Kishore Kumarचाहे हिमालय के भव्य अस्तित्व का श्रंगार करती हुयी सूरज की किरणें हों या एल्प्स की वादियों की गोद को धीमी नाजुक आँच से मदमाती हुयी सूरज की किरणें हों, सुबह के सूरज की लालिमा के सौंदर्य का कहीं कोई मुकाबला नहीं। चाहे मानव की हो या जगत के किसी और चर और अचर अस्तित्व की, इस समय जगत में पवित्रता अपनी चरम ऊँचाई पर होती है। जैसे जैसे दिन चढ़ता है और फिर उतरता है जगत का व्यापार भी अपने बलशाली रुप में सामने आने लगता है।

गोधूली आती है, सूरज विदा लेने लगता है। थके हुओं को सुकून के लिये कुछ चीजों की दरकार होती है और संगीत उनमें से एक है। कुछ शाम और रात को गुलज़ार बनाने में लग जाते हैं और उन्हे भी संगीत एक उत्प्रेरक के रुप में चाहिये होता है।

किशोर कुमार का संगीत संसार भोर से लेकर दिन और रात के सारे पहरों को जाग्रत कर देता है। उनकी आवाज एक बालक से लेकर एक वृद्ध को उनका मनचाहा भाव दे देती है।

अगर एक ओर उन्होने ऐसे ऊर्जावान तरीके से गीत गाये हैं कि अगर रोगग्रस्त होने के कारण शय्या पर बेजान पड़ा संगीत रसिक भी सुन ले तो एक बार तो उसके भी अंगों में थिरकन भरी संवेदना दौड़ने लगे और इन्ही धमाल भरे गानों के साथ उन्होने ऐसे शांति प्रदान करने वाले गीत भी गाये हैं जिन्हे सुन क्रोध में पागल हुआ जा रहा चित्त भी शांति को प्राप्त हो जाये।

ऐसा ही एक गीत है उनके द्वारा सृजित, एक विलक्षण गीत “अकेला हूँ मैं इस जहां में, अकेली मेरी दास्तां, ना मंजिल कोई ना साथी कोई, जाने क्या ये नीला आस्मां“। किशोर कुमार की आवाज संगीत वाद्ययंत्रों के न्यूनतम समर्थन के साथ भी जादू जगा सकती है। यह गीत उनके इस गुण का मुखर रुप से समर्थन करता है।

किशोर के गायन के बहुत सारे पहलू हैं पर एक बात जो बहुत ज्यादा आकार्षित करती है वह है उनका किसी किसी गाने को बहुत हल्के स्वर से शुरु करना और उसके उपरांत जैसे जैसे भाव हों बोलों के उनके अनुरुप ही अपनी आवाज को खोलते जाना और उसे यहाँ वहाँ आकर्षक विस्तार देना।

इस हल्के स्वर के जादू को चाहे उनकी आवाज की एक रोमांटिक अदा कह लें या किसी और विशेषण से इस प्रवृति को नवाज दें पर यह अदा इतनी दिलकश है कि इसका जादुई असर भुलाये नहीं भूलता, छुड़ाये नहीं छूटता। इसे गुनगुनाना भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि कितने ही गानों में उन्होने स्थापित और परिभाषित गुनगुनाने की कला को भी अपनाया है।

उनके इस धीमे स्वर की महिमा को सवेरे वाली लालिमा के समकक्ष माना जा सकता है। उनके गायन की सबसे बड़ी विशिष्टता लगती है इस हल्के, नाजुक और मुलायम स्वर में गाना।

वैसे तो बड़े संगीतकारों जैसे एस डी बर्मन और पंचम दा आदि के साथ उनके बहुत सारे गाने हैं जो इस तरह से गाने की महता को उभारते हैं। यहाँ देखते और सुनते हैं उनका सामान्य रुप से प्रसिद्ध गीतों से अलग एक गीत जो उन्होने सपन जगमोहन के संगीत निर्देशन में गाया था।

यह देखना और सुनना कितना सुखद है कि कितनी आसानी से और कितने सुरीले अंदाज में किशोर कुमार ने अपनी आवाज में पर्वतीय असर को अपना लिया है!

धीमे स्वर के इस जादू का उपयोग उन्होने हर भाव के गानों को गाने में किया है।

पिछली सदी के सन पचास से लेकर सन सत्तासी अट्ठासी तक जिस किसी भी भारतीय ने हिन्दी फिल्मों के संगीत की मार्फत संगीत से अपना नाता जोड़ा है उसके लिये जीवन-पर्यंत किशोर कुमार और उनके संगीत को अलविदा कहना नामुमकिन है।

कौन सा ऐसा भाव है जिसके गाने किशोर कुमार ने न गाये हों? हिन्दी फिल्म संगीत के क्षेत्र में मन्ना डे एक विशाल नाम रहे हैं शास्त्रीय धुनों पर बने क्लिष्ठ गीतों को गाने के लिये और उनके और किशोर कुमार के मध्य पनपी जुगलबंदी का कमाल “पड़ोसन” के युगल गीत “एक चतुर नार बड़ी होशियार” में स्पष्टतया: दिखता है। मन्ना दा ईमानदार थे और अपनी पहले की हिचकिचाहट को त्यागते हुये उन्होने गाने की रिकार्डिंग के बाद किशोर कुमार की प्रतिभा को स्वीकारा और सराहा। आशा भोंसले तो कहती ही रही हैं कि किशोर कुमार की जीनियस प्रतिभा के सामने बहुत चौकन्ना होकर गाना पड़ता था।

गीत के पीछे छुपे भाव को बेहद सच्चाई और ईमानदारी से अपनी आवाज के जरिये उभार देना उनके गायन की एक बहुत बड़ी खासियत रही है। हर रुप, हर रस के गायक थे किशोर कुमार

किशोर कुमार ने गाने नहीं गाये हैं बल्कि अपने दिल का अंश हर बार मन से गाये गानों को दिया है तभी वे इतने जीवंत हैं कि खुशी में हसाँ दें श्रोता को और ग़म में रुला दें।

किशोर के दर्द भरे नग्मे, किताबों, कैसेट्स और सीडी के शीर्षक मात्र ही नहीं हैं बल्कि बहुत सारे गीत जैसे, “कोई होता जिसको अपना“, “बड़ी सूनी सूनी हैं“, “आये तुम याद मुझे” आदि इत्यादि का कहीं भी बजना उस जगह को दिन के विकट उजाले के समय भी घनघोर अंधकार से भर देता है और श्रोता के दिल को, उसके अस्तित्व को भारी और बोझिल बना देता है।

खुशी और ग़म में उनकी आवाज के असर को देखने का गवाह बनना हो तो सफर फिल्म को देखें और सुनें “जीवन से भरी तेरी आँखें” और “ज़िंदगी का सफर है ये कैसा सफर” के अंतर को। असित सेन ने कितनी ईमानदार बुद्धिमत्ता से फिल्म में शर्मिला टैगोर को एक संवाद भी दे दिया जब वे राजेश खन्ना से कहती हैं कि कल तक यहाँ ज़िंदगी बसती थी और आज मौत का असर सा आ गया लगता है।

किशोर कुमार के गायन ने ऐसा द्विपक्षीय असर संभव कर दिखाया था।

 किशोर कुमार के गीत, सुनने और फिर उन गीतों को देखने और फिर से सुनने वाली सम्पदा हैं। और इस त्रि-सूत्रीय तरीके से ही उनके संगीत के जादू को डी-कोड किया जा सकता है।

विश्वास न हो तो “वो शाम कुछ अजीब थी” के साथ ये प्रयोग करके देख लें।

 

राजेश खन्ना के लिये बोल रोमांटिक हैं पर ये बोल एक उदास दिल से निकल रहे हैं जिसे हिचकिचाहट है अभी खुशी को पूरी तरह से अपनाने और दर्शाने में। राजेश खन्ना से अलग इन बोलों का जुड़ाव वहीदा रहमान की यादों से भी है और इस गीत को कई स्तरों पर कार्य करना है और हेमंत कुमार, वहीदा रहमान और राजेश खन्ना के अलावा इस काम की बड़ी जिम्मेदारी किशोर कुमार की गायकी पर भी थी और कहीं एक क्षण भर के लिये भी उनकी आवाज इस जिम्मेदारी से अलग हटती प्रतीत नहीं होती। उनकी आवाज उदासी और रोमांटिक अंदाज दोनों को बखूबी सम्भालती हुयी हवा में गूँजती रहती है।

 

“मेरे अरमानों के पंख लगा के कहाँ उड़ चली” गाती आवाज श्रोता को भी कल्पना के संसार में उड़ा ले जाती है।

 

आजा मेरी सांसों में महक रहा रे तेरा गजरा

आजा मेरी रातों में लहक रहा रे तेरा कजरा

 

रोमांस अपनी चरम सीमा का स्पर्श लेकर आता है जब वह किशोर कुमार के नग्मों के द्वारा गुलशन को महकाता है। शब्द जादुई असर फैलाने लगते हैं जब उन्हे किशोर कुमार की आवाज का सहारा मिल जाता है।

 

देर से लहरों में कमल संभाले हुये मन का

जीवन ताल में भटक रहा तेरा हंसा

 

शुद्ध हिन्दी में गाये बोल इस भटकाव को वाकई में काल के बंधन से मुक्त्त कर देते हैं।

 

झीलों के होठों पर मेघों का राज़ है

फूलों के सीने में ठंडी ठंडी आग है

 

ऐसी कल्पनात्मक तुलना को वाजिब ऊँचाइयाँ मिल जाती हैं जब किशोर इन अलंकारिक शब्दों को अपने स्वर से सजाकर दुनिया के सामने लेकर आते हैं।

 

इन लम्हों पे आज तू हर खुशी निसार दे।

 

सम्मोहित दर्शक और श्रोता ऐसा करने को तैयार हो जाते हैं जैसा कि गायक ने निवेदन किया है। गायन की दृष्टि से एक कठिन गीत को किशोर बड़ी सहजता से गा गये हैं।

 

युवा प्रेमी ह्रदय के उदगारों को मुखरित करने वाले बहुत सारे गीत किशोर कुमार ने गाये हैं। और बात भी प्रदर्शित हो जाये और मन के भय भी, ऐसे दो सूत्री उद्देश्यों की पूर्ती वे आसानी से और दिल चुराने वाले अंदाज में कर जाते हैं।

 

तेरे रास्ते पे मैं आँखें बिछाये बैठा हूँ

तेरे इंतजार की मैं दुनिया सजाये बैठा हूँ

धड़क रहा है दिल दिल को मैं कैसे समझाऊँ

तुझसे मिलूँ या मिले बिन यहाँ से चला जाऊँ

ऐसा न हो कि तू ये दिल तोड़े

जमाना हँसे सारा

 

 

प्रेम को, प्रेमियों को पँख दिये हैं किशोर की आवाज ने। उनके गाये गीतों ने प्रेमियों की भावनाओं को कल्पना के घोड़े दिये हैं।

 

झील सी आँखों में आशिक डूब के खो जायेगा

जुल्फ के साये में दिल अरमां भरा सो जायेगा

तुम चले जाओ नहीं तो कुछ न कुछ हो जायेगा

डगमगा जायेंगे ऐसे हाल में कदम

 

आवाज के जादूगर किशोर को आप कस्मे वादे निभायेंगे हम में “वादे” को एक निराले अंदाज में गाते सुनें और फिर अमिताभ को परदे पर उस अंदाज को दृश्य में बदलते हुये देखें।

 

किशोर कुमार एक गायक के तौर पर माने तो, ऐसा शख्स जो पहले तो अपनी जादुई आवाज के साथ उस कलाकार की आत्मा से एकाकार हो जाये जिसे परदे पर गाने को गाना है और उसके बाद गीत को इस विशिष्ट ढ़ंग से गा दे कि जब अभिनेता उस गीत पर अभिनय करे तो उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन सामने आ जाये। देव आनंद, राजेश खन्ना, अमिताभ, विनोद खन्ना, शशि कपूर, रंधीर कपूर, ऋषि कपूर आदि के तमाम गाने इस बात के गवाह हैं।

 

बतायेंगे तो गुलज़ार साब ही पर हो सकता है “दिल तो बच्चा है जी” जैसे शब्द लिखते समय शायद उन्हे किशोर कुमार याद आये हों। उनके दिल के अंदर का बच्चा तो हमेशा जीवंत रहा। जिसका दिल बच्चा हो वही इतने दिल से और इतनी खूबसूरती से “लुक छिप लुक छिप जाओ ना” (दो अंजाने) जैसा गीत गा सकता है।

 

किशोर कुमार का गायन क्या कर सकता है इसे जानने के लिये अमिताभ बच्चन की फिल्मोग्राफी में उनकी फिल्मों में पार्श्व गायन के इतिहास का अध्ययन अत्यंत रोचक है। अस्सी के दशक में अमिताभ बच्चन ने किशोर कुमार की बहुत ऊँचे स्तर के गायकी आवाज का सहारा छोड़ कम स्तर के गायकों की गायकी का सहारा अपने गानों के पार्श्व गायन के लिये लिया था पर एक भी गाना उस ऊँचाई को नहीं पहुँच पाया जहाँ किशोर कुमार के गाये गाने बड़ी सहजता से पहुँच जाते थे। जब किशोर कुमार ने फिर से शराबी में उन्हे आवाज दी “मंजिलें अपनी जगह हैं” में तो उन्हे समझ में आ गया होगा कि क्यों सत्तर के दशक और अस्सी के दशक के शुरुआती सालों में अमिताभ पर फिल्माये गये गाने, जो किशोर कुमार ने गाये थे, इतने प्रसिद्ध थे।

 

कुछ संगीतकार रहे हैं जिन्हे इस बात पर एतराज रहा है कि किशोर कुमार तो शास्त्रीय संगीत तो छोड़िये किसी भी तरह के संगीत की शिक्षा लिये बिना ही गायन के क्षेत्र में कूद पड़े और ऐसे कुछ संगीतकारों ने उनसे कभी गाना नहीं गवाया या गवाया भी तो सत्तर के दशक में बाजार के दबाव के कारण क्योंकि तब तक किशोर संगीत की दुनिया में सफलता की गारंटी बन चुके थे पर ऐसे संगीतकारों की यह एक ऐसी भूल थी जिसने उन्हे कचोटा तो होगा जब वे अकेले में चिंतन करते होंगे। संगीत सीखा हो या न सीखा हो किशोर कुमार बेहद उच्च गुणवत्ता वाले गाने गा सकते थे और उन्होने सैंकड़ों ऐसे गाने गाकर अपनी योग्यता सिद्ध भी कर दी। अच्छे कलाकार को पूर्वाग्रहों से मुक्त्त होकर प्रतिभा का सम्मान करना चाहिये पर खेदजनक बात है कि हिन्दी सिनेमा के कुछ संगीतकार, जिन्होने बहुत ऊँचे मुकाम हासिल किये अपने संगीत के जरिये, किशोर कुमार के मामले में चूक गये और अपनी ईमानदारी से छोटा सा दगा कर गये। इतिहास ने उन्हे ठेंगा दिखा दिया है।

 

साल के प्रत्येक दिन लिखने वाला लगातार लिख सकता है किशोर कुमार के गायन पर और साल बीतने के बाद अगले साल के पहले दिन भी उसे ऐसा ही लगेगा कि अरे अभी तो कुछ और बातें बाकी हैं।

 

किस किस के साथ मुस्कुरायें, किस किस के साथ रोयें, यह संसार तो इतना विशाल है कि बस डूबते रहो, तैरते रहो, बस आनंद लेते रहो।

यह आवाज ऐसी है जिसके साथ क्या कुछ नहीं कर सकते?

सबसे बड़ी बात कि इस आवाज के साथ हम संजीदा होकर जी सकते हैं!

 

धीमे से दस्तक देती है

हौले से चलते कदमों की आहट

कोई चला आ रहा है

होठों में दबी बातों को

सात सुरों की चाशनी में पगी

मीठी तानें छेड़

आठों दिशाओं में बिखेरते हुये।

 

दिल में बसी जाती है

गूँज इन स्वरों की

और सुनने वालों को

इंसान बनाये जाती है।

 

बहुत अच्छी बातचीत है ये

 

…[राकेश]