‘सूरज की पहली किरण से आशा का सवेरा जागे’ जीनियस किशोर कुमार द्वारा रचित पंक्ति गागर में सागर भरने की उक्ति को चिरतार्थ कर देती है| धरा पर मानव जीवन पर छाए “कोविड-19” के गहरे धुंध भरे साये तले सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक... Continue Reading →
फ़िल्म के अंदर ही सैयामी खेर को पाइप में छिपा धन नहीं मिलता बल्कि यह फ़िल्म उनकी प्रतिभा के प्रस्तुतीकरण के लिए लॉटरी लगने के समान भाग्यशाली प्रतीत होती है| उनकी पहली फ़िल्म मिर्ज़या देख किसने सोचा होगा कि उनकी... Continue Reading →
सीबीआई निदेशक अपने कनिष्ठ अधिकारी से कहता है - ‘अश्विन, तुमने इंसाफ की मूर्ति देखा है, उसके हाथ में तराजू है, आँखों पे पट्टी, अक्सर लोग देखना चूक जाते हैं कि उस मूर्ति के हाथ में एक तलवार भी है,... Continue Reading →
ये कहना अतिशयोक्ति न होगी कि फ़िल्म की सिचुएशन के हिसाब से ” दिल तो बच्चा है जी ” दशक के सबसे अच्छे दस गीतों में से एक है| एक लिहाज से ये गीत पचास और साठ के दशक के... Continue Reading →
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