पंचम द्वारा छोडी गयी संगीत की विरासत से इतना विशाल और गहरा सांगीतिक समुद्र संगीत प्रेमियों के लिए बन गया है कि संगीत का ककहरा सीखने से लेकर संगीत में पीएचडी संगीत पारखी लोग कर सकें, उनका संगीत इतना आश्वासन आसानी से देता है|

हैं दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे

कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाजे बयां और

पंचम ने रफ़ी, किशोर, मुकेश, मन्ना डे और आशा भोसले के साथ कमाल के गीत रचे हैं| वे सब अपने आप में एक मुकम्मल जहां रचते हैं लेकिन जो अमृत उन्होंने लता मंगेशकर के साथ रचा है उसकी श्रेणी बाकियों से थोड़ी अलग ही है| जैसे मदन मोहन का सिलसिला लता गीतों के साथ कुछ अलग ही दुनिया बसाता है वैसा ही हाल लता-पंचम जुगलबंदी के साथ का भी है|

अनामिका के इस प्रणय गीत को पंचम ने जैसा लता मंगेशकर से गवाया, उसे सुन कोई भी भारतीय शास्त्रीय गायक इसे गाने को राजी हो जाएगा| वह इसे गाने, गुनगुनाने में भरपूर आनंद उठा सकता है| सूफी गायक इस प्रणय गीत को अपने सूफियाने अंदाज़ में परिवर्तित कर सकते हैं और इसे अपने दैवीय महबूब के प्रति इश्क का गीत बना सकते हैं, और जम कर घंटों इसके रस में डूबे रह सकते हैं पंचम-लता से बहुत ज्यादा वे इसमें प्रयोग कर सकते हैं, शास्त्रीय लटके झटके सम्मिलित कर सकते हैं लेकिन केवल ४ मिनट में सम्पूर्ण गीत को ऐसा प्रभावशाली शायद न बना पायें जैसा लता गा गयीं हैं|

लता-पंचम जोड़ी ने भी एक से बढ़कर एक गीत रचे हैं, लेकिन अगर केवल एक गीत उनके सयुंक्त संसार से चुनना हो जिसमें जीवन हो, जीवन में आनंद की पराकाष्ठा का अनुभव होता हो और जो अपने कलेवर में आधुनिक लगता हो, तो फिर यही गीत उभर कर ऊपर आ जाता है|

जया भादुड़ी/बच्चन कितनी तीव्रता और तेज आवाज से इस बात से इनकार करें कि रोमांटिक रूप से परदे पर उनकी जोड़ी अमिताभ से ज्यादा संजीव कुमार संग ज्यादा प्रभावी थी, लेकिन यह गीत अपने आप उस बात को सिद्ध कर देता है| जयासंजीव कुमार ने तो कोशिश (Koshish) में बिना संवादों के केवल आँखों और शारीरिक हाव भावों से भी परस्पर प्रेम को व्यक्त किया है, जया ने प्रेमी/पति को चिड़ाने और आकर्षित करने वाला गीत विजय आनंद के लिए भी कोरा कागज़ में गाया है लेकिन बाहों में चले आओ की श्रेणी परम कोटि की है|

प्रणय गीतों में भी लता मंगेशकर ने अपनी श्रेष्ठता बार बार सिद्ध की है| आम्रपाली का तड़प ये दिन रात की हो या रजिया सुलतान का ख़्वाब बन कर कोई आयेगा जैसा गीत हो, लता जी इस पिच पर भी चैम्पियन की तरह खेलती रही हैं|

लगभग फुसफुसाने और गुनगुनाने से लेकर खुले गले से भरपूर गायन तक सभी तरह की मिश्रित पिच पंचम ने लता जी के लिए इस गीत में तैयार की थी और पंचम द्वारा फेंकी गई हर तरह की गेंदबाजी पर लता जी ने इस तरह से बैटिंग की मानो एक ही बल्लेबाज में गावस्कर, विश्वनाथ, अजहरुदीन और सचिन तेंदुलकर की कलाएं समा गई हों और क्लासिक से लेकर स्टाइलिश शाट्स के नज़ारे स्टेडियम में चारों तरफ देखने को मिल रहे हों|

पंचम का वाद्य यंत्रों का संयोजन, और लता जी की गायिकी मिल कर कुछ ऐसा पदार्थ तैयार करते हैं जिसे सुनने भर से खुमारी चढ़ने लगती है| गीत-संगीत का नशा और आनंद दोनों मिल जुलकर श्रोता पर कुछ ऐसी खुमारी चढाते हैं जिसमें बार बार आनंद पर्वतों के शिखर पर चढ़ जाता है| यह एक ऐसा गीत है जिसका आनंद संगीत का पारखी, और गायक और नृत्य का पारखी और नर्तक चारों श्रेणियों के लोग सामान रूप से ले सकते हैं| सिर्फ श्रवण का भी इसमें आनंद है और श्रोता अपने शरीर में उस श्रवण से अंदुरनी शारीरिक नृत्य भी महसूस कर सकता है|

इस गीत में इतना संगीत, नृत्य और आनंद है कि आसानी से डॉक्टर अगर संगीत थेरेपी का प्रयोग किसी अवसाद से घिरे मनुष्य पर कर रहे हैं तो इस गीत का उपयोग कर सकते हैं और अन्य संगीत नमूनों से ज्यादा सहायता यह गीत करेगा|

मजरुह सुल्तानपुरी ने इस प्रणय निवेदन गीत में इतने आसान लेकिन आकर्षक शब्दों का सम्मलेन किया है कि सुनने वाला उनकी कला का प्रशंसक न बने ऐसा संभव नहीं| बेहद स्तरीय गीत उन्होंने फ़िल्म के सिचुएशन के अनुसार लिखा|

मूलतः शुद्ध स्वरों का उपयोग लता जी ने किया और किसी शब्द के शुरू या अंत में कोमल स्वरों का प्रयोग भी इस मुलामियत से किया है कि इस बदलाव को महसूसना ही आनंद प्रदान कर देने वाला है| जैसे परदा शब्द को उन्होंने शुद्ध स्वर में पर गया और बिना रुके कोमल स्वर में “दा” को गा दिया|

पंचम ने इस गीत में लो पिच, मींड और मुरकियों के उपयोग पर लता जी की दक्षता का भरपूर दोहन किया है|  

चले आओ में उन्होंने चले और आओ दोनों शब्दों में मींड और मुरकी के प्रयोग किये वे गीत के श्रवण को बेहद आकर्षक बनाते हैं|

फ़िल्म की सिचुएशन के हिसाब से इसे इस तरह से गाया जाना था जिससे घर में किसी अन्य को न सुनाई दे|

लता किशोर के कई गीत ऐसे हैं जो दोनों ने फ़िल्म में एकल रूप में अलग अलग गाये हैं| काश कि फ़िल्म में शिमला ट्रिप पर कभी निर्देशक ऐसी भी स्थिति रच देते जहां इसे पहाड़ से नीचे वादी में गुंजा देने वाला खुले गले से गाये इस गीत के पुरुष संस्करण गाने का अवसर किशोर कुमार के लिए निकाला जाता| भले ही केवल इसका मुखड़ा ही गवाया जाता| फ़िल्म के हिसाब से वह बेहद आकर्षक होता|

…[राकेश]

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