
O. Henry की विश्व प्रसिद्ध कहानी “The Gift of the Magi” जैसी कहानियों का पाठक के ऊपर एक विशेष असर होता है| साहित्य की दृष्टि से ऐसी कहानियां बड़ी सरल भले लगती हों पर उनमें कुछ ना कुछ ऐसा मानवीय भाव होता है कि वे पाठक के साथ लगभग सारी उम्र बनी रहती हैं और अलग अलग काल में कुछ न कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि इन कहानियों की स्मृति लौट आती है|
अजीब दास्तांस की अंतिम लघु फ़िल्म – अनकही, वैसी ही कहानियों जैसा असर दर्शक पर छोडती जाती है| कथा के स्तर पर चारों फिल्मों में यह सबसे सरल लगती है लेकिन मानवीय भावनाओं की इसकी परतें, लुभावना पार्श्व संगीत, शैफाली शाह और मानव कौल का बेहतरीन अभिनय इस फ़िल्म को चारों फिल्मों में श्रेष्ठ बनाता है|
सुनने की क्षमता लगभग खो चुकी दस ग्यारह या बारह साल की लडकी के माता पिता के जीवन में तनाव का दबाव सहज ही समझा जा सकता है| बेटी से बात करने के लिए मां साइन लेंगुएज सीख चुकी है और चाहती है कि उसका पति भी इसे सीखे, लेकिन पति को यह उचित नहीं जान पड़ता| वह दिन रात व्यस्त रहता है और बेटी के लिए कोकलियर ट्रांसप्लांट करवाने में उसकी दिलचस्पी ज्यादा है| वह इस काम के लिए वोटिंग पीरियड को किसी दोस्त के माध्यम से कम करवा कर छह महीने करवा कर ही प्रसन्न है| पत्नी के यह कहने पर कि वह भविष्य की सोच रहा है , पर आज वर्तमान में बेटी की आँखों में आँखें डालकर उससे उसकी भाषा में बात क्यों नहीं करता, उसे क्यों नहीं जताता कि वह उसे प्रेम करता है, उसे हंसाता क्यों नहीं| पति कहता है उसे पत्नी की आवाज से ही कष्ट होने लगा है| पेंटिंग, आर्ट और साइन लेंगुएज आदि उसे फालतू के काम लगते हैं| इन सब कारणों से पति पत्नी में झगडे होते रहते हैं, जिन्हें उनकी बेटी सुन नहीं पाती पर देख कर समझ जाती है और ज्यादा दुखी होती जाती है|
बेटी- समायरा, के जटिल भविष्य की चिंता में घुल रही और पति- रोहन से झगड़ों से अशांत चित्त के साथ जी रही नताशा (शैफाली शाह) की मुलाक़ात अनायास ही फोटोग्राफर कबीर (मानव कौल) से हो जाती है| उसे आश्चर्य होता है यह जानकार कि कबीर सुन नहीं सकता| साइन लेंगुएज के कारण उनका तालमेल बैठ जाता है और आपसी समझदारी के कारण उनके दिल भी जल्दी ही मिल जाते हैं| कबीर में वह सब कुछ है जो उसे इस समय अपनी बेटी के पिता में चाहिए| कबीर में वह सब कुछ भी है जो उसे अपने जीवन साथी में चाहिए| कबीर को देख कर ही उसके अन्दर पहली बार यह आश्वासन पनपता है कि उसकी बेटी के जीवन में हरेक प्रकार के सुख संभव हैं| कबीर नताशा के देखने, सुनने और समझने के तौर तरीकों को सुखद रूप से परिवर्तित कर देता है| उसके साथ नताशा खुल कर हंसती है तो उसके जीवन का विषाद वाष्पित हो जाता है और रोहन के कटु वचनों के जवाब भी वह कबीर के साथ बिताए लम्हों को याद कर मुस्करा कर देती है|
मां और पिता के झगड़ों को देख बेटी, नताशा से पूछती है कि बहरेपन के कारण भविष्य में वह सामान्य जीवन जी पाएगी? नताशा के कहने पर कि वह सिर्फ सुन ही तो नहीं सकती अन्यथा वह एक सम्पूर्ण लडकी है|
बेटी कहती है कि क्या उसे जीवन में प्रेम मिलेगा?
नताशा उसे आश्वासन देती है कि उसकी मां से भी ज्यादा उसे प्यार करने वाला उसे मिलेगा|
बेटी ठोस तर्क देती है कि नताशा बेहद खूबसूरत है, स्पष्ट रूप से सुन भी सकती है, उसमें कोई कमी नहीं तब भी डैड उसे प्रेम नहीं करते| जब उसे कोई प्रेम नहीं करता तो एक सुनने की क्षमता खो चुकी लडकी कोई सच्चा प्यार करने वाला मिलेगा क्या इसकी कोई संभावना है?
बेटी का यह तर्क नताशा को हिला देता है| इस निराशा के माहौल में ही कबीर उसे अवलोकन की एक और दृष्टि देता है जब वह उसकी एक तसवीर को लेकर कबीर से उलट निराशाजनक टिप्पणी करती है और कहती है कि उसकी सभी तसवीरों में एक उदासी छिपी हुई है|
कबीर कहता है लोग जो मेरी तसवीरों में देखते हैं वह मेरे बारे में कम उनके अपने जीवन के बारे में ज्यादा होता है|
नताशा यह जानकार हैरान हो जाती है कि कबीर कोकलियर ट्रांसप्लांट के माध्यम से सुन पाता था पर उसने लोगों के झूठ सुन सुन कर उब जाने के बाद इसे निकाल दिया| उसका मानना है कि ओठ झूठ बोल सकते हैं आँखें सदैव सच ही बयान करती हैं|
अब तक दर्शक भी इतना अभ्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें भी संवादों को चरित्रों द्वारा बोल कर सुनने के बजाय उन्हें साइन लेंगुएज में आपस में भाव संप्रेषित करते देख सहज लगने लगता है|
कबीर को इतनी नजदीकी के बाद पहली बार पता चलता है कि नताशा सामान्य रूप से सुन सकती है|
कबीर का होना नताशा को बेटी समायरा के भविष्य के बारे में आश्वस्त करता है, और उसके अपने अस्तित्व को भी स्वीकृत बनाता है| रोहन का संभवतः विवाहेत्तर सम्बन्ध भी है और उसे भी वह उसके सामने फोन पर यह कह कर आराम से समाप्त कर देता है “ आई डोंट केयर”|
रोहन को पहली बार समायरा के साथ दूरी का एहसास यह देख कर होता है कि उनके बेडरूम में समायरा आती है और बोलकर उसका स्वागत करता है लेकिन वह स्पष्ट रूप से उसे सुन नहीं पाती और नताशा से लिपट कर बिस्तर पर लेट जाती है| उन दोनों को आलिंगनबद्ध और प्रसन्न देख उसे इन दोनों की आपसी नजदीकी और दोनों से स्वंय की दूरी का एहसास होता है|
जीवन के प्रति रोहन और कबीर के दृष्टिकोण पूर्णतः उलट हैं और कबीर के साथ जहां नताशा सहज, स्वीकृत और प्रसन्नचित रहती है वहीं रोहन के साथ बिताए क्षणों में तनाव का ही अस्तिव छाया रहता है|
ये सब बातें नताशा को कबीर की ओर धकेलती हैं| लेकिन प्रेममयी लम्हे एक साथ व्यतीत करने के बाद भी संकोची कबीर उसके सामने अपने प्रेम का प्रदर्शन नहीं कर पाता और कुछ संतुष्ट और प्रेम एवं कुछ असमंजस में घिरी नताशा अपने घर जाती है तो कबीर भावावेग में नताशा के प्रति अपने प्रेम को उसी के सामने स्वीकृत करने के लिए उसके पीछे जाता है|
घर पहुँची नताशा को यह देख सुखद आश्चर्य होता है कि रोहन समायरा के साथ बातें कर रहा है और दोनों बेहद प्रसन्न हैं|
वह दरवाजा बंद करने के लिए मुडती है तो कबीर को देख अचरज में पद जाती है| घर से बाहर की दुनिया में कबीर संग प्रेम की बगिया बन रही थी पर उसे यह अंदेशा तो था नहीं कि इतनी शीघ्र ऐसी घड़ी आ सकती है| रोहन क्रूर बना रहे तो नताशा का प्रेम कबीर संग न्यायोचित भी ठहरेगा लेकिन अगर उसके वैवाहिक जीवन में उसकी बेटी अपने पिता संग प्रसन्नतापूर्वक रह पाए तो इस बंधन को तोड़ पाना उसके लिए संभव नहीं होगा| हाल ही में कबीर के पूछने पर कि नताशा ने कितने गंभीर सबन्ध देखे हैं| वह जवाब देती है कि एक था वह अब समाप्त हो चुका है|
अब नताशा के घर खुले दरवाजे से कबीर अन्दर का दृश्य देखता है| वह भी हैरान है| वह नताशा के असली जीवन से अनजान रहा है|
कबीर के संग नताशा का जीवन ऐसा ही था जैसे वह उसके साथ स्वर्गिक स्थल का भ्रमण करके वापिस धरती पर अपने घर के जीवन में लौट आती हो| कबीर के संग प्रेम उसके जीवन की अनमोल थाती बनता जा रहा था| पर अब कबीर के यूं अनायास उसके घर के दरवाजे पर आ जाने से उसके दोनों संसार मिल गए और शायद उसके घरेलू जीवन की मांगें उसके कबीर संग जीवन की बगिया के सभी फूल नष्ट कर देंगीं|
रोहन द्वारा अन्दर से पूछने पर कि दरवाजे पर कौन है, नताशा जवाब देती है कोई नहीं एक सेल्समैन है| वह ऊँची आवाज में कहती है, हमें कुछ नहीं चाहिए|
कबीर द्वारा यह जताने पर कि नताशा ने आँखों से भी झूठ बोल कर दिखा दिया, वह सॉरी कहकर दरवाजा बंद कर देती है|
जीवन के एक अनमोल प्रेम को खोकर लुटी-पिटी फर्श पर बैठ कर रोती हुई नताशा से समायरा पूछती है कि क्या वो आदमी उससे प्रेम करता था?
घर के दरवाजे पर नाताशा और कबीर के मध्य आँखों से भावों के सम्प्रेषण और कमरे के अन्दर समायरा और नताशा के मध्य सांकेतिक वार्तालाप मर्मस्पर्शी हैं|
नताशा का दिल कबीर के साथ प्रेम में सराबोर तो है पर मां होने के कारण उसका दिल जहाज के उस पंछी की तरह ही है जो उड़ान भरते हुए समुद्र में दूर तक चला तो जाता है लेकिन उसे पुनः जहाज पर ही आ जाना पड़ता है|
नताशा के सामने दोनों संभावनाएं हैं| दरवाजे के बाहर कबीर, उसका प्रेम और एक ऐसा साथ उपस्थित है जिसके बारे में उसे कबीर की ही कही बात समझ में आती होगी कि अगर समझने वाला साथी मिल जाए तो कितना बेहतर जीवन हो जाए| कबीर उसे समझता है, कबीर के साथ उसका हर क्षण आनंद से भरा है, कोई टकराव नहीं है| कबीर समायरा के लिए अनन्त आशाएं जिलाने की संभावनाएं रखता है|
दरवाजे के अन्दर रोहन जैसा है लगभग वैसा ही रहेगा| समायरा के कारण थोड़ा बहुत घरेलु बन सकने के प्रयास तो करेगा पर कालान्तर में एकदम से वर्तमान स्वरूप से उलट हो जाएगा इसकी संभावना बेहद कम है| लेकिन तब भी नताशा अपना जाना पहचाना मार्ग चुन कर कबीर के मुंह पर यह कहते हुए दरवाजा बंद कर देती है-
वी डोंट नीड एनी थिंग
उसे चाहिए तो सब कुछ लेकिन व्यवहारिक स्तर पर उसे यही कहना और करना है|
चारों फ़िल्मों में यही एक फ़िल्म है जिसकी कथा समाप्त नहीं होती क्योंकि इसके बाद नताशा और कबीर के अपने अपने जीवन बहुत सी कथाओं की गुंजाइश रखते हैं| दरवाजा बंद करके भी कबीर अब नताशा और समायरा के संयुक्त जीवन में प्रवेश कर चुका है| इस कथा में एक सीक्वेल की गुंजाईश है| रोहन या कबीर दोनों दिशाओं में कथा आगे क्या रंग दिखाती है यह देखना रोचक होगा| आखिर आगे के परिदृश्य ही तो बता पायेंगे
किसने जीवन में क्या खोया क्या पाया!
निर्देशक Kayoze Irani ने अपनी पहली ही फ़िल्म में जबरदस्त निर्देशकीय संभावना दिखाई है|
…[राकेश]
Leave a Reply