qamarकिसी भी गीत को उम्दा बनाने के लिये संगीतकार, गायक और गीतकार तीनों के बेहतरीन योगदान की जरुरत होती है और किसी एक का भी योगदान कमतर हो तो गीत की गुणवत्ता और आयु कम हो जाती है। तीनों में केवल एक ही शख्स का अच्छा योगदान किसी गीत को महान और कालजयी नहीं बना सकता। उत्तम परिणाम के लिये तीनों प्रतिभाओं के श्रेष्ठ योगदान की जरुरत होती है। संगीतकार और गायक तो अक्सर अपने योगदान का मूल्यांकन पा जाते हैं परंतु गीतकार अक्सर पृष्ठभूमि में ही छिपे रह जाते हैं जबकि अगर गीतकार अच्छे बोल न लिखे तो गायक बहुत अच्छी आवाज वाली गायकी का योगदान देने के बावजूद भी गीत में वह असर नहीं ला सकता जो कि वह उन गीतों में ला पाता है जहाँ उसे बहुत अच्छे बोल मिल जाते हैं। अच्छी तरह लिखे गये गीत को अगर वाजिब धुन और गायकी का सहारा न मिल पाये तब भी गीत की गुणवत्ता प्रभावित होती है। फिल्मी संगीत में गीतकार अपने लिखे गीतों के द्वारा परदे पर दिखाये जाने वाले चरित्रों के भावों को प्रभावी ढ़ंग से अभिव्यक्त्ति प्रदान करता है। गीतों के बोलों को सुनकर दर्शक चरित्रों की मनोदशा को समझते हैं। संगीत प्रधान फिल्मों में गीतकार की अहम भूमिका रही है और दशकों से भारतीय फिल्मों में गीतों का एक खास महत्व रहा है।

हावड़ा ब्रिज फिल्म का यह मस्ती भरा गीत- मेरा नाम चिन चिन चूँ रात चाँदनी मैं और तू -, कालजयी बन चुका है और इसके निर्माण में संगीत निर्देशक –ओ.पी.नैयर, गायिका – गीता दत्त, नर्तकी और अदाकारा – हेलन, निर्देशक- शक्त्ति सामंत, नृत्य निर्देशक – सूर्य कुमार, सिनेमेटोग्राफर – चंदू के अलावा गीतकार कमर जलालाबादी का भी भरपूर योगदान है जिन्होने इस गीत में मस्ती भरा आलम लाने के लिये आवश्यक शब्दों का ऐसा ताना बाना बुना कि यह सुनने वाले के कानों से उसके दिल में समा जाता है और उसे एक खुशनुमा एहसास से भर देता है। परंतु बहुत सारे अन्य हिट गानों के साथ इस गीत के साथ भी यही दुखद बात जुड़ी रहती है कि इस गाने को दशकों से सुनने वाले भी बस इस गीत को ओ.पी. नैयर और गीता दत्त के नामों के साथ जोड़ कर देखते हैं। बहुत कम ऐसे संगीत रसिक होंगे जो इस गीत को वाजिब शब्द देने वाले का नाम जानते होंगे या अगर नहीं जानते हैं तो जानने के लिये उत्सुक होंगे।

हावड़ा ब्रिज के ही दूसरे गीत – आइये मेहरबां बैठिये जाने जां शौक से लीजिये जी इश्क के इम्तिहां-, के साथ भी यही होता आया है। इस मन लुभावने वाले गीत के साथ भी आशा भोसले की मादक गायकी, मधुबाला के मोहक अभिनय और ओ.पी नैयर के कर्णप्रिय संगीत को जोड़कर याद किया जाता है और बेहतरीन शब्दों का जाल बुनने वाला रचियता पार्श्व में छिपा रह जाता है।

इक दिल के टुकड़े हजार हुये, कोई यहाँ गिरा कोई वहाँ गिरा
बहते हुये आँसू रुक न सके, कोई यहाँ गिरा कोई वहाँ गिरा

सन 1948 में बनी फिल्म – प्यार की जीत, से लिये उपरोक्त्त प्रसिद्ध गीत को सुनें तो ज्यादातर श्रोताओं को सिर्फ मो. रफी की प्रसिद्ध गायकी का जुड़ाव इस गीत से सूझ पाता है और कुछ गम्भीर किस्म के संगीत रसिक इस जानकारी से आगे जाकर हुस्नलाल-भगतराम के नाम पर जा पहुंचते हैं जिन्होने इस गीत के लिये संगीत की रचना की थी। इस गीत के शब्द भी कमर जी की ही रचनात्मक लेखनी से उत्पन्न हुये थे।

व्यक्तिगत रुप से भी यह गीत कमर जी के सबसे पसंदीदा गानों में से एक था।

जीवन के सफर में हम जिनको समझे थे हमारे साथी हैं
दो कदम चले फिर बिछड़ गये
आशाओं के तिनके चुन चुन कर सपनों का महल बनाया था
तूफान से तिनके बिखर गये

उपरोक्त्त गीत किसी भी ऐसे व्यक्त्ति के जीवन का आइना बन जाता है जो अपने जीवनकाल में एक एक करके अपने प्रिय जनों को धरा से जाते हुये देख पाने की दुर्दशा को झेले।

1917 में अमृतसर में जलालाबाद में जन्मे कमर जलालाबादी के बहुत सारे गीतों में दर्शन समाहित रहा है। माता-पिता ने उनका नाम ओम प्रकाश रखा था और वे सात साल की बाल्यावस्था से ही उर्दू में कवितायें लिखने लगे थे। घर से तो प्रोत्साहन नहीं मिलता था पर एक घुमंतु कवि अमर ने उनके अंदर छिपी काव्य प्रतिभा को पहचान कर उन्हे प्रोत्साहित किया था। उन्होने ही ओम प्रकाश को तखल्लुस “कमर” प्रदान किया, जिसका अर्थ होता है – चाँद। उस समय की परिपाटी के अनुसार चूँकि ओम प्रकाश जी जलालाबाद में रहते थे अतः उनका कवि के रुप में नामकरण हो गया – कमर जलालाबादी

फिल्मों के प्रति आकर्षण कमर जलालाबादी को चालीस के दशक के शुरु में पूना ले आया और 1942 में उन्हे जमींदार फिल्म में गीत लिखने का मौका मिल गया। फिल्म के गीत अच्छे चले और खास तौर पर शमशाद बेग़म द्वारा गाया गया गीत – दुनिया में गरीबों को आराम नहीं मिलता– अच्छा लोकप्रिय हुआ।

बाद में वे बम्बई आ गये और अगले चार दशकों तक वे हिन्दी फिल्मी जगत को बतौर गीतकार एक से बढ़कर एक गीत लिखकर प्रदान करते रहे। यूँ तो उन्होने फिल्म की कहानी की माँग के अनुसार हर तरह के गीत लिखे परंतु उनके द्वारा रचे गये वियोग वाले प्रेम गीत अपना एक अलग ही स्थान रखते हैं। मानवीय भावनाओं को उन्होने अपने गीतों में बहुत खूबसूरती और गहराई से ढ़ाला। उनके रचे गीत जीवन से एक गहरा जुड़ाव लिये हुये रहे।

कमर जलालाबादी के लिखे गीतों को हिन्दी सिनेमा के लगभग सभी मशहूर गायक-गायिकाओं, मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ, जी.एम दुर्रानी, ज़ीनत बेग़म, मंजू, अमीरबाई कर्नाटकी, मो. रफी, तलत महमूद, गीता दत्त, सुरैया, शमशाद बेग़म, मुकेश, मन्ना डे, आशा भोसले, किशोर कुमार और स्वर-कोकिला लता मंगेशकर आदि ने गाया।

कमर जलालाबादी के लिखे गीतों को कुछ संगीत निर्देशकों ने स्वयं भी गाया। एस.डी बर्मन ने 1946 में बनी एट डेज़ फिल्म के लिये एक कॉमिक गीत – ओ बाबू बाबू रे दिल को बचाना बचाना दिल का बनेगा निशाना…- अपनी आवाज में गाया।

संगीत निर्देशक सरदार मलिक ने भी उनके लिखे कई गीत गाये और 1947 में बनी रेणुका के एक गीत – सुनती नहीं दुनिया कभी फरियाद किसी की, दिल रोता रहा आती रही याद उसकी– ने लोकप्रियता हासिल की।

सौंदर्य मलिका अभिनेत्री नसीम बानू ने भी 1947 में बनी फिल्म मुलाकात में एक ग़ज़ल – दिल किस लिये रोता है, प्यार की दुनिया में ऐसा ही होता है – को अपनी आवाज गाया।

मशहूर नृत्यांगना सितारा देवी ने भी 1944 में बनी फिल्म चाँद में कमर जलालाबादी के लिखे कुछ गीतों को गाया। चाँद, कमर जलालाबादी की शुरुआती उल्लेखनीय फिल्मों में से एक है।

काम के बाद बचा हुआ वक्त्त घर पर परिवार के साथ बिताना पसंद करने वाले कमर जलालाबादी ने अपने लम्बे करियर में हिन्दी सिनेमा के लगभग सभी प्रसिद्ध संगीतकारों – गुलाम हैदर, जी. दामले, प. अमरनाथ, खेमचंद प्रकाश, हुस्नलाल भगतराम, एस.डी बातिश, श्याम सुंदर, सज्जाद हुसैन, सी. रामचंद्र, मदन मोहन, सुधीर फड़के, एस. डी बर्मन, सरदार मलिक, रवि, अविनाश व्यास, ओ.पी नैयर, कल्याणजी आनंदजी, सोनिक ओमी, उत्तम सिंह और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल आदि के साथ काम किया।

एक गीतकार के रुप में कमर जलालाबादी ने बहुत सारे अविस्मरणीय गीत हिन्दी सिनेमा को दिये। बहुत कम गीतकार ऐसे होंगे जिनके रचे गीत दशकों तक श्रोताओं के जीवन का अभिन्न अंग बन रहे हों।
1954 में बनी फिल्म- पहली तारीख, के लिये कमर जलालाबादी ने एक ऐसा गीत लिखा था जो दशकों तक हर महीने की पहली तारीख को रेडियो सीलोन पर बजाया जाता था और शायद अब भी इस गीत को हर महीने की पहली तारीख को बजाया जाता हो।

संसार के वेतनभोगी वर्ग के लिये वेतन दिवस का बहुत बड़ा महत्व है और भारत के करोड़ों वेतनभोगियों से सीधा सम्बंध बनाता हुआ यह गीत उनकी खुशी का इज़हार करता है।

आज वेतन मिलना है। आज नौकरी करने वाले लोग अपनी और अपने परिवार के सदस्यों की इच्छापूर्ती के लिये धन पायेंगे। सभी खुश हैं। आज ऊर्जा का स्तर ही अलग है। मन में उमंगे हैं। सुधीर फड़के के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार ने कमर जलालाबादी के लिखे मस्ती भरे बोलों को मस्ती भरे अंदाज़ में गाकर इस गीत को अमर बना दिया है।


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