकजन तो ऊपर दी गई छवि से ही समझ गये होंगे कि ये आग्नेय नेत्र किस अभिनेता के हैं| बाकी को भी उपरोक्त विवरण से गंगोत्री से निकले पानी की तरह यह साफ हो गया होगा कि जिक्र यहाँ शेट्टी जी का हो रहा है।

एक बाल पत्रिका हुआ करती थी पराग, जो टाइम्स ऑफ इंडिया समूह द्वारा प्रकाशित की जाती थी। पत्रिका हरेक अंक में किसी न किसी मेहमान लेखक द्वारा लिखा हुआ लेख छापा करती थी और कितने ही सितारे उस कॉलम द्वारा बाल पाठकों से सीधे मुखातिब होते थे। जाहिर है कि बहुत सारे बच्चे उनके पहले से ही फैन हुआ करते थे और कुछ लेख पढ़ कर बन जाया करते थे।

ऐसे ही एक लेख की चर्चा यहाँ करना अनर्गल न होगा। कहना चाहिये कि एक प्रसंग का जिक्र यहाँ किया जा सकता है।

छोटी उम्र के दो बच्चे स्कूल से रोते हुये घर आते हैं। उनके माता पिता उनसे उनके रोने का सबब पूछते हैं। बड़ा लड़का कहता है कि स्कूल में सब हमें चिड़ाते हैं कि हमारे पिता फिल्मों में सबसे मार खाते हैं और अभी हाल ही में देखी धर्मेन्द्र की फिल्म में तो धर्मेन्द्र ने जम कर हमारे पिता की पिटाई की है।

पिता उन्हे वास्तविकता का बोध कराते हैं और समझाते हैं।

पर उससे पहले ह्रषिकेश मुखर्जी की फिल्म गुड्डी को याद कर लें। इस फिल्म में ह्रषिदा ने एक दृष्य़ रखा था जहाँ प्राण साब, उत्पल दत्त और जया भादुड़ी आदि, जो कि सेट पर शूटिंग देखने पहुँचे हैं, से कहते हैं कि धर्मेन्द्र से तो फिर भी पिटने में मज़ा आता है पर उन्हे तो ऐसे ऐसे नायकों से पिटना पड़ता है जिन्हे वे फूँक भी मारें तो वे उड़ जायें। ये मान लेने और समझ लेने में कोई बुराई दिखायी नहीं देती कि प्राण साब वाला दृष्य हमारे गंजे सुपर स्टार फाइट मास्टर अभिनेता के जीवन से ही प्रेरित होकर रचा गया था।

वास्तव में उनकी चिकनी और चाँद जैसी चमकती हुयी खोपड़ी के नीचे गुस्से से भरी लाल लाल आँखें किसी की भी पतलून गीली कर देने के लिये काफी हुआ करती थीं। पर वाह रे विधाता और हिन्दी फिल्म वालों के खेल कि ऐसे कद्दावर व्यक्तित्व वाले मालिक को जाने कैसे कैसे शरीर वाले नायकों का पात्र निभाने वाले कलाकारों से परदे पर मार खानी पड़ती थी। पापी पेट का सवाल जो हरेक के सामने मुँह बाये खड़ा रहता है। उन्होने ही पराग पत्रिका के लेख में अपने बच्चों के साथ ऊपर बतायी गयी घटी घटना और बाद में घर पर उनके साथ किये गये वार्तालाप का जिक्र किया था।

तो यही बात शेट्टी जी ने अपने दोनों पुत्रों को समझायी थी कि इसी पिटने की वजह से जीवनयापन का प्रबंध होता है वरना अगर वे किसी के एक हाथ भी जड़ दें तो वह सीधा अस्पताल पहुंच जाये और फिर यह सब नकली होता है। हो सकता है के वे अपने दोनों पुत्रों को शूटिंग दिखाने भी ले गये हों इस प्रसंग के बाद। आज तो शेट्टी जी जीवित नहीं हैं और उनके पुत्र रोहित और ह्र्दय शेट्टी फिल्मों में स्थापित हो चुके हैं।

पुरानी फिल्मों के दौर में कुछ कलाकार ऐसे हुये हैं जिन्हे उनके नाम से नहीं वरन उपनाम या सरनेम ( जातिसूचक नाम) से जाना जाता था और इनमें तिवारी, गुप्ता, शेट्टी और शुक्ळा आदि प्रमुख थे।

शेट्टी भी गंजा शेट्टी, टकला शेट्टी या सिर्फ गंजा और टकला जैसे नामों से भी जाने और पहचाने जाते थे। याद नहीं पड़ता कि किसी फिल्म में और पात्रों की तरह उन्हे भी कोई नाम दिया गया होगा और जहाँ तक याद पड़ता है परदे पर ज्यादातर उन्हे गंजे या टकले कह कर ही सम्बोधित किया जाता था और इसी बात का असर था कि लोग वास्तविक जीवन में भी उन्हे इसी नाम से ही याद करने लगे थे और ऐसा नहीं कि ऐसा उन्हे नीचा दिखाने के लिये कहा जाता था वरन उनका गंजापन उनका ट्रेडमार्क बन गया था और बच्चे उन्हे पिटता देखकर खुश होते थे।

यूँ तो हमारे गंजे शेट्टी महोदय ने परदे पर अच्छे अच्छों को पानी पिला पिला कर सताया पर धर्मेन्द्र के साथ उनकी जोड़ी हमेशा अच्छी जमी हुयी दही की तरह जमी। बल्कि कहना चाहिये कि धरम जी की हीमैन की छवि को स्थापित करने में हमारे गंजे महोदय का भी काफी हद तक योगदान रहा है।

Dharam-Shettyजब जब वे परदे पर एक साथ आये दर्शकों के आनन्द प्राप्ति का स्तर बढ़ा कर ही गये। धर्मेन्द्र अगर फिल्म के नायक हैं और हीमैन की अपनी छवि को पूरा सम्मान उस फिल्म में दे रहे हैं तो ऐसा लगभग तय था कि किसे न किसी दृष्य में गंजे महोदय टपक पड़ेंगें और जबर्दस्त हाथापाई शुरु हो जायेगी। गंजे महोदय एकदम अवतरित हो जाते थे और अपने विशाल नेत्रों से गुस्से की ज्वाला बरसाने लगते थे और धर्मेन्द्र को काफी परेशान करते थे। अंत में तो धरम जी को ही जीतना होता था।

शेट्टी केवल लड़ते समय ही अपनी अभिनय क्षमता का उपयोग करते थे और उन्हे भिन्न-भिन्न मुख मुद्राओं के साथ लड़ते देखा जा सकता था। बिरला ही किसी फिल्म में उन्हे हँसते हुये पाया गया होगा हाँ अगर वे किसी दृष्य में नायक या नायिका या किसी अच्छे चरित्र का मजाक उड़ाने के लिये उस पर हँस रहे हैं तो बात अलग है।

Shetty laughingयहाँ इस फोटो में हम उन्हे हँसता हुये देख सकते हैं और सिनेमा के परदे पर खूँखार नजर आने वाले विलेन की भी हँसी में एक सरलता थी।

दुख की बात यह है कि हिन्दी सिनेमा में डाक्यूमेंटेशन की परम्परा नहीं रही है और कलाकारों के योगदान को सहेजा नहीं गया है। कितने ही ऐसे लोग रहे हैं जिन्होने हिन्दी सिनेमा के विकास में अमुल्य योगदान दिया है परन्तु आज उन्हे और उनके योगदान को लोग जानते भी नहीं, उन्हे याद करना तो दूर की बात है। बहुत कोई उछलकूद मचायेगा और पुरानी फिल्मों में जब परदे पर कलाकारों के नाम आते समय ध्यान देगा तो कभी कभी एम बी शेट्टी पढ़ने को मिलेगा वरना तो उनका पूरा नाम जानना भी दूभर हो जाये।

यू ट्यूब आदि पर शेट्टी जी के नाम से तो क्लिप मिलने से रही परन्तु त्रिशूल फिल्म मे उनकी अमिताभ बच्चन के साथ लड़ाई वाले दृष्य में उनकी कलाकारी देखी और सराही जा सकती है।

एक फाइट मास्टर के तौर पर उन्होने कितनी ही फिल्मों में एक से बढ़ कर हैरत अंगेज लड़ाई के दृष्यों की रचना की और दर्शकों को रोमांचित किया।

भले ही कई फिल्मों में वे एक ही दृश्य में नज़र आए हों पर जिसने एक बार भी उनके दर्शन सिनेमा के परदे पर कर लिए उसके लिए उन्हें भूल पाना कठिन है|

…[राकेश]