देव डी फिल्म का यह गीत अपने आप में एक सम्पूर्ण फिल्म है और यह फिल्म के तीन मुख्य पात्रों में से एक लैनी (Kalki Koechlin) की जीवनकथा को संक्षेप में बयान कर देता है। यह गीत जिस तरह से... Continue Reading →
सिनेमा एक बेहद सशक्त्त माध्यम है और लिखे अक्षर से एकदम अंजान बिल्कुल अनपढ़ किस्म के व्यक्ति भी इस माध्यम के द्वारा संदेश ग्रहण कर सकते हैं और दिखाये हुये की अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर व्याख्या कर... Continue Reading →
पहुँचे हुये संतो, सिद्धों और सूफियों ने हमेशा अपने और प्रभु के बीच अद्वैत की कल्पना की है या बात की है या दुनिया को बताया है कि आत्मा परमात्मा के साथ एकाकार हो गयी है। वे लगातार स्तुति से,... Continue Reading →
तुम जहाँ हो वहाँ क्या ये मौसम नहींक्या नज़ारे वहाँ मुस्कुराते नहींक्या वहाँ ये घटायें बरसती नहींक्या हम तुम्हे कभी याद आते नहींतुम जहाँ हो वहाँ क्या ये मौसम नहीं ये जमाना हमेशा बेदर्द हैदर्दे दिल पे हाथ रखता नहींदिल... Continue Reading →
तुम महकती जवां चांदनी होचलती फिरती कोई रोशनी होरंग भी, रुप भी, रागिनी भीजो भी सोचूँ तुम्हे तुम वही होतुम महकती जवां चांदनी हो जब कभी तुमने नजरें उठायीं आंख तारों की झुकने लगी हैं मुस्कारायीं जो आँखें झुका के... Continue Reading →
...[राकेश]
सपनों के पीछे दीवानगी की हद तक भागना जरुरी नहीं कि अच्छे कर्म ही कराये और कई बार “पैशन” ऐसे काम करने के लिये विवश कर देता है जो अगर अनैतिक न भी लगें पर कम से कम किसी देश... Continue Reading →
“वेल डन अब्बा“ अभाव और समृद्धि के निर्लज्ज प्रदर्शन के दो विरोधी पाटों के बीच पिसते भारत पर व्यंग्य करती एक कहानी को दिखाती है। श्याम बेनेगल इस फिल्म में भ्रष्ट भारतीय समाज में समस्यायों से दो चार होते एक... Continue Reading →
प्रेम को जानने के लिये प्रेम को अपने जीवन में महसूस करना जरुरी है और केवल पढ़ कर या सुनकर इसके बारे में ढ़ंग से नहीं जाना जा सकता। प्रेम को जीकर ही जाना जा सकता है। ज्यादातर मानवीय भावनायें... Continue Reading →
महेश मांजरेकर की फिल्म City of Gold अमीरी गरीबी के बीच संघर्ष की राजनीति को दिखाती है। उदारीकरण के बाद से हिन्दी सिनेमा ने गरीब और अमीर के बीच के अन्तर को दर्शाती हुयी फिल्में बनाना बंद कर दिया था... Continue Reading →
सत्तर के दशक में बासु दा बहुत तेज रफ्तार से फिल्में बनाते थे और उनकी उस दौरान बनायी गयी फिल्मों की गुणवत्ता सराहनीय है। सत्तर के दशक की उनकी फिल्में बार बार देखी जाती हैं और तब भी न तो... Continue Reading →
प्रसिद्ध कवि रामावतार त्यागी की एक कविता की पंक्त्तियाँ हैं जी रहे हो जिस कला का नाम ले ले कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है? सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो, वही हम बदनाम लोगों ने... Continue Reading →
किसी भी परिवार के मुखिया की पत्नी उस घर की धुरी बन जाती है। मुखिया, उसकी संताने सभी लोग उस एक महिला के कारण आपस में जुड़ाव महसूस करते हैं। उन लोगों के आपस में एक दूसरे से अलग विचारधारायें... Continue Reading →
ऐसा हो जाता है कि कुछ रचते हुये उस ताने-बाने के कुछ रेशे रचियता को पसंद आ जाते हैं और वह उन्हे बाद में किसी और चीज के बुनने के लिये रख लेता है। उन पुराने रेशों से नये में... Continue Reading →
Tickets की एक खूबी है कि पूरी फिल्म ट्रेन के अंदर फिल्मायी गयी है और इसमें तीन कहानियों का समावेश है जो क्रमशः तीन अलग अलग निर्देशकों, Ermanno Olmi, Abbas Kiarostami और Ken Loach द्वारा निर्देशित की गयी हैं। तीनों... Continue Reading →
ये कहना अतिशयोक्ति न होगी कि फ़िल्म की सिचुएशन के हिसाब से ” दिल तो बच्चा है जी ” दशक के सबसे अच्छे दस गीतों में से एक है| एक लिहाज से ये गीत पचास और साठ के दशक के... Continue Reading →
औरत ने जनम दिया मरदों को, मरदों ने उसे बाज़ार दिया जब जी चाहा मसला कुचला, जब जी चाहा धुत्कार दिया तुलती है कही दिनारो में, बिकती है कही बाजारों में नंगी नचवाई जाती है अय्याशों के दरबारों में ये... Continue Reading →
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