murli mere shyam kiबांसुरी का तन बिल्कुल सीधा है,
मन में बड़े बल हैं,
कितनी बल खाती भावनाओं का कितनी तरह उच्चारण करती है,
गीता के बोल तो बाद में सुने लोगों ने,
पहले बांसुरी ने ही श्याम के अधरों से लग के उसकी सांसे सुनी,
उसके अंदर बल खाती भावनाओं को छुआ,
और सच है कि महसूस भी किया,
वरना गीता जैसे पवित्र, निर्मल स्वर कैसे जागते बांसुरी में!

ऐसा काव्यमयी गद्य जब गुलज़ार के धीर-गम्भीर लेकिन गर्मजोशी से भरे अंदाज़ में उनकी कुरमुरी आवाज़ में श्रोता के कानों में गूँजता है तो श्रोता को ऐसा ही महसूस होता है कि गुलज़ार कहीं कृष्ण-युग से ही सीधे सीधे आँखों देखा हाल सुना रहे हैं और कृष्ण बस वहीं कहीं उनके आसपास विचरण कर रहे हैं। वहीं कहीं उनकी बांसुरी अपनी सुरीली धुन बिखेर रही है।

सत्तर के दशक के अंत में मीरा बनाते समय गुलज़ार, श्याम के और निकट चले गये होंगे और बहुत कुछ ऐसा मन में रच बस गया होगा जिसने सालों साल साथ नहीं छोड़ा और जब अस्सी के दशक के मध्य में एक अनूठा संगीत एलबम – “मुरली मेरे श्याम की“, आया तो इसके प्रस्तुतीकरण में वे अंदुरनी अहसास रस बनकर उनकी आवाज़ से टपकते महसूस होते हैं।

रघुनाथ सेठ ने बेहद कर्णप्रिय धुनों से इस एलबम के गीतों को सजाया-संवारा। गीतों को स्वर दिये, लक्ष्मी राठौड़, दीपा मोहन, कैलाश श्रीवास्तव और सी.पी मिश्रा ने। और क्या ही लुभावने, मधुर और मनोहर अंदाज़ में इन गायक-गायिकाओं ने गीत गाये!

इस एलबम के गीतों में भक्त्ति भी है, उनकी अनुपस्थिति में सताने वाला दुख भी है, छेड़छाड़ है, हँसी खुशी है तो आँसू भी हैं। कृष्ण भक्क्ति से सम्बंधित होते हुये भी इसमें विभिन्नता लिये हुये गीत हैं। एक बड़े कैनवास को घेरने वाले इस एलबम में ताजगी है।

मुरली मेरे श्याम की” के गीतों के बोल, गीतों की धुन, वाद्य-यंत्रों का संयोजन और गीतों का आकर्षक गायन, सभी तत्व मिलकर इसे श्रेष्ठ भक्ति संगीत एलबमों में ला खड़ा करते हैं।

गीतों के बोल अपने आप में ही अपने अंदर छिपे अर्थ की व्याख्या करते जाते हैं और श्रोता को आनंद की चाशनी में डुबोते चले जाते हैं। सभी गीत शुद्ध हिंदी के शब्दों से सजाये गये हैं और एक गीत “ओ री सौतनिया” में ही एक उर्दू शब्द “खबरिया” का मिश्रण मिलता है।

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श्याम, कान्हा, कृष्ण… कुछ भी कह लो उन्हे, वे जीवन के मनुष्य रुप में जन्मे विराटतम स्वरुप हैं। ऐसा प्रतीत नहीं होता कि मनुष्य रुप में जीवन इससे बड़ा हो सकता है या इससे ऊपर जा सकता है। कृष्ण जीवन का उल्लास हैं, उत्सव हैं। उन्होने सिर्फ सैधान्तिक रुप में ही जीवनदर्शन नहीं उच्चारित किया वरन हरेक बात को खुद जीकर दिखाया। गीता तो एक बहुत छोटी सी कुंजी है उस विशालतम व्यक्तित्व द्वारा दिखायी गयी लीला के दर्शन की।

पुरुष स्वर में गाया गया एलबम का एकल गीत- “बंसी की धुन पे” कान्हा संग गोप-गोपियों और पशु-पक्षी के रास के उत्सव का गुणगान करता है।

बंसी की धुन पे
देखो उतर के धरती पे
आया आकाश
कन्हैया संग राधा रचाये रास

उतरा है चंदा उतरे हैं तारे
यमुना में मुखड़ा देख रहे सारे
यमुना मिटाती है प्यास
कन्हैया संग राधा रचाये रास

जल दर्पण में नाचे चंदनिया
रात बनी है दुल्हनिया
पूरी हुयी है आस
कन्हैया संग राधा रचाये रास

अंगना नाचे कंगना नाचे
सजनी संग सजना भी नाचे
डाल डाल के साथ डोलकर गोप-गोपिया, गय्या नाचे
नाच रहा मधुमास
कन्हैया संग राधा रचाये रास

बात चाहे बाल-गोपाल की हो या सिर पर मोर-मुकुट बांधे, बाँसुरी बजाते वयस्क कृष्ण की, वे हर रुप में मनमोहक हैं। कृष्ण से रुबरु होने के पश्चात उनके प्रति उपजे प्रेम से छुटकारा नहीं है, फिर चाहे वह दीवानगी राधा की हो या मीरा की।

कृष्ण के बंसी बजाने पर भावविभोर भक्तों द्वारा स्तुति है पुरुष स्वर से सजे इस गीत – “बंसी बजाये मोरा प्रीतम प्यारा” में।

बांसुरी, सितार और तार वाले अन्य वाद्य-यंत्रों के साथ ढ़ोलक एवम तबले का मधुर उपयोग सभी गानों में किया गया है पर इस गीत में ढ़पली से निकली धुन का विशिष्ट उपयोग किया गया है।

बंसी बजाये मोरा प्रीतम प्यारा
जनम जनम का मीत हमारा
बंसी बजाये मोरा प्रीतम प्यारा

जाग उठी आँधी भयी रजनी
पट घूँघट उलट गये सजनी
जोग जगाये ऐसा जादू डारा
बंसी बजाये मोरा प्रीतम प्यारा

छूट गयीं सुध-बुध की संखियाँ
चहुँ दिस ढ़ूँढ़े चकोरी मोरी अँखियाँ
झूमे गगन का तारा
बंसी बजाये मोरा प्रीतम प्यारा

गंगा जमुना लहर नभ छू ले
तल से उठे कमल दल फूले
अनहद नाद सुनाये कोई न्यारा
बंसी बजाये मोरा प्रीतम प्यारा

एक अन्य गीत – \”अनंत प्रेम माधुरी बजाओ श्याम बाँसुरी\”, में भी श्याम की बाँसुरी के माध्यम से प्रार्थना प्रस्तुत की गयी है।

अनंत प्रेम माधुरी
बजाओ श्याम बाँसुरी
हरो सभी के दुख हरि
बजाओ श्याम बाँसुरी

तुम्हारे युग चरण कमल
हमारे अश्रु अर्ध्य जल
तुम्हे जो पायें एक पल
जन्म की साध हो सफल
भरो ह्रदय की गागरी
बजाओ श्याम बाँसुरी

तुम्ही धरा तुम्ही गगन
तुम्ही हो जल, अनल, पवन
तुम्ही को ढ़ूँढ़ते नयन
कहाँ छुपे हो प्राण धन
झलक दिखाओ सांवरी
बजाओ श्याम बाँसुरी

जब कृष्ण सरीखा विराट व्यक्तित्व पास में हो, सहज ही सुलभ हो, आसानी से ही जिस तक पहुँच हो तब उस विशाल उपस्थिति से सिर्फ और सिर्ह गहरा प्रेम ही हो सकता है। और यही कृष्ण के साथ हुआ है। गोकुल में हों, वृंदावन में हों, मथुरा में हों या द्वारिका में, उनके चारों तरफ उनके प्रेमियों की भीड़ बढ़ती जाती है। कृष्ण भक्त्ति में लोग उनके जीवन काल में ही नहीं डूबे थे बल्कि हजारों साल बाद आज तक विश्व भर में लोग कृष्ण के दीवाने होते आ रहे हैं।

गीत बन नौ रसमय में भक्त्त नौ रस वाली सुरीली मुरली बन कर कान्हा को नमन करना चाहता है। कृष्ण उसके लिये जीवन हैं, समय हैं, सब कुछ हैं जहाँ तक उसकी कल्पना जाती है। हर जगह, हर वस्तु में कृष्ण ही कृष्ण हैं और इस विराटता के समक्ष उसे समझ नहीं आता कि किन शब्दों में वह कृष्ण को नमन करे। समर्पण को समर्पित यह भावप्रवण स्तुति है और यह श्रोता को भक्त्ति रस में सराबोर करके उसे अंदर तक भीगा जाती है। चारों गायकों ने इसे सम्मिलित रुप से गाया है और यह एक बेहतरीन कोरस बन पड़ा है।

बन नौ रसमय मुरली तुझको,
मुरलीधर तुझे नमन करुँ, नमन करुँ, तुझे नमन करुँ।

जीवन के ये तीन रुप हैं
वृद्ध, बालपन, यौवन
समय की मुरली सभी में गूँजे
भीगे तान में तन-मन
जगते, सोते, अध-सोये भी
हर स्वर तुझको नमन करुँ।

बन नौ रसमय मुरली तुझको,
मुरलीधर तुझे नमन करुँ, नमन करुँ, तुझे नमन करुँ।

जल, थल, नभ, में तेरा स्वर है
तू ही है मेरी पूजा
तू ही मेरी मित्र शत्रु है
कोई इष्ट न दूजा
स्वर समझूँ पर शब्द न सूझें
कैसे तुझको नमन करुँ
बन नौ रसमय मुरली तुझको,
मुरलीधर तुझे नमन करुँ
नमन करुँ तुझे नमन करुँ

कृष्ण जैसे विराट और हर पल प्रेम उत्सर्जित करते अस्तित्व की अनुपस्थिति, पीछे छूट गये लोगों के जीवन में शून्यता ले ही आयेगी। उनके प्रिय की अनुपस्थिति उन्हे उनकी निर्बलता का अहसास कराने लगती है। सारे उनके मन में सारे समय एक ही कामना चीत्कार करने लगती है कि कृष्ण के दीदार फिर से हो जायें।

कृष्ण के साथ होने के अहसास से जहाँ मन प्रफुल्लित होकर किलोल करने लगते हैं वहीं उनसे दूरी के अहसास में आँसू थमते नहीं। ऐसा तो साधारण मनुष्य के जाने से भी हो जाता है और अगर बात कृष्ण जैसे व्यक्तित्व के पास से जाने की हो तो उनके पीछे रह जाने वाले उनके प्रिय जनों की स्थितियों का सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है।

मन में कृष्ण के प्रति भक्तिभाव से भरे लोग उनकी अनुपस्थिति में अपने को निरीह पाते हैं। कृष्ण उनके पास थे, उनके पास होने के कारण उन्हे ऊर्जा मिलती थी आज उनकी अनुपस्थिति का अहसास उन्हे हिला देता है।

\”कहाँ छोड़ी मुरली कहाँ छोड़ी राधा\”, स्त्री स्वर में कोरस गीत है और कृष्ण की विरह वेदना से गोकुल की गोपियों के ह्रदय में उपजा हुआ रुदन है। यह भावप्रणव गीत भावुकता की पराकाष्ठा पर पहुँच जाता है जब यशोदा के कृष्ण के इंतजार में खड़े होने का वर्णन किया गया है। गायिकाओं की बेहद प्रभावशाली आवाज और गायन शैली का भरपूर प्रदर्शन इस गीत में हुआ है।

कहाँ छोड़ी मुरली कहाँ छोड़ी राधा
कहाँ छोड़ा सखियों का साथ रे
अब तो द्वारकाधीश कहाये
शंख चक्र लिये हाथ रे

जमुना का तट छोड़ा
और बंसी बट छोड़ा
तज गये गोकुल गाँव रे
ऐसे निठुर भये कृष्ण कन्हाई
हँस के छुड़ा लिया हाथ रे
अब तो द्वारकाधीश कहाये शंख चक्र लिये हाथ रे
कहाँ छोड़ी मुरली कहाँ छोड़ी राधा

गोकुल गाँव में चमके बिजुरिया
मथुरा में बरसे मेघ रे
बरसा निज पड़े रिमझिम बूंदिया
अब सुध लीजे ब्रज नाम रे
काहे द्वारकाधीश कहाये शंख चक्र लिये हाथ रे
कहाँ छोड़ी मुरली कहाँ छोड़ी राधा

एक बार घर आ जा मुरारी
एक बार मुख देख ले
आओ कन्हैया तेरी मैया खड़ी है
दूध कटोरा लिये हाथ रे
अब तो द्वारकाधीश कहाये शंख चक्र लिये हाथ रे
कहाँ छोड़ी मुरली कहाँ छोड़ी राधा

गुलज़ार सुनाते हैं –

श्याम ने किस प्यार से इसे (बांसुरी को) अधरों से लगाया होगा
कि राधा भी जल उठी

गीत \”ओ री सौतनिया बांसुरी\” में राधा, कान्हा की बांसुरी को सौत कहकर सम्बोधित कर रही है। वह बांसुरी पर आक्षेप कर रही है कि उसने किसी जादू से कान्हा को अपने वश में कर लिया है। वह उसे धमकी भी दे रही है कि किसी दिन वह उसे तोड़ कर कहीं दूर फेंक देगी।

ओ री सौतनिया बांसुरी
कैसी है आदत है तेरी बुरी
मेरे कान्हा पर कर दी है तूने जादूगरी

बहुत सताती तेरी बोली
मन में धधकाती है होली
कैसे मैं तुझको समझाऊँ
चुप हो जाती बन कर भोली
मेरे कान्हा पे कर दी है तूने कुछ जादूगरी
कैसी आदत है तेरी बुरी
ओ री सौतनिया बांसुरी

धीमे अंदाज़ में बहता गीत अचानक गति पकड़ लेता है जब राधा बाँसुरी को धमकी देने लगती है।

मैं तेरे टूकड़े कर दूँगी
जाकर दूर कहीं फेंकूँगी
डगर डगर भटकेंगे नौ दल
उनको नहीं खबरिया दूँगी
पल छीन तू कर साया करती
लेकर रस की गागरी
कैसी आदत है तेरी बुरी
ओ री सौतनिया बांसुरी

“मन की मुरली अधर धरो प्रिये” – पुरुष स्वर में कृष्ण से प्रार्थना है।

मन की मुरली अधर धरो प्रिये
प्राण प्रतीक्षा करें तुम्हारी
आओ अब न विलम्ब करो प्रिये
मन की मुरली अधर धरो

सुख तरंग के रंग रंगीले
मन मानस के मध्य भरो प्रिये
मन की मुरली अधर धरो

अगुन सगुन का भेद मिटा दो
पापों का संताप हरो प्रिये

प्रीत के मेरे सुहाग बनो तुम
विरह वेदना विलग करो तुम
आओ अब न विलम्ब करो प्रिये
प्राण प्रतीक्षा करें तुम्हारी

सब कुछ करने वाले, पर हर जगह खोजने पर भी न दिखने वाले कान्हा की खोज का वर्णन करता है गीत “न जाने कहाँ बंसी बजाये घनश्याम”

न जाने कहाँ, न जाने कहाँ, न जाने कहाँ
न जाने कहाँ बंसी बजाये घनश्याम
नील से ऊंध में नील गगन में
ढ़ूंढ़ू आठों याम
न जाने कहाँ बंसी बजाये घनश्याम

जड़ हुये चेतन ग्रह नभ ठहरे
काम हुआ निष्काम
सिद्ध समाधि गयी संतन की
जपत कृष्ण का नाम
न जाने कहाँ बंसी बजाये घनश्याम

ऐसे स्वर फूँके
के फूँक दिया
रोम रोम मेरे राम
रास रचे उर में अम्बर में
अनुपम अति अभिराम
न जाने कहाँ बंसी बजाये घनश्याम

गुलज़ार राधा को सलाह देते हैं –

राधा अपने तन मन को बाँसुरी कर लो
अपने आप श्याम के निकट पहुँच जाओगी
उसके होठों से जा लगोगी…

और राधा कृष्ण की बांसुरी की प्रकृति पर कसीदे कढ़ रही है गीत \”मुरली अजब तुम्हारी\” में

मुरली अजब तुम्हारी मुरारी
भेद न जानूँ
न सुर पहचानूँ
लाख जतन कर हारी
मुरली अजब तुम्हारी मुरारी

काया कदम्ब
भेनू सी धरती
मन की यमुना न्यारी
चित्त के ग्वाल आत्मा गोपी
तान मोह ने डारी
मुरली अजब तुम्हारी मुरारी

विद्या, माया, भुवन मोहिनी
मोहे सब नर नारी
निगम अगम स्वर सर में गूँजे
ऋतु बनी सुकुमारी

पुरुष स्वर में कृष्ण से गुहार लगाता गीत है – \”मुरली वाले कौन दुनिया में अब हमारा है\”

मुरली वाले कौन दुनिया में
अब हमारा है
मुरली वाले तेरा सहारा है

सारे कष्टों से प्रभुजी बचा लो मुझको
अपने चरणों में प्रभुजी बैठा लो मुझको
टूटे दिल ने तुम्हे पुकारा है
मुरली वाले कौन दुनिया में अब हमारा है
मुरली वाले तेरा सहारा है

मोह के बंधन तोड़ के अब तो
तेरी शरण में प्रभुजी आया हूँ
मीठी मीठी तान सुना दो प्रभुजी
मुरली वाले
मुरली वाले कौन दुनिया में अब हमारा है
मुरली वाले तेरा सहारा है

“सुनो नंद रानी” एक बेहतरीन गीत है। राधा यशोदा से कान्हा की शिकायत करने आयी है। शिकायत करते हुये भी राधा आनंदविभोर है। एक तरह से वह कृष्ण के प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन भी यशोदा के समक्ष कर रही है। इन मिश्रित भावों को गायिका ने बहुत ही गहराई से अपनी गायिकी द्वारा जीवंत कर दिया है।

सुनो नंद रानी सुनो नंद रानी
सुनो मुरली मोहन का उलहना
एक न माने, एक न माने, एक न माने मोरा कहना
सुनो नंद रानी सुनो नंद रानी

अपने सुत को बरजो यशोदा
फोड़ दयी मोरी गागरिया
लाज से मर गयी जमुना किनारे
भीज गयी पचरंगी चुनरिया
कब तक चाल संभालोगी तुम
कब तक पड़ेगा और सहना
सुनो नंद रानी

चाँद चढ़े जब गगन अटारी
बन में बैठ के बीन बजावे
तन की सुध बुध हठ कर छीनी
मन हर रे मरी नींद चुरावे
ऐसा टोना डाले नटखट
हो गया दूभर ब्रज में रहना
सुनो नंद रानी

नैन बसी बनमाल बाँसुरी छवि नंदलाल की प्यारी सी
जीत गया तेरा छैलछबीला
हार गयी मैं ब्रज की नारी
तोड़ गया माया के बंधन
दे गया अपनी प्रीत का गहना
सुनो नंद रानी

स्त्री स्वरों में गाये गये गीत पुरुष स्वरों में गाये गीतों से ज्यादा अच्छे हैं। सुनो नंद रानी, ओ री सौतनियाँ, न जाने कहाँ बंसी बजाये घनश्याम, कहाँ छोड़ी मुरली कहाँ छोड़ी राधा, बन नौ रसमय, और मुरली तुम्हारी अजब मुरारी, इस एलबम के बहुत ही अच्छे गीत हैं। “ओ री सौतनियाँ बांसुरी” और “न जाने कहाँ बंसी बजाये घनश्याम” दोनों ही मधुर गीत अपने प्रभाव में श्रेष्ठतम गीतों जैसे हैं।

मुरली मेरे श्याम की– एलबम, भक्ति एलबमों में एक एवरेस्ट सरीखी ऊँचाई रखता है। यह एलबम अदभुत है, बेहद सुरीला और प्रभावी है।

…[राकेश]

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