यह बात निर्विवाद रुप से सत्य है कि प्रेमी ह्रदय के उदगार, चाहे वे खुशी से भरे हों या ग़म से, उन्हे प्रकट करने में मुकेश को फिल्मों में गायिकी आरम्भ करने के काल से ही महारत हासिल रही। दुखी अवस्था से गुजर रहे प्रेमी नायकों के लिये तो उन्होने एक से बढ़कर एक अविस्मरणीय गीत गाये।
कई बरस बाद जब उन्होने दिलीप कुमार के लिये यहूदी में “ये मेरा दीवानापन” गाया था, जबकि बीच में तलत महमूद, दिलीप कुमार की परदे पर गीत गाने वाली आवाज बन चुके थे, तो इस गीत ने नये कीर्तिमान स्थापित कर दिये थे।
बड़े नामी अभिनेताओं की बड़ी बड़ी फिल्मों में, जहाँ बड़े नामी संगीतकारों ने संगीत रचा, तो उन्होने ऐसे ऐसे गीत गाये ही जिन्होने सफलता और प्रसिद्धि की बुलंदियां छुय़ीं, उन्होने लगभग अंजान रह गयीं फिल्मों में ऐसे संगीतकारों के संगीत निर्देशन में न भुला पाने गीत गाये, जिनके नाम संगीत के बेहद गम्भीर रसिकों के लिये याद रखना भी मुश्किल होगा।
सन 1969 में रविन्द्र दवे ने एक फिल्म निर्देशित की, रोड टू सिक्किम। देव कुमार, हेलन, और जयंत आदि अभिनेताओं ने इसमें भूमिकायें निभाईं थीं। सांगली राजघराने के युवराज विजय सिंहजी, संगीत में इतने उत्सुक हो गये कि संगीत निर्देशक ही बन गये। उन्होने इस फिल्म के लिये संगीत रचा।बरसों बाद उनकी पुत्री भाग्यश्री ने पहले अमोल पालेकर के दूरदर्शन पर प्रसारित धारवाहिक और बाद में राजश्री प्रोडक्शन्स की सूरज बडजात्या द्वारा निर्देशित पहली फिल्म “मैंने प्यार किया” से ख्याति बटोरी|
चार गीत इस फिल्म में हैं|
आंसू नहीं बहाना (गायक- महेंद्र कपूर, गीतकार – इंदीवर)
अपने जलवे लिये (गायक – कृष्ण काले, गीतकार- इंदीवर)
अजी ये दिल धड़का (गायक – आशा भोसले, गीतकार- हसरत जयपुरी)
तुम जहाँ हो वहाँ (गायक – मुकेश, गीतकार – जलाल मलिहाबादी)
यहाँ चर्चा मुकेश द्वारा गाये गीत – जहाँ तुम हो वहाँ क्या ये मौसम नहीं, की हो रही है। इस गीत की खूबसूरती के दर्शन तो इसे सुनकर ही हो सकते हैं। इसे सुनकर ऐसा मानने वाले कम नहीं होंगे जो इसे हिन्दी फिल्मों में आज तक रचे गये सर्वश्रेष्ठ गीतों में स्थान न देंगें।
प्रेमिका से जुदाई के दौरान उसकी बेरुखी से भावविवहल हो चुके प्रेमी के मनोभावों को बेहद खूबसूरती से जलाल मलिहाबादी ने कलमबद्ध किया है। ऐसा ही कहा जा सकता है कि उनके रचे गीत में मिठास और खटास का वही अदभुत मिश्रण है जो मलिहाबाद के प्रसिद्ध आमों में पाया जाता है।
गीत बिल्कुल ऐसा है जैसे प्रेमी चारों ओर से पहाड़ों से घिरे स्थान पर अपने ह्रदय के दुख को कम कर हाअ है गीत द्वारा अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करके। उसका दुख यह भी है कि वह तो प्रेम में तड़प रहा है, बैचेनी से घिरा हुआ है और उधर जिससे उसका प्रेम है, उसे उसकी इन भावनाओं की कद्र नहीं। उसे आश्चर्य है कि जिन भावनाओं से और जिन हालात से वह गुजर रहा है, वह उन सबके रुबरु क्यों नहीं होती। वे सब भावनायें उसे क्यों नहीं विचलित करतीं।
तुम जहाँ हो वहाँ क्या ये मौसम नहीं
क्या नज़ारे वहाँ मुस्कुराते नहीं
क्या वहाँ ये घटायें बरसती नहीं
क्या हम तुम्हे कभी याद आते नहीं
तुम जहाँ हो वहाँ क्या ये मौसम नहीं
घायल प्रेमी शिकायत कर रहा है कि प्रकृति ने चारों तरफ खूबसूरती बिखेरी हुयी है और ये स तत्व उसके अंदर प्रेम की याद को कुरेदते रहते हैं तो क्या दूर वहाँ जहाँ वह रह रही है,
प्रकृति उसके साथ ऐसा कुछ नहीं कर रही?
ये जमाना हमेशा बेदर्द है
दर्दे दिल पे हाथ रखता नहीं
दिल की फितरत एक रहती नहीं
ज़िंदगी भर वफा करता नहीं
फिर भी जैसे भुलाया है तुमने हमें
इस तरह भी किसी को भुलाते नहीं
प्रेमी को इस बात का अहसास है कि कोई भी ज़िंदगी भर के लिये किसी के प्रति बावफा नहीं रह सकता और कभी ऐसे भी दौर आते हैं जब मन उसी से उचट जाता है जिससे सबसे अधिक प्रेम कभी रहा होता है। उसके अंदर इस बात की स्वीकृति भी है कि जमाना तो सामान्यतः निष्ठुर ही होता है पर उसे यह बात नहीं पच पा रही है कि उसे इस तरह से क्यों नज़र अंदाज़ किया गया है, उसे इस तरह से क्यों भुला दिया गया है, जबकि वह आज तक अपने प्रेम को नहीं भुला पाया है।
दर्द है मेरे दिल का मेरे गीत में
गीत गाता हूँ मैं
तुम मुझे साज़ दो
रात खामोश है और तन्हा है दिल
तुम कहाँ हो ज़रा दिल को आवाज दो
जो गुजारे थे हमने मोहब्बत में दिन
क्या वो दिन अब तुम्हे याद आते नहीं
तुम जहाँ हो वहाँ क्या ये मौसम नहीं
क्या नज़ारे वहाँ मुस्कुराते नहीं
प्रेमी खुल कर बयाँ कर रहा है कि उसके गीत में उसका दुख घुला हुआ है और उसके दुखी ह्रदय की चित्कार है इस गीत में। वह आत्मघाती नहीं है, इसलिये अभी भी उसकी कल्पनाओं को आशा है और वह प्रेमिका से गुजारिश कर रहा है, फिर से साथ देने की, फिर से हाथ पकड़ने की, फिर से रिश्ते में विश्वास रखने की।
उसे लगता है कि जैसे प्रेम में गुजारे हुये पल उसे याद आते रहते हैं और उसके मन को मथते रहते हैं अगर वह अपनी प्रेमिका को साथ व्यतीत किये हुये पलों की याद दिलाये तो शायद वह फिर से उसके साथ आ जाये।
मुकेश धीमे स्वर में गाना शुरु करते हैं… “तुम जहाँ हो वहाँ क्या ये मौसम नहीं“… मानों प्रेमी बात को अपने तक ही सीमित रखने के लिये गुनगुना रहा हो और उसकी इस कोशिश का पूरी तरह से साथ देने के लिये धीमे स्वर में ही वाद्य यंत्र भी साथ हो लेते हैं। पर “क्या नज़ारे वहाँ मुस्कुराते नहीं” गाते हुये उनका स्वर तीव्र होता जाता है और साथ ही तेज हो जाती है ध्वनि वाद्य-यंत्रों से निकली धुन की, मानों अब भावनायें उन्हे विवश कर रही हैं कि वे चीख-चीख कर अपने दिल की हालत प्रकृति को सुना दें ताकि उसकी प्रेमिका तक उसकी भावनायें पहुँच सकें।
“फिर भी जैसे भुलाया है तुमने हमें … इस तरह भी किसी को भुलाते नहीं” जैसी पंक्तियाँ गाते हुये मुकेश की आवाज़ इस तथ्य को स्पष्ट करती चलती है कि प्रेमिका से शिकायत भले ही हो पर इस शिकायत में कड़वाहट नहीं है वरन यह शिकायत अभी भी प्रेम की चाशनी में ही डूबी हुयी है। इस शिकायत में दुलार भी सामने उभर कर आता है और समझाना भी।
गीत के अंतिम अंतरे “दर्द है मेरे दिल का मेरे गीत में …” का गायन प्रेमी के घायल ह्र्दय की पुकार को करुण बना देता है। मुकेश के स्वर में उपस्थित भाव कैसे प्रेमी के दिल के विलाप को प्रस्तुत करते हैं इसे “रात खामोश है और तन्हा है दिल …तुम कहाँ हो ज़रा दिल को आवाज दो” पंक्तियों में उनके गायन को सुनकर जाना जा सकता है।
टूटे दिल से निकले उदगारों से भरे गीत को मुकेश ने गीत की आत्मा की गहराइयों तक डूबकर पहचाना है और आत्मसात किया है। उनका गायन गीत में एक सच्चाई और विश्वसनीयता लेकर आता है।
विजय सिंहजी ने मुकेश की भाव-प्रधान गायिकी का बहुत ही प्रभावी उपयोग इस गीत में किया है। यह उत्कृष्ट गीत बिना शक उन गीतों की श्रेणी में आता है जो मुकेश ने बहुत प्रसिद्धि पा चुके संगातकारों के संगीत निर्देशनों में गाये हैं।
विजय सिंहजी, जलाल मलिहाबादी और मुकेश के प्रति सिर्फ आभार प्रकट किया जा सकता है संगीत के क्षेत्र में इस सुंदर कृति को जन्म देने के लिये।
…[राकेश]
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