सर्वप्रथम तो जिक्र इस फिल्म में हीरे की माफिक अलग से चमकने वाला गीत – रंगरेज़…- का ही होना चाहिए। गीत वडाली भाइयों द्वारा गाया गया है। जो फिल्म ऐसे गीत को अपने साथ चलने के लिये आमंत्रित करे उसमें आकर्षण होगा ही। यह गीत हर लिहाज से बोनस है। लंदन से दिल्ली और दिल्ली से शादी करने के लिये लड़की देखने कानपुर आये हुये एक एन.आर.आई डा. मनु शर्मा (माधवन) के सामने एक गज लम्बा घूँघट डाले हुये एक लड़की-तनु (कंगना रणावत) लाकर बैठा दी जाती है ताकि दोनों बाकी घरवालों से अलग बैठकर आपस में बातें कर सकें। मनु अपना परिचय देता रहता है घूँघट की आड़ में बैठी तनु को और जब बहुत देर तक तनु कुछ नहीं बोलती तो मनु उसे हाथ के स्पर्श से हिलाना चाहता है और इस हौले से स्पर्श से ही मनु पलंग पर ढ़ेर हो जाती है। पलंग पर बेहोश या निद्रा में खोयी हुयी तनु की खूबसूरती मनु का मन मोह लेती है और वह उसकी इस खामोश खूबसूरती को अपने मोबाइल कैमरे में कैद कर लेता है।
वो सो रहे हैं कुछ इस सादगी से मेरे सामने कि दिल चुराने का उन पर गुमां नहीं होता
उसे पता नहीं है कि जिसे वह खामोश सुन्दरता समझ रहा है वह असल में बारुद है। इस बात का पता उसे पता चलता है तनु से अगली बार मिलने पर जब वह उसे जम कर गालियाँ देती है और कोसती है कि
एक सोती हुयी लड़की को पसंद कर लिया, कैसा घोंचू आदमी है!
वोदका गटकने के साथ नींद की कुछ गोलियाँ सटक कर तनु बेहोश पड़ी थी। यह बात खुद मनु ही तनु को बताती है और सिगरेट का धुँआ छोड़ते हुये यह बम भी उसके सर पर फोड़ देती है,
मेरा एक बॉयफ्रेंड है और तुम इस शादी से मना कर दो। जाने कहाँ से आ जाते हैं शादी करने।
फिल्म शुरु से ही लाऊड लगती है। शुरुआत से ही फिल्म का ढ़ाँचा “सोचा न था” की बुनियाद पर खड़ा हुआ लगता है और आगे जाकर इसमें “हासिल” और “जब वी मैट” जैसी कुछ परिस्थितियाँ सामने आती हैं। इन्ही फिल्मों जैसे संवाद भी सुनायी पड़ते हैं पर इन सब समानताओं के बावजूद फिल्म अपनी खुद की पहचान बना कर ही आगे बढ़ती है। लाऊड कॉमेडी के बावजूद फिल्म में रोमांस उभरता है और अच्छे ढ़ंग से उभरता है।
तेरे बगैर किसी चीज की कमी तो नहीं हाँ तेरे बगैर दिल उदास रहता है
तनु को सीधे रास्ते पर चलने वाला जीवन बोरिंग लगता है। उसे ऐसा रास्ता चाहिये जिसका कि उसके माता-पिता और दुनिया वाले विरोध करें। इसी सोच के कारण उसे अपने योग्य वर हर तरह से योग्य युवक मनु में नहीं दिखायी देता और वह दादागिरी के ढ़ंग से जीवन जी रहे ठेकेदार राजा से विवाह करना चाहती है क्योंकि उसके माता-पिता इस विवाह के खिलाफ है और यही नहीं उसे इस बात में भी बोरियत लगती है कि राजा से भी उसकी शादी परम्परागत तरीके से हो। वह विवाह करने में एडवेंचर चाहती है। तनु के धमाचौकड़ी मचाने वाले तौरतरीकों और राजा के दादागिरी वाले तरीकों के मध्य तनु का मनु के प्रति प्रेम बहुत पीछे कहीं उसके अंदर ही छिपा रह जाता है। फिल्म में भी रोमांस खामोश तरीके से विचरता रहता है पर यह मौके-मौके पर अपने वजूद का अहसास कराता रहता है और जब कपूरथला में रजिस्ट्रार के दफ्तर में रजिस्ट्रार द्वारा पैन माँगने पर तनु मनु से पूछती है कि क्या उसके पस पैन है और वह इंकार कर देता है तो बड़े महीन तरीके से प्रवेश करके फिल्म में रोमांस ऊपर सतह पर आ जाता है। अब तक तनु को मनु के प्रेम का आभास होने लगा है। वह आमने सामने पूछना चाहती है मनु से और मनु की हालत कुछ ऐसी है-
कुछ और पूछिये यह हकीकत न पूछिये क्यों आपसे है मुझको मुहब्बत न पूछिये।
सैंकड़ों तरह के उतार-चढ़ाव आते हैं और तनु के सामने यह स्पष्ट है कि मनु उससे प्रेम करता है और वह दो पाटों, राजा और तनु के प्रेम के बीच फँस जाती है। विवाह का समय तय हो गया है और दो बारातें तनु के घर पहुँचती हैं। एक तरफ दुल्हा बना हुआ है, खामोशी से अपने प्रेम के वशीभूत होकर तनु की हर संभव सहायता करने वाला मनु और दूसरी तरह दूल्हा बना खड़ा है राजा, जो तनु को पाने के लिये किसी भी तरीके का उपयोग करने के लिये तैयार है। दादागिरी की हेकड़ी और पिस्तौल आदि रखने से आये दुस्साहस और उसका बरसों का साथ है। दुल्हन तो दिल वाला ही ले जायेगा और ऐसा ही होता भी है पर इस सब उठापठक में दुल्हन के दिल की आज़ादी का मामला भी है। दुल्हन को भी अपनी सहमति देनी है कि वह किस दुल्हे के साथ जायेगी। दीपक डोबरियाल और स्वरा भास्कर ने बहुत अच्छा कार्य किया है और फिल्म को नायक नायिका के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मजबूती दी है। यह कहना वाजिब होगा कि दोनों के अभिनय प्रदर्शन अलग से प्रशंसा पाने के हकदार हैं। सहयोगी भूमिकाओं में जिमी शेरगिल, के.के रैना, राजेंद्र गुप्ता, एजाज़ खान, नवनी परिहार और रवि किशन अच्छा सहयोग दे गये। चुटीले संवाद दृष्यों को वांछित जीवंतता देते हैं। कुल मिलाकर यह अच्छे संगीत से सजी हुयी एक मनोरंजक फिल्म है। पिछली कुछ फिल्मों की तरह यह फिल्म भी शुद्ध भारतीय कथानकों को मुम्बई फिल्म संसार में पुनः स्थापित करने में मुख्य भूमिका का निर्वाह करती है। अगर वर्ष 2010 में बनी कम बजट वाली फिल्मों को ही ध्यान में रखें तो बहुत फिल्में इस साल में बनी थीं जो देशीय कथानकों पर आधारित थीं और जिनमें भारतीय परिवेश में भारतीय किरदार दिखाये गये।
इश्किया, रोड टू संगम से शुरुआत करके यह सिलसिला चला और अतिथि तुम कब जाओगे, थैंक्स माँ, लाहौर, वेल डन अब्बा, सिटी ऑफ गोल्ड, उड़ान, तेरे बिन लादेन, पीपली लाइव, दो दूनी चार, फंस गया रे ओबामा, मिर्च, दायें या बायें, और बैंड बाजा बारात आदि से गुजरता हुआ एक कारवां बन गया।
धोबी घाट, रेड अलर्ट (अनपेक्षित ढंग से सामने आयी और विषय में गहराई तक न जाने जैसी कुछ कमजोरियों के बावजूद अच्छा प्रयास किया इस फिल्म ने) और स्ट्राइकर आदि ने अगले बरस भी सिलसिला बनाए रखा|
हिन्दी भाषी जगहों पर सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लैक्स दोनों तरह के सिनेमाघरों के दर्शकों को लुभाने लायक सामग्री फिल्म-तनु वेड्स मनु, ने प्रस्तुत की|
…[राकेश]
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