tanu weds manu returnsAnd they lived happily ever after… प्रेम कहानियों पर आधारित ज्यादातर फ़िल्में इस एक पंक्ति या इस एक समझ के साथ समाप्त होती हैं पर वास्तविक जीवन में गृहस्थ जीवन में आटे-दाल का भाव विवाह के कुछ समय पश्चात ही पता चलता है जब भावनाएं जीवन की वास्तविक समस्याओं से टकराती हैं और जब दोनों प्रेमियों के व्यक्तित्वों के ऊपरी आकर्षक परन्तु आभासी मुलम्मे उतर जाते हैं और वे अपने वास्तविक स्वरूप में, अपनी सच्ची आदतों के समक्ष एक दूसरे के साथ चौबीसों घंटे रहते हैं| इस वास्तविकता को पहचानने में समय लगता है कि जिससे प्रेम हुआ था वह है तो इसी शरीर में रहने वाला और इसी चेहरे वाला परन्तु उसके साथ इस अस्तित्व में कई और व्यक्तित्व भी रहते हैं जो पहले अंजाने ही रह गये थे|

विवाह पूर्व प्रेम काल की सारी बातें विवाह पश्चात के काल में वैसी नहीं रह पातीं और जो युगल उन बातों को खोजते हैं और निराशा पाते हैं और परिवर्तन के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाते वे ऊब और खीज से भर कर कुंठित हो जाते हैं और उनके वैवाहिक जीवन पर उनकी कुंठा बुरा असर डालती ही डालती है| संतान ही वह कॉमन बिन्दु होता है जिसके कारण पति और पत्नी दोनों अपने संबंध में नई ऊर्जा डाल पाते हैं और तनु एवं मनु के चार वर्षीय दाम्पत्य जीवन में संतान का भी अभाव है सो दोनों के मध्य रिश्ते में जोड़े रखने वाले सबसे बड़े तत्व की अनुपस्थिति भी उनके मध्य स्थिति को बिगाड़ती है|

कानपुर की बेहद बिंदास तनु (Kangna Ranaut) को परिस्थितिवश लो-प्रोफाइल वाले उसी मनु (Madhvan) से प्रेम हो जाता है, जिसे उसने तब घर से भगा दिया था जब वह विवाह के लिए उसे देखने आया था| 2011 में बहुत उलट-पुलट के बीच तनु का विवाह मनु के साथ हो जाता है और अपनी खिलंदड़ी जीवन शैली को भारत में ही छोड़ कर तनु, मनु के साथ लन्दन चली जाती है|

Tanu Weds Manu Returns,  2011 की फिल्म Tanu Weds Manu का सीक्वेल है और पहली फिल्म के जैसा जबर्दस्त संगीत न होने के बावजूद मनोरंजन के क्षेत्र में यह फिल्म अपनी पूर्ववर्ती फिल्म का मुकाबला बखूबी करती है| दोनों ही भाग लाउड हैं आर दोनों ही लुभाते हैं|

अब 4 साल बाद 2015 में पता लगता है कि तनु और मनु के वैवाहिक जीवन में भयानक किस्म की दरारें आ चुकी हैं और हालात ऐसे बनते हैं कि तनु, मनु को लन्दन में पागलखाने में भिजवाकर खुद भारत में कानपुर अपने पिता के घर आ जाती है|

पर तनु और मनु के मध्य मामला इतना सीधा भी नहीं है, भारत पहुँच तनु, मनु के दोस्त पप्पी (Deepak Dobriyal) को फोन कर उसे लन्दन जाकर मनु को पागलखाने से छुडवा कर लाने की जिम्मेदारी सौंप देती है| तनु का मिजाज़ ऐसा है कि उसे लगता है कि वह जो कुछ भी करे उसे मनु स्वीकार कर ही लेगा पर इस बार परिस्थितियाँ ऐसी बनती हैं कि तनु और मनु के बीच गलतफहमियां बढ़ती जाती हैं| कानपुर में तनु के घर किराए पर रहने वाला, हाल ही में वकालत पास करने वाला चिंटू तनु के बिना जाने ही उसकी तरफ से मनु को तलाक का नोटिस भिजवा देता है|

ऊपर से करेले पर नीम चढ़ा होने जैसी स्थिति के कारण मनु के जीवन में हरियाणा की एक लड़की कुसुम सांगवान (Kangna Ranaut) आ जाती है और तनु जिन स्थितियों को समझ रही थी कि वे तात्कालिक हैं और उसके नियंत्रण में हैं, वे उसके काबू से बाहर चली जाती हैं और हालात उस सीमा पर पहुँच जाते हैं जहां घोड़े पर बैठ दुबारा विवाह करने जा रहे मनु की बरात में तनु घोड़े के आगे आगे नाचती है| उसे सपने में भी विश्वास नहीं था कि मनु उसे कभी छोड़ भी सकता है|

तनु मनु से कहती भी है,” मैं तो ऐसी ही थी शर्मा जी, पर आप क्यों बदल गये?”

एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि तनु और मनु के रिश्ते में तनु ही हावी रहती है और वह समझती है कि वह तो चाहे जो करे पर मनु को उस पर हमेशा लट्टू ही रहना चाहिए| वह विवाह पश्चात अपने पूर्व प्रेमी राजा अवस्थी के साथ टहलती है, फ्लर्ट करती है और अन्य पुरुषों को भी अपनी ओर खींचे रखती है और उन्हें भुलावे देती रहती है पर उसे यह बात ठेस पहुंचा देती है कि कैसे मनु किसी और स्त्री की ओर देख भी सकता है या प्रेम कर सकता है? कुसुम से पहली बार मिलने पर वह सबसे पहली यही बात मनु से कहती है कि ज़रा देखूं तो वह कौन है जिसने वो कर दिखाया जो वह खुद चार साल में नहीं कर सकी? कुसुम का ग्रामीण परिवेश वाला और कम स्त्रियोचित गुणों वाला चेहरा मोहरा देख वह उसका उपहास उडाती है|

यह सच है कि तनु ने हमेशा ही अपने इर्द गिर्द के पुरुषों पर राज किया है| वह चार साल बाद मिलने वाले अपने सहपाठी दीपक, जो अब गरीबी के कारण कानपुर में रिक्शा चलाता है, और जो शायद कालेज के समय उसका मूक प्रेमी रहा होगा, से पूछती भी है कि क्या वह उसे याद किया करता है? अपने घोषित प्रेमी राजा अवस्थी के अहं को ठेस पहुंचाकर तनु ने मनु से विवाह किया था पर चोट खाया राजा अवस्थी का मन अभी भी उसके इतना कहने भर से गुदगुदाता रहता है कि मूंछों में वह अच्छा दिखाई दे रहा है और बरबस एकांत में भी अपनी मूंछों को वह हाथ से सहलाता रहता है| चिंटू की तो बात ही क्या जो तनु पर नया नया आशिक हुआ है और उसके आकर्षण के वशीभूत उसे पाने के लिए खलनायकी वाले काम करने पर उतारू हो जाता है और राजा जैसे गुंडे से टकराने से भी नहीं चूकता|

मनु का कुसुम से विवाह करने का फैसला तनु के अहंकार पर बहुत बड़ी चोट करता है पर वह घायल अहंकार के साथ भी मनु की शादी को अपनी आँखों से देखना चाहती है|

दूसरी तरफ कुसुम है जो एक वक्त पर पहले से शादीशुदा मनु से और नजदीकी बढाने से अपने को रोकती है और मनु को भी दो टूक कह देती है कि झज्जर जिले से आज तक कोई लड़की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी नहीं बनी और वह दिल्ली कुछ करने आई थी, आशिकी रचाने नहीं|

पर जैसे मनु ने पहले तनु को राजा अवस्थी (Jimmi Shergil) के प्रेम और हाथों से अपने प्रेम में खींचा था उसी तरह से मनु कुसुम को भी अपने प्रेम में खींच ही लेता है और अंततः कुसुम और उसका भाई (Rajesh Sharma) इस विवाह के लिए सहमत हो जाते हैं|

फिल्म की अंतिम कुछ घड़ियाँ ही तय करती हैं कि मनु कुसुम से विवाह कर लेगा या तनु के पास वापिस लौट आएगा|

फिल्म की एक खासियत है कि बिना उपदेशक बने यह भावुक तरीके से ऑनर किलिंग के मसले को सुलझा देती है और सुझाव देती है कि आधुनिक सोच वाले लोगों को प्रेमियों के पक्ष में खड़े होना ही पड़ेगा तभी पुरातनपंथी मान्यताओं का मुकाबला किया जा सकता है|

कथा के स्तर पर फिल्म संयोगों पर टिकी है| पर फिल्म भावनाओं के संघर्ष के बलबूते चरित्रों में तनाव रचती है और दर्शक को इस संघर्ष में खींचती है जहां उसे इस निर्णय में शामिल होना ही पड़ता है कि मनु को क्या करना चाहिए या वह क्या कर रहा है? क्या उसका तनु को छोड़ कर कुसुम से विवाह करने का निर्णय सही है? तनु और कुसुम, दोनों चरित्र दर्शक को अपनी ओर खींचते हैं और यही फिल्म की सफलता है कि वह इस प्रश्न को दर्शक का भी प्रश्न बना डालती है|

यह भी है कि आपतिजनक तरीके से मनु और पप्पी, कुसुम के साथ जिस कोमल को उसके विवाह स्थल से बेहोश करके झज्जर ले आते हैं, उसका चरित्र झज्जर आने के बाद फिल्म से गायब ही हो जाता है| यहाँ तक कि उसका भाई जस्सी, जो कि कोमल को लेने ही झज्जर आया है, उसकी बात ही नहीं करता| यह फिल्म में एक बड़ी गलती है|

फिल्म में हास्य रचने वाली बहुत सी सामग्री है और हरियाणवी लहजे में बिना किसी लाग लपेट के बात करने वाली कुसुम के संवाद भरपूर हास्य रचते हैं| बहुत से ऐसे दृश्य हैं जो दर्शक को हँसी में लोटपोट कर दें| झील में बोट चलाते चलाते कुसुम का सादगी से तनु से कहना,” कितना बढ़िया मौसम हो रहा है शर्मा जी| गाना सुना दो|” तनु के इंकार करने पर वह खुद ही गाना सुनाने की इच्छा जाहिर करती है और पूरी सादगी और गंभीरता से अंग्रेजी गीत गाना आरम्भ कर देती है और कुछ पल गाने के बाद कहती है,” शर्मा जी एक्सेंट नहीं आ रिया”| तनु के पूछने पर,”हरियाणवी?” वह भोलेपन से भरे आत्मविश्वास से कहती है,”नहीं जी अमेरिकन”| ऐसे प्रसंग दर्शक को हँसी में सराबोर कर देते हैं|

इस फिल्म में कंगना दोहरी भूमिका में हैं और यह फिल्म उनकी प्रतिभा का सही मायने में विस्फोट करती है| उन्हें मिली दोनों ही भूमिकाएं बिंदास और दबंग चरित्र वाली युवतियों की हैं पर दोनों के दृष्टिकोण में जमीन आसमान का अंतर है और कंगना ने दोनों भूमिकाओं को इस खूबसूरती से निभाया है कि लगता ही नहीं कि दोनों चरित्रों को निभाने वाली अभिनेत्री एक ही है| हिंदी सिनेमा के इतिहास में डबल रोल को इस कुशलता से निभाने में कंगना ने अपनी सारी पूर्ववर्ती अभिनेत्रियों को मीलों पीछे छोड़ दिया है| उनसे पहले न तो कोई अभिनेत्री इस दक्षता से टॉम बॉय किस्म की लड़की की भूमिका निभा पाई और न ही दोहरा चरित्र| यह आसानी से कहा जा सकता है कि अपने बेहद उम्दा अभिनय प्रदर्शन से वे दिलीप कुमार, संजीव कुमार और कमल हासन की पांत में बैठ गई हैं जिन्होने दोहरा या इससे अधिक चरित्र निभाने में महारत दिखाई| फिल्म के पहले भाग की भांति यह भी पूरी तरह से कंगना की फिल्म है|

माधवन, जिम्मी शेरगिल, स्वरा भास्कर, दीपक डोबरियाल, राजेन्द्र गुप्ता, नवनी परिहार, और के. के रैना आदि कलाकार, कंगना के कन्धों पर खड़ी फिल्म को पूरी मजबूती प्रदान करते हैं| इस फिल्म में राजेश शर्मा और मोहम्मद जीशान अयूब दो और अभिनेता भी हैं जिन्होने अच्छा अभिनय प्रदर्शन करके अपनी भूमिकाओं को जोड़े जाने के औचित्य को सार्थक ठहराया है, खासकर राजेश शर्मा तो अपनी भूमिका में जान डाल देते हैं|

निर्देशक आनंद एल राय ने सिद्ध कर दिया है कि सीक्वेल भी पहली फिल्म की तरह मनोरंजक और भरपूर गुणवत्ता वाले बनाए जा सकते हैं|

 

 …[राकेश]

 


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